Wednesday - 30 October 2024 - 6:07 PM

जिया हो बिहार के लाला..

  • गलवान घाटी के संघर्ष के बाद अब पूरी दुनिया जानना चाहती है बिहार और बिहारियों को
  • दुनिया भर के सर्च इंजनों पर पिछले कुछ दिनों में सबसे ज्यादा सवाल बिहार और बिहार रेजिमेंट पर पूछे गए
  • 15 जून की रात अचानक बजरंगबली की जय, बिरसामुंडा की जय के जयघोष ने चीनी सेना में पैदा कर दी थी सिहरन

राजीव ओझा

बिहारी, बिहारी मजदूर, भइये, पुरबिया..और भी पता नहीं क्या क्या। तरह तरह के चुटकुले, मजाक और व्यंग्य तो इनपर बहुत छोड़े गए लेकिन 15 जून की रात बिहार रेजिमेंट के जवानों ने जो किया वो हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया। चीन के लिए बिहार रेजिमेंट एक डरावने दुस्वप्न की तरह है। लेकिन पूरे भारत और बिहार के लोगों के लिए यह गर्व का क्षण है। हो भी क्यों न।

जब से 15 जून को गलवान घटी में बिहार रेजिमेंट के 20 योद्धा शहीद हुए हैं तब से पूरी दुनिया में करोड़ों लोग इन्टरनेट पर “बिहार” शब्द सर्च कर चुके हैं। भारत के नक़्शे में बिहार को खोजा जा रहा है लेकिन असली जिज्ञासा बिहार रेजिमेंट को लेकर है। लोग और भी बहुत कुछ जानना चाहते हैं जैसे भारतीय फ़ौज में कितनी रेजिमेंट हैं इत्यादि।

गूगल, क्वोरा, याहू, रेडिफ़ सर्च इंजिन्स पर 16 बिहार रेजिमेंट से जुड़े सवालों की बारिश हो रही है। तो आइये 16 बिहार रेजिमेंट पर बात कर लें जिसके अदम्य साहस और पक्के इरादे ने 15 जून को पूरी चीनी सेना को हिला कर रख दिया था। पूरी दुनिया की मीडिया के लिए यह विस्मयकारी था।

बिहार रेजिमेंट कोस समझने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा जब ब्रिटिश राज के दौरान 1757 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के लार्ड क्लाइव ने पटना में 34वीं सिपाही बटालियन का गठन किया था। इस बटालियन में सिपाही बिहार के भोजपुर(आरा जिला) से ही लिए गए थे।

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इसके बाद बटालियन में पूरे शाहाबाद क्षेत्र यानी वर्तमान के भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिले के लोगों को भर्ती किया गया। इस समय बिहार रेजिमेंट में पूरे बिहार, झारखण्ड, बंगाल, ओड़ीसा और दूसरे प्रान्त के लोग भी शामिल हैं। जैसा कि आपको पता है 15 जून को शहीद हुए 16 बिहार के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू तेलंगाना से थे और 4 जवान पंजाब से थे।

सन 1760 से 1763 तक बंगाल के नवाब मीर कासिम ने बटालियन के जुझारूपन से प्रभावित होकर ही पश्चिम की युद्ध शैली में दक्ष ऐसी इकाइयों का गठन किया था। मीर कासिम की ऐसी ही बिहारी बटालियंस ने ही अंग्रेजों को कई बार सबक सिखाया था। यही बिहारी या पुरबिया सैनिक आगे चलकर अंग्रेजों औपनिवेशिक सेना की बंगाल इन्फेंट्री की बैकबोन साबित हुए।

याद दिला दें कि मंगल पाण्डे भी इसी 34वीं बंगाल इन्फेंट्री से थे। समकालीन इतिहासकारों के अनुसार बिहार के सैनिकों में सीखने और परिस्थिति के अनुसार पहल करने की गजब की क्षमता होती है। एक योग्य नेतृत्व में ये बहुत अनुशासित हैं लेकिन अपनी मान्यताओं और आस्था की बेकदरी पर नाराज भी हो जाते हैं।

जैसा कि इतिहास गवाह है कि 1857 के ग़दर में बिहार के सिपाहियों की अहम् भूमिका थी। तब दानापुर छावनी से बिहारी सिपाही सोन नदी पार कर जगदीशपुर के बूढ़े जमींदार की मदद को पहुंचे थे और उन्होंने अंग्रेज सेना को नानी याद दिला दी। बिहार के इन क्रांतिकारी सिपाहियों ने कुछ दिनों के लिए आरा को अंग्रेजों के अत्याचार से आजाद करा लिया था। लेकिन इससे नाराज अंग्रेजों ने बिहार की उपेक्षा शुरू कर दी।

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आजादी के बाद भी बिहार अभी तक इससे उबर नहीं पाया है। ग़दर के बाद अंग्रेज सेना में बिहार के लोगों को लेने से परहेज करने लगे लेकिन यह सिलसिला प्रथम विश्वयुद्ध के समय टूटा लेकिन उन्हें सशस्त्र सेनाओं से दूर ही रखा गया। अंततः 1941 में बिहार रेजिमेंट का गठन हुआ।

इस समय दानापुर में बिहार रेजिमेंटल सेंटर है। दानापुर की गिनती भारत की कुछ सबसे पुरानी और बड़ी छावनियों में होती है। बिहार रेजिमेंट का युद्घोष है- ‘जय बजरंगबली’ और ‘बिरसा मुंडा की जय’। कर्म ही धर्म इस रेजिमेंट का सिद्धांत है।

बिहार रेजिमेंट को वीरता के लिए आजादी के पहले 6 मिलिट्री क्रॉस और आजादी के बाद 3 अशोक चक्र, 2 महावीर चक्र मिल चुके हैं। बिहार रेजिमेंट को 1948,1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 1999 के कारगिल युद्ध में दिखाए गए पराक्रम के लिए याद किया जाता है।

यह भी बिहार रेजिमेंट के लिए गर्व की बात है कि राष्ट्रीय रायफल्स की बटालियनों में सबसे ज्यादा 4 बटालियन बिहार रेजिमेंट से ही हैं। भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य भी बिहार रेजिमेंट से सम्बद्ध है।

अब गलवान घाटी का जब-जब नाम आयेगा तब तब बिहार रेजिमेंट और 11 राज्यों के उन वीर सैनिकों को याद किया जायेगा जो लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिन चीनी सेना को एक ऐसा दुस्वप्न दे गए हैं जो उसे बार बार दिखेगा। अब यह आपको तय करना है कि ये योद्धा ‘मार्शल रेस’ के थे या नहीं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

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