जुबिली न्यूज़ डेस्क
लद्दाख के पास गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए संघर्ष के बाद बॉर्डर पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। 20 जवानों के शहादत के बाद देश की जनता में गुस्सा है, जिसका असर अब सरकार के लेवल पर भी दिख रहा है।
सरकार हो या सेना कोई भी किसी भी तरह की ढील नहीं बरतना चाहता है। सिर्फ लद्दाख बॉर्डर के पास नहीं। बल्कि उत्तराखंड में चीन से सटी सीमा समेत पूरी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर अब सेना के अलर्ट को बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा बड़ी संख्या में सेना के ट्रक लद्दाख की ओर बढ़ते हुए देखे गए हैं।
गलवान घाटी में खूनी संघर्ष के बाद भारत सेना अपनी रणनीति में कई किस्म के बदलाव कर सकती है। सबसे अहम बदलाव यह हो सकता है कि एलएसी पर बिना हथियार के पेट्रोलिंग शायद अब नहीं की जाए।
सोमवार की रात हुए खूनी संघर्ष में बड़ी संख्या में भारतीय जवानों के मारे जाने और हताहत होने के दो प्रमुख कारणों में एक उनका हथियारबंद नहीं होना तथा दूसरे वहां की विषम भौगोलिक परिस्थितियों का होना है।
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सेना से जुड़े सूत्रों के अनुसार, 1996 के एक समझौते के तहत एलएसी के दो किमी के दायरे में बंदूक आदि के इस्तेमाल पर रोक है। इसलिए सेना की टुकड़ियां पेट्रोलिंग के दौरान हथियार नहीं ले जाती हैं। हालांकि समझौते में यह स्पष्ट नहीं है कि हथियार लेकर भी नहीं जाना है।
लेफ्टनेंट जनरल (रिटायर्ड) राजेन्द्र सिंह के अनुसार चूंकि इस्तेमाल नहीं किया जाना है। इसलिए सैनिकों को ले जाने की मनाही है ताकि वे झड़प होने पर जोश में इस्तेमाल न कर बैठें। लेकिन जिस प्रकार चीनी सैनिकों ने राड और कटीले तारों से हमला किया है, वह समझौते का स्पष्ट उल्लंघन है। ऐसे में यह समझौता भी अब बेमानी है।
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सेना के सूत्रों के अनुसार, झड़प के दौरान ज्यादातर जवानों की संकरे स्थान से नीचे गलवान नदी में गिरने से मौत हुई। कुछ मंगलवार की सुबह घायल मिले थे, लेकिन बाद में उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। तीसरे, खूनी संघर्ष के दौरान चीनी सैनिक ज्यादा थे और ऊंचाई पर थे और उनके पास राड, कंटीले तार आदि थे।
इसलिए यह माना जा रहा है कि वे पहले से संघर्ष के लिए तैयार थे। सबसे पहले उन्होंने कमांडिंग अफसर और दो सैनिकों पर हमला किया। सेना दोबारा ऐसे हालात से भी निपटने की तैयारी में जुट गई है।
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इस घटना के बाद हालांकि विदेश मंत्रियों के बीच बात हुई लेकिन उस क्षेत्र में सेना को अलर्ट पर है। सेना को अलर्ट पर रखा गया है। रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि ऐसी स्थिति में सेना जवाबी कार्रवाई कर सकती है। उस इलाके में किसी दूसरे स्थान पर भारतीय सैनिक घेरा डाल सकते हैं, दूसरे जगहों पर चीनी सैनिकों को खदेड़ने की कार्रवाई हो सकती है।
एक विकल्प यह भी है कि वह जिस प्रकार चीन ने एलएसी के करीब निर्माण किया है, उसी प्रकार भारतीय पक्ष भी कर सकता है। सीमित युद्ध का विकल्प भी ऐसे मामले में सेना खुले रखती है।
इसी के साथ-साथ लद्दाख में भारत जो सड़क निर्माण कर रहा था, उसकी रफ्तार को भी बढ़ा दिया गया है। चीन को भारत के इसी सड़क निर्माण से दिक्कत है, क्योंकि इसके बाद भारतीय सेना का बॉर्डर तक जाना आसान हो जाएगा। जो चीन नहीं चाहता है।
लेकिन भारत ने तनाव के बावजूद सड़क निर्माण को ना सिर्फ चालू रखने का फैसला लिया है, बल्कि इस काम में तेजी लाना तय किया है। इसके लिए करीब 1500 मज़दूर लद्दाख के लिए रवाना भी हो चुके हैं। लॉकडाउन के वक्त कुछ मज़दूर वापस आ गए थे, लेकिन अब इन्हें वापस भेजा गया है।
जवानों की शहादत के बाद देश में चीन के खिलाफ माहौल बना है, कई शहरों में लोग सड़कों पर भी उतरे हैं. इस बीच सरकार ने भी अब चीन को आर्थिक मोर्चे पर चोट करने का मन बना लिया है। बुधवार को भारत सरकार के दूरसंचार विभाग ने बीएसएनएल को आदेश दिया कि वह अपने विभाग में मेड इन चाइना सामान की उपयोगिता को कम करें। 4जी के लिए जो टेंडर जारी किए गए हैं, उन्हें रद्द करें और फिर से जारी करें ताकि चीनी कंपनियां इसका हिस्सा ना बन सकें।
इसके अलावा दिल्ली से मेरठ के लिए जो रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम शुरू किया जाना है, उसका एक हिस्सा बनाने के लिए बीते दिनों चीनी कंपनी को ठेका दिया गया था। लेकिन अब मामला गंभीर हो गया है और दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है तब इसपर विचार किया जा रहा है और चीनी कंपनी से ठेका रद्द किया जा सकता है।