आनंद प्रकाश श्रीवास्तव
हर साल की तरह इस बार भी स्वतंत्रता दिवस मनाने का उत्साह जोरों पर है – आजादी के अमृत काल का नारा भी बुलंदी पर है – और हर देश प्रेमी राष्ट्रभक्ति की पावन भावना से ओत प्रोत है। पर इस बार नया क्या करें ? क्या बदलाव करें अपनी सोच में, अपने कर्मो में – जिससे देश और ऊंचाई पर पहुंचे ? मेरा एक सुझाव है।
आज़ादी का ये साल उन लोगों को समर्पित करें जो बंटवारे की पीड़ा के बावजूद देश छोड़ कर नहीं गए – जिन्होंने यहीं की मिट्टी में मिलना पसंद किया – जिनके लिए एक अलग मुल्क बनाया जा रहा था, पर जो नहीं गए।
जिन्हे सब सहूलियतें दी जा रही थी – पर जो नहीं गए। जिनके मज़हबी तहज़ीब से मैच करता हुआ एक नया मुल्क उन्हें आगोश में लेने के लिए तैयार था – जहाँ उन्हें पूरा आराम होता – दंगे फसाद की कोई गुंजाईश नहीं होती – पर वो नहीं गए। उन्होंने यहीं मरना पसंद किया, यहीं की मिट्टीकी खुशबू उन्हें अच्छी लगी, यहीं की हवा उन्हें रास आती रही। वे उनके साथ रहे जिनसे उनका धरम मैच नहीं करता था, रस्मो रिवाज़ मैच नहीं करते थे, पूजा पद्धति मैच नहीं करती थी – मैच करते थे तो बस दिल, मैच करते थे कुछ कॉमन इंटरेस्ट – और मिलजुल कर रहने का एक इंसानी जज़्बा।
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सैंतालीस में जिन बड़े बूढ़ों ने ये डिसीज़न लिया – उनमे से ज्यादातर आज नहीं होंगे। किसी ने लिखा है – सजा के फ़ुरक़तें अपनी पुराने कागज़ पर, अजीब लोग थे, जो दास्तान छोड़ गए, हमें गिला भी है अनवर तो सिर्फ उनसे है, जो लोग खौफ से हिन्दोस्तान छोड़ गए।
पर जो यहाँ रह गए अब उनकी भी दास्ताने भर रह गयीं हैं यहाँ – उनकी औलादें रह गयीं है यहाँ, उनके नाती पोते रह गए है यहाँ, उनकी अगली पीढ़ियां अभी भी हैं यहाँ । ये हम बाकी बचे हुए लोगों की जिम्मेदारी थी कि हम उनकी देश प्रेम की भावना की कद्र करें और उन्हें, उनके परिवारों को कोई तकलीफ न होने दे। क्या हम सबने अपना काम बखूबी किया ?
कभी कभी एक आवाज़ सुनता हूँ कि ‘इन सबको पाकिस्तान भेज दो’ – तो दिल को बड़ी तकलीफ होती है। जिस देश ने हमेशा वसुधैव कुटुम्बकम की फिलोसफी फॉलो की हो – वहां से ऐसी आवाज़ें ? क्यों इतने पत्थर दिल हो गए हम ?
कोई कहता है यहाँ औरंगज़ेब के नाम की सड़क क्यों है – कोई कहता है ये सब आतंकवादी हैं। रियली ? जो ऐसा कहते हैं उन्हें खुद भी विश्वास नहीं है कि सारे लोग ख़राब हैं, वो भी जानते हैं कि एक आम आदमी अमूमन अमन पसंद होता है, रिश्ते निभाना चाहता है, मिल जुल के रहना चाहता है।
अगर हमें सड़कों के, शहरों के नाम पसंद नहीं तो सरकारों को ब्लेम करें – इन्हे क्यों दोषी ठहराते हैं ? क्या कसूर है इनका ? कि इनके बाप दादाओं ने यहीं की सरज़मी पर मरना पसंद किया ? अगर आज वो ज़िंदा होते तो क्या ये नहीं सोच रहे होते की ये रविश है तो कल देखना हम कफ़न को तरस जायेंगे, क्या वतन में ही रहते हुए हम वतन को तरस जायेंगे ? अगर वो आज सामने आ जाएँ तो हम सीधे खड़े हो पाएंगे उनके सामने, या हमारी गर्दन झुक जाएगी?
