Saturday - 2 November 2024 - 7:11 PM

आर्थिक तंगी से जूझ रहे नेपाल की मदद के लिए भारत और अमेरिका आगे आये

यशोदा श्रीवास्तव

नेपाल में करीब दो साल तक के भयावह कोरोना काल का असर अब दिखने लगा है। आर्थिक मंदी चंहुओर साफ दिख रही है।

नेपाल के अर्थ व्यवस्था का बड़ा स्रोत पर्यटन की हालत खराब है। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए नेपाल सरकार ने जो छोटे छोटे प्रयास किए हैं उसका भी सकारात्मक असर नहीं दिख रहा है।

भारतीय वाहनों के कस्टम ड्यूटी से भी नेपाल को भारी आय होती है। नेपाल ने इसमें बढ़ोत्तरी कर हालात पर काबू पाने की कोशिश की है।

माल वाहक वाहनों से कस्टम शुल्क तो मिल रहा है लेकिन नेपाल के सभी नाकों से रोज जो छोटे चौपहिया वाहनों से नियमित कस्टम शुल्क मिलता था उसमें भारी कमी आई है।

पहले नेपाल प्रवेश के लिए दुपहिया वाहनों से सौ रुपए की कस्टम शुल्क ली जाती थी और चौपहिया वाहनों से तीन सौ तक लिए जाते थे। अब इसे डेढ़ गुना कर दिया गया है। साथ ही कम दूरी तक के लिए सुविधा शुल्क समाप्त कर दिया गया है। इसका असर यह हुआ है कि नेपाल में भारतीय छोटे वाहनों का जाना बहुत कम हो गया है। भारतीय वाहनों को जांच पड़ताल के नाम पर तंग भी किया जाता है। भारतीयों के साथ भी अब नेपाल के सरकारी मुलाजिम और नागरिक खासकर पहाड़ी समुदाय के लोगों का व्यवहार पहले जैसा नहीं रहा।

कोरोना काल का नेपाल पर इसलिए भयावह असर दिख रहा है क्योंकि यह छोटा राष्ट्र है और इसे ज्यादा तर दूसरे देशों के अनुदान पर निर्भर रहना पड़ता है। इस नन्हे राष्ट्र में होटल उद्योग से लगायत सारे व्यापार दो साल तक ठप रहे। आय के सारे स्रोत बंद हो गए थे ऐसे में नेपाल को बड़े संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है। इधर कारण जो भी हो, नेपाल में भारतीय रूपयों के लेन-देन पर पाबंदी लगा दी गई है।

यद्यपि भारतीय बड़े नोटों पर प्रतिबंध नया नहीं है फिर भी पांच सौ और दो हजार के भारतीय रूपयों के लेने पर काठमांडू तक में न नहीं था। अब बार्डर से कुछ दूरी तक ही बमुश्किल भारतीय सौ रूपए ही लिए जाते हैं वह भी पहले की अपेक्षा कम मूल्य पर। नेपाल में भारतीय एक रूपए की कीमत नेपाली एक रूपए साठ पैसे की है। अघोषित तौर पर अब इसे एक रूपए चालीस पैसे या इससे भी कम पर ही लिए जाते हैं।

नेपाल में भारतीय रूपयों की इतनी गिरावट हाल ही में हुई है। इसके पीछे का बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि नेपाल अपने ही रूपयों की भारी कमी से जूझ रहा है।

सरकारी कर्ज के अरबों रूपयों की वसूली न हो पाने से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है। बड़े सरकारी कर्जदार स्वयं आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं तो वे कर्ज कहां से चुकाएं। आर्थिक तंगी का आलम यह है कि सरकारी कर्मचारियों को कई कई महीनों से वेतन के लाले पड़े है। बेरोज़गारी भी बड़ी समस्या है।

जितनी भारी तादाद में नेपाली युवकों का विदेशों में पलायन जारी है, ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया।नेपाल के होटल, कैसिनो और टूरिस्ट प्लेस भारतीय युवकों के खास पसंद हुआ करते हैं लेकिन भारतीय रूपयों की पाबंदी से उनका आना जाना भी कम हुआ है।

भारतीय मूल के एक नेपाली मंत्री का कहना है कि भारतीय रूपयों की पाबंदी का असर नेपाल की अर्थ व्यवस्था पर पड़ रहा है।

जहां तक नेपाल को लेकर भारत का सवाल है तो वह हर हाल उसे आर्थिक तंगी से उबारना चाहता है। भारत का नेपाल से दस हजार मेगावाट बिजली खरीदने का निर्णय इसी दृष्टि से देखा जा रहा है। नेपाली पीएम 31 मई से तीन जून तक भारत के दौरे पर थे तभी नेपाल से बिजली खरीद पर हस्ताक्षर हुआ था।

भारत नेपाल में सतलुज जल विद्युत निगम 900 मेगावॉट का अरुण-3 और 490 मेगावॉट का अरुण-4 हाइड्रो प्रोजेक्ट विकसित करेगा। भारत और नेपाल के बीच इतने बड़े बिजली परियोजना समझौते से चीन की बौखलाहट भी सामने आई है। काठमांडू में चीनी राजदूत चेंग सोंग ने कहा है कि जब नेपाल के पास अपने ही उपयोग के लिए बिजली कम है तो भारत से बिजली की सौदेबाजी समझ से परे है।

दरअसल चीन नेपाल के डगमग आर्थिक स्थिति का फायदा उठाने की ताकत में था जो भारत की वजह से विफल हो गया। चीन नेपाल को सड़क, बिजली, कृषि विकास के नाम पर भारी भरकम कर्ज की पेशकश कर चुका है लेकिन नेपाली लोगों का मानना है कि चीन से मंहगा लोन हमारे लिए घातक हो सकता है।

नेपाल में पहले भारत और चीन के बीच ही प्रतिस्पर्धा रही है लेकिन अब अमेरिका भी नेपाल में दखल बढ़ा रहा है। चीन परस्त नेपाल के कम्युनिस्ट नेताओं के भारी विरोध के बीच एमसीसी परियोजनाओं के माध्यम से अमेरिका ने नेपाल में कई योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है।

नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड हाल ही अमेरिका के दौरे पर थे। इस दौरान अमेरिका ने नेपाल को बीस मिलियन डॉलर के अनुदान की घोषणा की है। इतना ही नहीं अमेरिका अपनी संस्था फोर्ड फाउंडेशन और राकफेलर फाउंडेशन के जरिए परोपकारी कार्यों के जरिए जरूरत मंदों की मदद के ऐलान से भी चीन सकते में है।

नेपाल में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव से चीन चिंतित है। उसे लगता है कि यह भारत और अमेरिका की उसे नेपाल में घेरने की साज़िश है।

चीन नेपाल में अमेरिका की परियोजना एमसीसी का विरोध अपने समर्थक नेपाली कम्युनिस्ट नेताओं से करा रहा है। लेकिन हर हाल आर्थिक तंगी से उबरने की कोशिश में लगे नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड बहुत फूंक फूंक कर कदम उठा रहे हैं।

इधर अमेरिका से लौटे प्रचंड एक सप्ताह के दौरे पर चीन में हैं। जाहिर है चीन और नेपाल के बीच भी कुछ समझौते होंगे। नेपाल को लेकर भारत और अमेरिका पर भी बात मुमकिन है लेकिन नेपाल विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार प्रचंड की कोशिश बीआरआई प्रोजेक्ट के जरिए चीन से अधिक से अधिक अनुदान हासिल करने की है न कि कर्ज! अब इस पर चीन का क्या रुख होता है यह देखना होगा।

Radio_Prabhat
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