न्यूज डेस्क
बीते कई महीनों से भारत के जीडीपी आंकड़ों को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। हाल ही में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने जीडीपी आंकड़े को लेकर संदेह जताया था। अब देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार (CEA) अरविंद सुब्रमण्यन की टिप्पणी सामने आई है।
अरविंद सुब्रमण्यन ने दावा किया है कि साल 2011-12 से 2016-17 के बीच देश के जीडीपी आंकड़े को काफी बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है। उन्होंने कहा कि इस दौरान जीडीपी में 7 फीसदी नहीं बल्कि सिर्फ 4.5 फीसदी की बढ़त हुई है। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमण्यन ने अपने ट्विटर एकाउंट पर शोध पत्र में प्रस्तुत किए गए सबूत भी दिए हैं।
Evidence 3. In cross-country regressions, India has normal relationship b/w growth in standard indicators and GDP pre-2011, but post-2011 it is an outlier (growth much greater than predicted by relationship). This finding–normal pre-2011, but outlier post-2011–is robust. 6/n pic.twitter.com/XhhS7iPM4U
— Arvind Subramanian (@arvindsubraman) June 10, 2019
सुब्रमण्यन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हाल में छपे एक रिसर्च पेपर में यह दावा किया है। एक अखबार में छपी रिपोर्ट के अनुसार इस रिसर्च पेपर में अरविंद सुब्रमण्यन का कहना है कि वित्तीय वर्ष 2011-12 और 2016-17 के दौरान देश की आर्थिक विकास दर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया।
Evidence 1. Growth correlations between 17 simple, macro-ish, & “independently produced” indicators and GDP break down post-2011. Pre-2011, 16 positively correlated with GDP; post-2011, 11 negatively correlated. 4/n pic.twitter.com/PRHmYlZId2
— Arvind Subramanian (@arvindsubraman) June 10, 2019
वित्तीय वर्ष 2011-12 और 2016-17 के दौरान विकास दर का आधिकारिक आंकड़ा सात फीसदी के करीब था, जबकि सुब्रमण्यन के अनुसार, असल जीडीपी करीब 4.5 फीसदी ही थी। इन वित्तीय वर्षों में विकास दर करीब 2.5% बढ़ाकर दिखाई गई।
Evidence 4. Methodological changes affected formal manufacturing sector in particular possibly because of issues related to deflators. Pre-2011, formal manufacturing moved normally with other indicators of manufacturing-index of production, exports-but perversely post-2011. 7/n,
— Arvind Subramanian (@arvindsubraman) June 10, 2019
सुब्रमण्यम के अनुसार, जीडीपी के गलत मापन का सबसे बड़ा कारण मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर(निर्माण क्षेत्र) रहा। सुब्रमण्यम ने कहा कि साल 2011 से पहले मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन, मैन्यूफैक्चरिंग उत्पाद और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और मैन्यूफैक्चरिंग निर्यात से संबंधित होता था, लेकिन बाद के सालों में इस संबंध में काफी गिरावट आई है।
सुब्रमण्यम की रिसर्च पेपर के अनुसार, जीडीपी ग्रोथ के लिए 17 अहम आर्थिक बिंदु होते हैं, लेकिन एमसीए-21 डाटाबेस में इन बिंदुओं को शामिल ही नहीं किया गया। मालूम हो कि देश की जीडीपी की गणना में एमसीए-21 डाटाबेस का अहम रोल होता है।
My @IndianExpress op-ed on impact of methodological changes on India’s GDP growth post 2011-12. Reported annual average growth is about 7%. I estimate it at about 4.5%. 1/n: https://t.co/op48xquHRu
— Arvind Subramanian (@arvindsubraman) June 10, 2019
एक मीडिया रिपोर्ट में इस बात का जिक्र था कि एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान एमसीए-21 डाटाबेस में शामिल 38% कंपनियां या तो अस्तित्व में ही नहीं थी या फिर उन्हें गलत कैटेगरी में डाला गया था। सुब्रमण्यन के अनुसार, जीडीपी के आंकड़ों में गड़बड़ी के पीछे यह बड़ा कारण रहा।
बताते चले कि भारत में नोटबंदी के समय देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने पिछले साल नोटबंदी के फैसले को देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका बताया था। अरविंद सुब्रमण्यन ने देश के आर्थिक विकास के लिए बनाई जाने वाली नीतियों पर भी सवाल उठाए हैं। सुब्रमण्यन के अनुसार, भारतीय पॉलिसी ऑटोमोबाइल एक गलत, संभवत टूटे हुए स्पीडोमीटर से आगे बढ़ रहा है।