Saturday - 26 October 2024 - 2:02 PM

अनेक विविधिताओं का इंद्रधनुष है भारतीय संविधान

शशांक पटेल

आज के दिन ही संविधान सभा ने संविधान निर्माण के कार्य को पूर्ण करके इसे राष्ट्र को सौंप दिया। अपना संविधान बनाने मे हमें कुल 2 साल 11 महीने और 17 दिन लगे। आजाद होकर अपना संविधान बना लेने के साथ ही साथ हमने हर बात के लिए अंग्रेजों को दोष देने का हक भी खो दिया क्योंकि अब अगर कुछ भी गलत होता है तो उसके जिम्मेदार हम खुद होंगे। आजादी के पहले तक भारत में रियासतों के अपने अलग-अलग नियम कानून थे, जिन्हें देश के राजनीतिक नियम, कानून और प्रक्रिया के अंतर्गत लाने की आवश्यकता थी। जिसमें देश में रहने वाले लोगों के मूल अधिकार, कर्तव्यों को निर्धारित किया गया हो ताकि हमारा देश तेजी से तरक्की कर सके।

सदियों भारत पर शासन करने के बाद द्वितीय विश्व युद्ध और कई आंदोलनों के चलते अंग्रेजी सरकार कमजोर हो गई थी। जाते-जाते अंग्रेज भारत का संविधान खुद बनाकर जाना चाहते थे लेकिन गाँधी, नेहरू समेत अन्य लोगों को किसी विदेशी हुकूमत द्वारा बनाए गए संविधान से देश को चलाने की बात मंजूर नहीं थी। संविधान और संविधान सभा के गठन के प्रयास में ही देश के बंटवारे की नीव पड़ी।

कांग्रेस पार्टी हमेशा संयुक्त भारत की माँग करती थी लेकिन मुस्लिम लीग मुस्लिमों के लिए अलग संविधान सभा की माँग कर रही थी और कुछ ही समय मे ये माँग अलग देश की माँग बन गई। कांग्रेस और लीग को एक समझौते तक लाना शेर और बकरी को एक साथ चराने जैसा था। अखंडता और अश्रुणता की बात करने वाली कांग्रेस के पास भी विभाजन के प्रस्ताव को मानने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा। रोग पूरे शरीर में न फैल जाये इससे पहले बीमार अंग को काटकर निकाल देना ही सबको उचित लगा।

9 दिसंबर 1946 को पहली बार संसद भवन में संविधान सभा इकट्ठा हुई। हिंदुस्तान को एक नया रूप देने के लिए और एक नए संविधान को आकार देने के लिए सारे महत्वपूर्ण लोग संविधान सभा मे मौजूद थे बस दो लोग वहाँ नहीं थे और शायद दो सबसे अहम लोग पहले थे कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना और दूसरे महात्मा गाँधी।

इस शुभ अवसर पर जगजीवन राम कांग्रेस के कुछ अन्य सदस्यों के साथ गाँधी जी से आशीर्वाद लेने पहुंचे तब बापू ने उन्हें एक मंत्र दिया और बोले जब कभी अपने आप को शंका में घिरा पाओ तो सबसे दीन-हीन, गरीब, कमजोर इंसान जिसे तुमने देखा हो उसका चेहरा याद करना और स्वयं से पूंछना कि जो मैं करने जा रहा हूँ क्या इससे उसका भला होगा? इस कदम से उसे कुछ मिलेगा या नहीं? इस कदम से वो अपने भाग्य और जीवन को सुधार पायेगा या नहीं?

तीन सालों की अथक मेहनत रंग ला रही थी और सदियों से अंग्रेजों की गुलामी और राजे-रजवाड़ों की दास्तां में बंधा देश आज अपनी मर्ज़ी से अपने बनाये रास्तों पर चलने जा रहा था। अपने अपने विचारों के अनुसार संविधान सभा की तारीफ और आलोचना का सिलसिला भी चलता रहा लेकिन संविधान के कटु से कटु आलोचक भी इतने बड़े काम को अंजाम देने वालों की तारीफ ही कर रहे थे।

संविधान सभा में मौजूद सेठ दामोदर स्वरूप ने तो यहाँ तक कह दिया कि इस संविधान के लागू हो जाने के बाद भी इस देश के लोग सन्तुष्ट और सुखी नहीं होने जा रहे हैं क्योंकि इस संविधान में लोगों के लिए है ही क्या? इसमें न तो गरीब के लिए रोटी का ज़िक्र है और न ही भूखे, नंगे, शोषित लोगों के लिए उम्मीद का मुद्दा।

इसके अलावा इसमें काम और रोजगार की कोई गारन्टी भी नहीं दी गई है इसलिए यह संविधान पास किये जाने के लायक ही नहीं है। सेठ जी का कहना भी उचित ही था भारत जैसे गरीब देश जहां उस वक्त करोड़ों लोगों को दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं थी वहाँ के संविधान में इस बात का ज़िक्र न होने पर विरोध लाज़मी था। लेकिन संविधान निर्माताओं को पूरा विश्वास था कि भविष्य में भारत जल्द ही इन सभी कमियों को दूर करने का प्रयास करेगा।

आजादी के मतवालों का लक्ष्य सिर्फ आज़ादी पा लेना ही कभी भी नहीं था लेकिन उनका ये मानना जरूर था कि अपने लोगों का भला करने के लिए आज़ादी और अपना संविधान होना आवश्यक है।

आजादी और संविधान निर्माण के करीब 70 सालों बाद आज हमारी सरकारें अपने मूल लक्ष्य से भटक सी गई हैं ऐसा शायद इसलिए भी क्योंकि हमारी जिन पीढ़ियों ने अंग्रेजों की गुलामी को सहा और जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष को देखा वो अब लगभग जा चुकी हैं और आज की पीढ़ी को ये आज़ादी खैरात में मिल गई है। बदलते समय के साथ हमें अपने उद्देश्यों को याद रखना है जिससे आगे चलकर हम उस सपने को पूरा कर सकें जिसे कभी स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था।

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