Saturday - 2 November 2024 - 9:09 PM

इंडिया गठबंधन: नीतीश का खेल सोनिया ने नहीं इस नेता ने बिगाड़ा? 

पटना: विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A में अपनी फजीहत कराने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फिलहाल कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। उनके तमाम लटके-झटके और टोटके किसी काम नहीं आए। बैठक में तीन ऐसी बातें हो गईं, जिसे नीतीश की फजीहत मानी जा सकती है। अपनी इसी फजीहत की वजह से नीतीश इतने भड़के और गरम हुए कि इंडी गठबंधन ज्वाइंट मीडिया ब्रीफिंग में हिस्सा लिए बगैर चल दिए। नीतीश के साथ लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव भी निकल गए। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नीतीश कुमार ने तीन मौकों पर फजीहत झेली।

बैठक में नीतीश कुमार ने अपना भाषण हिन्दी में दिया। हिन्दी में दिए गए उनके भाषण को बैठक में शामिल डीएमके के नेता नहीं समझ पाए। एमके स्टालिन ने आरजेडी के राज्यसभा सदस्य मनोज झा से इसके अंग्रेजी अनुवाद का आग्रह किया। मनोज झा ने डीएमके नेताओं के आग्रह पर जब नीतीश के भाषण का अंग्रेजी अनुवाद बताना शुरू किया तो नीतीश यह कहते हुए भड़क गए कि अपने को हम लोग हिन्दुस्तानी कहते हैं तो हमें हिन्दी समझ में आनी चाहिए। नीतीश के गुस्से पर बैठक में किसी ने प्रतिक्रिया तो नहीं दी, लेकिन बैठक में शामिल सभी नेता उनके इस जवाब और तेवर से दंग थे।

नीतीश कुमार ने प्रसंगवश विपक्षी गठबंधन का नाम I.N.D.I.A रखने के बाद बीजेपी की पहल पर देश का नाम भारत रखने को उचित बताया। जिस वक्त वे भारत नाम रखने को भाजपा का बेहतर कदम बता रहे थे, उस वक्त सोनिया गांधी की हालत देखने लायक थी। दूसरे नेता भी आश्चर्य करने लगे। किसी ने कोई प्रतिक्रिया तो नहीं दी, लेकिन बैठक में भाजपा की उपलब्धि की चर्चा जरूर लोगों को बेमानी लगी। इससे पहले गठबंधन के I.N.D.I.A नामकरण पर भी नीतीश कुमार ने आपत्ति जताई थी। हालांकि उन्हें छोड़ कर सबने इस नाम को स्वीकार लिया था।

पहली बार विपक्षी दलों की पटना में हुई बैठक में जिस तरह के तेवर अरविंद केजरीवाल ने दिखाए थे, ठीक उसी अंदाज में नीतीश भी गठबंधन की चौथी बैठक में नजर आए। बैठक समाप्त होने पर नीतीश कुमार ने मीडिया ब्रीफिंग में शामिल होना मुनासिब नहीं समझा। वे चुपचाप निकल लिए। उनको निकलते देख लालू और तेजस्वी भी साथ हो लिए। नीतीश के इस आचरण को उनकी नाराजगी से जोड़ कर देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार बेहद खफा होने की स्थिति में ही ऐसा कदम उठाते हैं।

बैठक में एक-दो बातों को छोड़ सारी चीजें नीतीश के मनोनुकूल थीं। जैसे- राज्य स्तर पर सीट शेयरिंग का फैसला हुआ। यह नीतीश कुमार के मन की बात थी। 31 दिसंबर तक सीट बंटवारे का काम हो जाना है। नीतीश कुमार भी यही चाहते थे कि अब और देर नहीं होनी चाहिए। 30 जनवरी से साझा रैलियों की बात हुई। यह भी नीतीश के मन के ही मुताबिक है। नीतीश का गुस्सा सिर्फ इस बात को लेकर माना जा रहा है कि ममता ने मल्लिकार्जुन खरगे को पीएम कैंडिडेट बनाने का प्रस्ताव रखा तो अरविंद केजरीवाल ने तुरंत समर्थन कर दिया। संयोजक बनाने की बात हवा में उड़ गई।

बेंगलुरु में विपक्षी गठबंधन की बैठक हुई तो वहां भी नीतीश का ऐसा ही रूप देखने को मिला था। वहां से भी वे बिना ज्वाइंट प्रेस कान्फ्रेंस में हिस्सा लिए चल दिए थे। साथ में लालू भी थे। तब लालू का मन रुकने का था, लेकिन नीतीश की हड़बड़ी की वजह से उन्हें भी निकलना पड़ा। इस बार भी नीतीश के तेवर में कोई बदलाव नहीं आया। जिन दिनों संयोजक की बात शुरू हुई थी, उसी वक्त लालू ने सबसे पहले बताया था कि संयोजक की कोई जरूरत नहीं। कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना है तो अलग से संयोजक की क्या जरूरत। स्थितियां देख कर तो यही लगता है कि लालू और नीतीश के बीच शीत युद्ध चल रहा है, जो बाहर से तो नहीं दिखता, लेकिन भीतर से दोनों भारी गुस्से में हैं।

Radio_Prabhat
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