Wednesday - 30 October 2024 - 11:26 AM

भारतीय किसानों के लिए भारत -अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते के ख़तरे

जुबिली न्यूज़ डेस्क

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2020 में यह धोषणा की कि जल्द ही दोनों देशों के बीच एक व्यापक व्यापार समझौते का ‘‘पहला चरण’’ पूरा हो जाएगा।

यह घोषणा करोड़ों भारतवासियों के लिए एक झटका था – विशेषरूप से किसानों, डेयरी उत्पादकों और रेहड़ी-पटरी वालों के लिए, जिन्होंने अभी कुछ ही समय पहले ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ – आर.सी.ई.पी. के खिलाफ एक लम्बी लड़ाई जीती थी।

किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि जिन मुख्य वजहों के कारण भारत आर.सी.ई.पी से बाहर निकला है, उन्हें दरकिनार करके सरकार एक और विनाशकारी व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू कर चुकी है – इस बार अमेरिका के साथ। यह प्रस्तावित अमेरिका-भारत मुक्त व्यापार समझौता भारतीय ग्रामीण समुदाय और कृषि क्षेत्र के लिए कहीं बड़ी चुनौतियां लेकर आया है।

यह भारत की विशाल जैव-विविधता से समझौता है, स्थानीय कृषि व्यवस्था को मजबूत बनाने की प्रक्रिया को अंदेखा करता है, और खाद्य संप्रभुता की भारत की आशा को नष्ट कर देगा।

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ट्रम्प प्रशासन के चीन, मैक्सिको, कोरिया, और कनाडा के साथ हाल के व्यापार समझौते और यूरापीय संघ, यूनाइटेड किंगडम (बर्तानिया) और केन्या के साथ जारी मुक्त व्यापार समझौता वाताओं से साफ दिखता है कि अमेरिका-भारत व्यापार समझौते का उद्देश्य क्या होने वाला है।

अमेरिकी कृषि-व्यापार कंपनियां अपने भारी सब्सिडी वाले उत्पादों – जैसे सोयाबीन, मक्का, मुर्गी की टांग, और डेयरी उत्पादों – का भारत में निर्यात करने की दीर्घकालीन आशा पूरी होते हुए देख रही हैं। पिछले दो दशकों से वे प्रयास कर रहे थे पर भारत में अमेरिका से इन उत्पादों का निर्यात न केवल प्रतिबंद्धित था बल्कि उनका जोरदार प्रतिरोध भी किया जा रहा था।

अपने किसानों की रक्षा के लिए भारत ने मुर्गी उत्पादों के ऊपर 100 प्रतिशत प्रशुल्क (tariff) लगा रखा था। अमेरिकी डेयरी की गायों को ’पशु का रक्त एवं मांस मिला आहार’ खिलाया जाता है जो भारतीयों को सांस्कृतिक और धार्मिक आधार पर अस्वीकार है।

अमेरिका के साथ व्यापार समझौता इन सब प्रतिबंद्धों को खत्म कर देगा, अमेरिकी कृषि एवं डेयरी उद्पादों का भारत में आयात देश के करोड़ों पुरुष और महिला किसानों के लिए श्राप साबीत होगा और उनकी आजीविका और अस्तित्व तहस-नहस हो जाएगी।

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इसके अलावा ये भारत की जी.एम.ओ. (आनुवांशिक रूप से संशोधित बीज या पौधे ) – जिसमें जीन संपदित फसल और पशु भी शामिल हैं – को नियंत्रित करने वाली विनियमन व्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती है। पूरी संभावना है कि भारत को ‘पौध की नई किस्मों के संरक्षण के लिए संघ’ (यू.पो.ओ.वी) को मानने के लिए मजबूर किया जाएगा, जो पेप्सी जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फायदे के लिए बीज एकाधिकार (पेटेंट) की बात करता है।

( यह लेख ग्रेन पत्रिका से साभार लिया गया है )

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