पुलवामा आतंकी हमले के बाद देशभर में पाकिस्तान से बदला लेने कि मांग उठ रही है. भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार के साथ-साथ सिंधु जल समझौता रद्द करने की मांग भी लगातार उठ रही है.
इस बीच भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि रावी व्यास और सतलज नदियों के पानी (भारत के हिस्से वाले पानी) को भारत पाकिस्तान नहीं जाने देगा। इसके लिए डैम बनाए जायेंगे.
गडकरी ने यह भी साफ किया कि इस संबंध में अंतिम निर्णय उनके विभाग को नहीं बल्कि पीएम और भारत सरकार को ही करना है।
गौरतलब है कि सीआरपीएफ के 40 जवानों के शहीद होने के बाद भारत ने पाकिस्तान को दिये गए तरजीही के दर्जे को वापस ले लिया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि पाकिस्तान से बातचीत का समय अब खत्म हो गया है.
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि भारत ने अभी पाकिस्तान से अपने ही अधिकार का पानी लिया है. अगर पाकिस्तान आतंकी संगठनों को समर्थन जारी रखा तो भारत पाकिस्तान के हिस्से का पानी रोकने पर भी विचार करेगा.
इसके लिए नितिन गडकरी ने अपने डिपार्टमेंट को निर्देश दिया है कि पाकिस्तान के हिस्से का पानी कहां-कहां रोका जा सकता है, इसका डीपीआर बनाकर दें.
सिंधु जल समझौता
1947 में भारत के बंटवारे के बाद सिंधु प्रणाली से जुड़ी नदियां भी दो हिस्सों में बंट गई। भारत का शुरू से कहना था कि वो नदियों के पानी को कभी नहीं रोकेगा.
हालाकिं, 1960 में दोनों देशों के बीच सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. सिंधु जल संधि को दो देशों के बीच जल विवाद पर एक सफल अंतरराष्ट्रीय उदाहरण बताया जाता है.
सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. ये इलाका पाकिस्तान (47 प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) में है. एक आंकड़े के मुताबिक करीब 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं.
सिंधु जल समझौते की प्रमुख बातें
– समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया.
– सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी नदी बताया गया जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी नदी बताया गया.
– समझौते के अनुसार, पूर्वी नदियों का पानी, कुछ अपवादों को छोड़े दें, तो भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है.
– पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए होगा लेकिन समझौते के भीतर कुछ इन नदियों के पानी का कुछ सीमित इस्तेमाल का अधिकार भारत को दिया गया.
– समझौते के अंतर्गत एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई. इसमें दोनो देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव था. ये कमिश्नर हर कुछ वक्त में एक दूसरे से मिलेंगे और किसी भी परेशानी पर बात करेंगे.
– अगर कोई देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे देश को उसकी डिज़ाइन पर आपत्ति है तो दूसरा देश उसका जवाब देगा, दोनो पक्षों की बैठकें होंगी. अगर आयोग समस्या का हल नहीं ढूंढ़ पाती हैं तो सरकारें उसे सुलझाने की कोशिश करेंगी.
– इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूंढने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन में जाने का भी रास्ता सुझाया गया है.