अविनाश भदौरिया
राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकार के बीच इन दिनों गजब स्यापा चल रहा है। उत्तर प्रदेश में कोई बलात्कार हो तो वहां के मुखिया राजस्थान में हुई बलात्कार की घटनाओं को गिनाने लगते हैं।
उत्तर प्रदेश में मजदूर पैदल घरों की ओर जा रहे हों तो राजस्थान के मुखिया उन्हें बस भेज देते हैं भले ही खुद के यहां तंगी से परेशान होकर एक पूरा परिवार आत्महत्या कर लेता हो। राजस्थान में एक साधु की हत्या हो जाती है तो यूपी की पूरी सरकार को उसकी फ़िक्र हो जाती है फिर राजस्थान वाले यूपी में हुई साधुओं की हत्या की लिस्ट बनाते हैं और उसे जारी करके पूछते हैं कि, ‘इंडिया वांट्स टू नो’। अरे भाई घंटा ‘इंडिया वांट्स टू नो’, सच तो यह है कि आपने इंडिया को इंडिया रहने ही कहां दिया है। इंडिया का अर्थ जानते हैं आप ?
इण्डिया अर्थात् भारत राज्यों का एक संघ है। यानी संसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक स्वतंत्र प्रभुसत्ता सम्पन्न समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य। एक गणराज्य या गणतंत्र, सरकार का एक रूप है जिसमें देश को एक “सार्वजनिक मामला” माना जाता है, न कि शासकों की निजी संस्था या सम्पत्ति। एक गणराज्य के भीतर सत्ता के प्राथमिक पद विरासत में नहीं मिलते हैं। यह सरकार का एक रूप है जिसके अंतर्गत राज्य का प्रमुख राजा नहीं होता। इसमे शक्तियों का पृथक्करण शामिल होता है। व्यक्ति नागरिक निकाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इस व्यवस्था में जनता ही सब कुछ है, लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन होता है। लोकतंत्र में जनता ही सत्ताधारी होती है, उसकी अनुमति से शासन होता है, उसकी प्रगति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य माना जाता है। लेकिन समझ नहीं आता कि जनता द्वारा चुने गए ये प्रतिनिधि खुद को राजा क्यों समझ बैठे हैं और ऐसे व्यवहार करते हैं। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और कोई भी जन प्रतिनिधि वो चाहे जिस पार्टी से हो या फिर जिस क्षेत्र से आता हो उसका उद्देश्य एकमात्र यह होना चाहिए कि, देश और समाज की प्रगति कैसे हो।
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अगर कोई समस्या है तो उसका समाधान कैसे हो ? लेकिन हमारे नेता जैसे कि सब कुछ भूल ही गए हैं। संसद, विधानसभा और विधान परिषदों में बैठकर कानून बनाने वाले संविधान की मूल भावना को ही बिसरा चुके हैं। तभी तो शायद उन्होंने सत्ता की कुर्सी को ही सर्वस्व मां लिया है नहीं तो महत्मा गांधी और जय प्रकाश नारायण की तरह बिना किसी पद की चाहत के भी राष्ट्रहित में काम भी किए जा सकते हैं।
आज कोई राजा राममोहन राय नहीं होना चाहता, कोई विनोवा जी नहीं बनना चाहता हाँ उनके प्रतीकों का इस्तेमाल करके चुनाव जरुर जीतने की कोशिश होती है। बड़ा दुःख होता है कि कोई भी इस पर गंभीर नहीं दिखता की कैसे दुष्कर्म जैसी घटनाओं को रोका जाए, कैसे हत्याओं पर लगाम लगे और कैसे युवाओं की उर्जा का इस्तेमाल राष्ट्र के नवनिर्माण में हो। बस एक खेल चल रहा है आकड़े पेश करने का। आईटी सेल के जरिए दुष्प्रचार का और अपनी कुर्सी बचाए रखने का।
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