जुबिली न्यूज डेस्क
भारत और नेपाल के बीच तनाव घटने का नाम नहीं ले रहा है। दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव का असर समीवर्ती इलाकों में दिख रहा है। लोग परेशान है। उनका कहना है कि भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी के रिश्ते को शायद किसी की नजर लग गई है।
नेपाल और भारत के बीच सीमा कभी दीवार नहीं बनी। दोनों तरफ के लोगों का एक-दूसरे के यहां रोज का आना-जाना, लेन-देन, खाना-पीना रहा है। यह सबकुछ अनवरत चल रहा था तो इसका कारण था रिश्तेदारी, लेकिन अब सबकुछ धीरे-धीरे बदल रहा है। अब बातचीत भी बंद हो गई है। लोग एक दूसरे को दुश्मन समझने लगे हैं। एक-दूसरे के आंखों में दिखने वाला प्यार की जगह अब दुश्मनी दिखने लगी है।
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नेपाल और बिहार के पूर्वी चंपारण से सटी सीमा के आस-पास के गांवों में आजकल ऐसा ही कुछ माहौल है। पिछले दिनों जब नेपाल ने बिहार के पूर्वी चंपारण से सटी सीमा के पास लालबकेया नदी के किनारे भारत की तरफ से बनाए जा रहे तटबंध निर्माण पर आपत्ति जताई और यह दावा किया कि तटबंध का निर्माण नेपाल की जमीन पर हो रहा है। इसके बाद से तटबंध निर्माण का काम रुक गया है। इसकी वजह से यहां तनाव का माहौल है।
पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक के मुताबिक तटबंध निर्माण का लगभग 99 फीसदी काम पूरा हो चुका था, लेकिन अब नेपाली प्रशासन की आपत्ति के बाद हमें आखिरी के हिस्से का काम रोकना पड़ा है। हमारी समझ से पिलरों के इधर-उधर हो जाने से विवाद हुआ है।
कपिल ने ने आगे कहा कि शुरुआत में अस मामले को सुलझाने के लिए स्थानीय स्तर पर बातचीत हुई लेकिन बात नहीं बन पाई। अब एक नया सर्वे कराना होगा। चूंकि यह अंतरराष्ट्रीय सीमा का मसला है इसलिए हमने वस्तु स्थिति के बारे में राज्य और केंद्र सरकार को अवगत करा दिया है। अब आगे का फैसला उन्हें ही करना है।
क्या है विवाद
भारत और नेपाल के बीच विवाद कालापानी इलाके को लेकर शुरु हुआ। पिछले साल जब भारत ने अपना राजनीतिक नक्शे को जारी किया तो नेपाल ने उस पर सवाल उठाया था। नेपाल का कहना था कि भारत उनकी जमीन को अपनी बता रहा है। उसके बाद यह विवाद और तब बढ़ गया जब 13 जून को नेपाल की संसद ने देश के एक नए नक्शे को स्वीकृति दे दी और उस नक्शे में तीन इलाके लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को अपना हिस्सा बताया था।
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जून माह में नेपाल ने एक के बाद एक भारत विरोधी कदम उठाया जिसके बाद से तनाव चरम पर है। कुछ ही दिनों पहले ही नेपाल की संसद ने एक नया नागरिकता कानून भी पास किया है जिससे दोनों देशों के बीच रोटी – बेटी के रिश्तों में भी कड़वाहट आई है। नए कानून के मुताबिक किसी भारतीय लड़की की नेपाल में शादी हो जाने के बाद भी उसे नेपाली नागरिकता सात साल बाद ही मिलेगी।
फिलहाल पूर्वी चंपारण में भारत और नेपाल की सीमा पर लाल बकेया नदी के किनारे तटबंध बनाने का काम 15 जून से ही रुका हुआ है।
क्या हुआ था उस दिन
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार उस दिन नेपाल के सीमावर्ती जिले रौतहट के सीडीओ बसुदेव घिमरे अन्य अधिकारियों और सुरक्षा बलों को लेकर आए थे और वहां काम करा रहे जल संसाधन विभाग, बिहार के इंजीनियर रणबीर प्रसाद को काम रोक देने के लिए कहा। नेपाली प्रशासन का दावा है कि सीमा पर पिलर 346/6 से पिलर 346/7 के बीच तटबंध का निर्माण “नो मेन्स लैंड” पर हुआ है।
बीबीसी के अनुसार नेपाल से आ रही और बागमती में मिलने वाली लालबकेया नदी के किनारे बना यह तटबंध 2.5 किमी लंबा है। जिस जगह पर काम रुक गया है वहां तटबंध के एक किनारे भारत का गांव बलुआ गुआबाड़ी है, दूसरे किनारे पर है नेपाल का बंजराहा गांव।
तटबंध से भारत का गांव ज्यादा सटा हुआ है। कुछ घरों के दरवाजे भी तटबंध पर ही खुलते हैं। कुछ घरों के मवेशी भी तटबंध पर बंधे मिलते हैं।
दूसरी तरफ नेपाल का गांव बंजराहा सीमा से कुछ दूरी पर है। दुकानें और मकान भी नो मेन्स लैंड से करीब 25 मीटर दूर है। नियमों के मुताबिक सीमा रेखा से 9.1 मीटर दाहिने और 9.1 मीटर बाएं की जमीन को नो मेन्स लैंड कहा जाता है।
सीमा रेखा पर पिलर गड़े हैं, लेकिन जिस जगह पर नेपाल की तरफ से दावा किया गया है वहां के पिलर अपनी जगह पर नहीं है।