Monday - 28 October 2024 - 7:55 AM

भारत को ब्रिटेन के जल परिवहन व्यवस्था से सीख लेनी चाहिए

संजय सिंह 

भारत को ब्रिटेन के जल परिवहन व्यवस्था से सीख लेनी चाहिए. भारत में इस तरह के आर्टिफिशियल चैनल निर्मित करने की ओर बढ़ना होगा . सड़कों पर बढ़ रहे दबाव को ध्यान में रखते हुए इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है.

निश्चित तौर से इंग्लैंड आर्थिक रूप से एक समृद्ध अर्थव्यवस्था है. इस अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में वहां के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

पिछले दिनों जब मैं इंग्लैंड के प्रवास पर था तो मैंने देखा कि लंदन से मैनचेस्टर के बीच की दूरी लगभग ढाई सौ मील से भी अधिक है और इस पूरी दूरी में लोगों के द्वारा जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए आर्टिफिशियल चैनल बनाए गए हैं.

इन चैनलों के माध्यम से छोटे पानी के जहाज एवं स्टीमर चल रहे हैं, जो आवागमन और सामान को बहुत आसानी से ले जा रहे हैं.

भारत दुनिया का आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा देश हो गया है. आबादी का दबाव निरंतर बढ़ रहा है . सड़क व्यवस्था के हिसाब से सर्वप्रथम भारत में दो लाइन की सड़कें बनाई गयी, फिर 4 लाइन फिर छह लाइन अब छह लाइन से 8 लाइन की तरफ बढ़ रहें है लेकिन फिर भी सड़कें कम पड़ जा रही हैं. जिस तरह से वहां वाहन बढ़ गए हैं, बढ़ते वाहनों को देखते हुए क्या हमें जो हमारे औद्योगिक शहर हैं , एक औद्योगिक शहर से दूसरे शहर को जोड़ने के लिए क्या हम इंग्लैंड की तरह छोटे-छोटे आर्टिफिशियल वाटर चैनल नहीं बना सकते हैं जिनके माध्यम से हम परिवहन व्यवस्था इस तरह से तैयार कर सकें कि जिससे माल को ढोने में आसानी हो सके.

ऐसे एक तंत्र को विकसित कर सकते हैं जो कम खर्चीला हो सकता है. छोटे पानी के जहाज स्टीमर को हम सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली ग्रीन एनर्जी की तरफ बदलें तो एक तरफ तो प्रदूषण कम होगा दूसरा सड़कों पर दबाव कम होगा तीसरा माल की ढुलाई भी सस्ती होगी.

यह एक बहुत महत्वपूर्ण काम हो सकता है. मैंने ब्रिटेन सहित दुनिया के बहुत सारे देशों की यात्रा की लेकिन मुझे यह आर्टिफिशियल वाटर चैनल तंत्र ब्रिटेन में ही देखने को मिला. मैं जब बुंदेलखंड में इस व्यवस्था को बढ़ावा देने की तरफ सोचता हूँ तो इसकी काफी संभावनाएं नज़र आती हैं.

जैसे झाँसी को बीड़ा (बुन्देलखण्ड औद्योगिक विकास प्राधिकरण ) के तहत एक बड़े औद्योगिक शहर के रूप में विकसित किया जा रहा है. वही केन बेतवा लिंक भी बन रही है जो खजुराहो के पास से चलकर झाँसी के बरुआ सागर तक आ रहा है.

प्रयोग के तौर पर इस चैनल को मध्य प्रदेश के औद्योगिक शहर सतना से जोड़ सकते हैं. हालांकि पूर्व में जितने भी बड़े कस्बे, शहर वह सब नदियों के किनारे ही बसे जहां पर व्यापार के लिए आवागमन बहुत आसान था.

लेकिन अब सड़क यातायात के होने के कारण भारत में जल परिवहन की व्यवस्थाएं नदियों में तो बहुत कम है. उसको विकसित करने की आवश्यकता लगती है.

अभी हम देख रहे हैं कि बुंदेलखंड में हालांकि कोई औद्योगिक शहर नहीं है लेकिन क्या हम इस तरह की व्यवस्था को बना सकते हैं जिसके लिए केन बेतवा और झाँसी में एक संभावना दिखाई दे सके.इन चैनलों का उपयोग सिंचाई के लिए भी हो सकता है. केन बेतवा परियोजना के बीच में कुछ नदियां पड़ती है लेकिन उन नदियों के बीच में क्या रास्ता हो सकता है, किस तरह से चीज निकल सकती हैं कि जो एक सिंचाई का भी साधन करें और वह पानी के निस्तारण की तरफ भी हो. यदि यह केन बेतवा लिंक परियोजना बनती है, तो क्या हम एक जल परिवहन व्यवस्था विकसित कर सकते हैं?

इस तरह से जो भी भविष्य में कैनाल या चैनल बनाई जा रही हैं, जल परिवहन को ध्यान में रखते हुए बनाने की कोशिश की जाए तो निश्चित तौर से हम यह मानते हैं कि एक तो यह बहुउद्देशीय हो सकती है दूसरा पर्यावरण भी ठीक होगा और ग्रीन एनर्जी के माध्यम से अगर इनको संचालित करते हैं तो कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आएगी और क्लाइमेट चेंज का जो प्रभाव है वह भी कम होगा .

मुझे लगता है कि इस व्यवस्था को भारत सरकार को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. इस व्यवस्था को बढ़ाते हुए जो माल ढुलाई के लिए आर्टिफिशियल जो मानव निर्मित जल संरचनाएं / चैनल है. उन चैनलों का निर्माण किया जाए और इसको भारत में बढ़ावा दिया जाए ताकि यहां पर सड़कों पर दबाव कम एवं माल की सस्ती ढुलाई हो सके और प्रदूषण कम हो सके.

भारत के एक प्रतिनिधि मंडल को जाकर इस व्यवस्था के अध्ययन करने की आवश्यकता है क्यूंकि जहाँ एक माल की ढुलाई होगी वहीँ दूसरी तरफ पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और रोगजार के नए अवसर भी सृजित होंगे | स्थानीय पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा.

(लेखक जल संरक्षण के क्षेत्र में विश्वप्रसिद्ध कार्यकर्ता और चिंतक हैं )

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