जुबिली न्यूज डेस्क
दुनिया के अधिकांश देशों में भारतीय रहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि दुनिया में सबसे अधिक भारतीय हैें, लेकिन जब भारत में रहने वाले प्रवासियों की बात आती है तो उनके लिए यहां का अच्छा अनुभव नहीं है।
दरअसल भारत में रहने वाले प्रवासियों को संदेह और भय की नजर से देखा जाता है। यह खुलासा माइग्रेशन पर जारी वैश्विक रैंकिंग में हुआ है जिसमें भारत को प्रवासियों के लिए सबसे बुरा देश पाया गया है।
भारत में आने वाले प्रवासियों की बात की जाए तो इस मामले में उसका रिकॉर्ड संतोषजनक नहीं है। माइग्रेशन इंटीग्रेशन पॉलिसी इंडेक्स (माइपेक्स) के एक ताजा स्टडी में भारत को 100 में से 24 अंक ही मिले हैं।
अध्ययन में यह पाया गया है कि भारत आने वाले प्रवासी समाज में एकीकृत नहीं हो पाते हैं। वे अलग-थलग रहने को विवश होते हैं।
यूरोप के दो बड़े थिंक टैंकों- बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स स्थित माइग्रेशन पॉलिसी ग्रुप और स्पेन के बार्सीलोना स्थित सेंटर फॉर इंटरनेशनल अफेयर्स ने 2004 में इस रैंकिंग को जारी करने की शुरुआत की थी। तबसे इसने संयुक्त राष्ट्र, विषय विशेषज्ञों और दुनिया की सरकारों और नीति निर्माताओं के बीच अपनी प्रतिष्ठा अर्जित की है।
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प्रवासियों की एकीकरण या समन्वय नीति से जुड़े जिन तीन मुख्य आयामों पर यह इंडेक्स काम करता है वे हैं- बुनियादी अधिकार, समान अवसर और सुरक्षित भविष्य। इन तीन आयामों के दायरे में फिर देशों की माइग्रेशन इंटीग्रेशन की पद्धतियों का मूल्यांकन किया जाता है।
अमेरिका है दसवें पायदान पर
माइपेक्स की ताजा रैंकिंग में माइग्रेशन के लिए टॉप पांच देशों में कनाडा, फिनलैंड, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल और स्वीडन शामिल हैं। टॉप टेन में एशिया का कोई देश नहीं है लेकिन अमेरिका 10वें नंबर पर है, जबकि सबसे ज्यादा प्रवासियों को खपाने वाला देश अमेरिका ही है।
प्रवासियों और शरणार्थियों को लेकर उदार रहने वाला जर्मनी भी कई कारणों से टॉप टेन की सूची से बाहर है। भारत का नाम उन पांच देशों में शामिल है जहां प्रवासियों का एकीकरण नहीं हो पाता है, मतलब प्रवास से जुड़ी नीतियां ऐसी किसी व्यवस्था की इजाजत नहीं देती हैं।
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लिहाजा लंबे समय तक रह भी जाएं, तो इन देशों में प्रवासियों को समान अधिकार, अवसर या समाज में भागीदारी कभी हासिल नहीं हो पाती है। इसीलिए इन देशों को प्रवासियों के लिए सबसे प्रतिकूल आंका गया है।
सबसे बुरा हाल है भारत का
सूची में सबसे नीचे के पांच देशों में साइप्रस, चीन, रूस, इंडोनेशिया और भारत हैं। 24 अंकों के साथ भारत सबसे निचले पायदान पर है।
जानकारों के अनुसार भारत की इस रैंकिंग का मतलब ये भी है कि प्रवासियों के लिए देश के दरवाजे थोड़ा बहुत ही खुले हैं। ये रवैया नीतियों से लेकर समाज के व्यवहार तक झलकता है। सबसे रोचक बात यह है कि दुनिया में सबसे अधिक प्रवासियों की संख्या भारतीयों की है और भारत में ही प्रवासियों के लिए अच्छा माहौल नहीं है।
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संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय प्रवास संगठन (आईओएम) की 2020 की माइग्रेशन रिपोर्ट के मुताबिक एक करोड़ 75 लाख भारतीय विभिन्न देशों में प्रवासी हैं, उसके बाद चीन और मेक्सिको का नंबर आता है। विदेशों से सबसे ज्यादा धन स्वदेश भेजने वाले प्रवासियों में भारतीयों का नंबर पहला है। 27 करोड़ से अधिक लोग यानी दुनिया की साढ़े तीन प्रतिशत आबादी बतौर प्रवासी विभिन्न देशों में रहती है।
भारत में कितने प्रवासी रहते हैं?
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पचास लाख प्रवासियों का ठिकाना है। संयुक्त राष्ट्र के 2019 के आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रवासियों की संख्या में गिरावट आई है। 1990 में उनकी संख्या साढ़े सतर लाख से ज्यादा थी और 2019 में घटकर पचास लाख से कुछ अधिक रह गई थी। दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी आयोग के जनवरी 2020 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में पनाह चाहने वालों की संख्या दो लाख से कुछ अधिक ही बताई है।
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