पीछे रह गए सारे मुसलमान भाई बहनों और उनके परिवारों को जो वतन से मुहब्बत करते हैं, अगर ज़रा सी भी तकलीफ होती है – तो मैं समझता हूँ कि हम सब जिम्मेदार है। उनके मन में अगर कोई डरावने ख्याल आते हैं – तो हम जिम्मेदार है।
ये हमारा फ़र्ज़ था की हम उन्हें इतना कम्फर्ट देते की उनके मन में ये ख्याल ही न आये। मैं क्रिमिनल्स और देशद्रोहियों की बात नहीं करता, आप बेशक उन्हें जेल में डाल दें। और वो आपको हर धर्म, हर जाति में मिलेंगे।
पर आज कहाँ हैं हमारे बचपन के नक़ी अंकल जो रात में हमारे घर रुकते थे और करबला की कहानियां सुनाते थे ? कहाँ गए मेहँदी साहेब जिनकी गोद में पिता से साथ मुशायरे देखते देखते सर रख कर सो जाते थे हम ? कहाँ गए ऐनुल अंकल जिनका फोटो स्टूडियो पिताजी सँभालते थे जब वो नमाज़ पढ़ने जाते थे ?
कहाँ गए प्रोफेसर जहीर खान, जिनके पास पिताजी ने अंग्रेज़ी सीखने के लिए भेजा और जिन्होंने हमें अंग्रेज़ी के साथ ज़िंदगी की ढेरों बारीकियां भी सिखाई ? कहाँ गयी वो थाली जिसमे हम और क़ैस भाई साथ साथ खाना खाते थे ? क्यों नहीं वापस ला सकते हम वो दिन ?
मोदी जी जब दूसरी बार चुनकर आये तो उन्होंने ‘सबका साथ, सबका विकास’ में एक और शब्द जोड़ा – ‘सबका विश्वास’। राजनैतिक स्तर पर यह विश्वास पैदा करना नेताओं का काम है – पर सामाजिक स्तर पर कौन करेगा इसे ? ये तो हम सब को ही करना है न ?
तो आईये इस स्वतंत्रता दिवस पर ये संकल्प लें कि समाज निर्माण की अपनी भूमिका से हम कभी पीछे नहीं हटेंगे और आपसी प्यार और मोहब्बत बढ़ाने में हमेशा अपना योगदान करते रहेंगे।
अंत में एक रिक्वेस्ट – आप सबने कभी न कभी अपने बचपन में, अपनी युवावस्था में, अपने परिवारों में ऐसे ढेरों दृश्य देखे होंगे जब हम इतने बंटे हुए नहीं थे – जब हम एक परिवार की तरह साथ रहते थे- एक दूसरे के त्योहारों में शिरकत करते थे – एक साथ घूमते थे, हंसी मज़ाक करते थे, एक दूसरे के दुःख से दुखी होते थे।
ऐसे अनुभवों को यहाँ शेयर करें। अगर हमारे बीच 1 और 3 का रेशियो है, तो आइये हम तीनो मिलकर एक छूटे हुए भाई का हाथ पकड़ लें, और उसे भी साथ लेते चलें – कोई आफत आये तो सबसे पहले हम तीन ढाल बनकर उसकी सुरक्षा के लिए खड़े हों ।
हम ऐसा कर पाए तो कौन रोक सकता है हमें दुनिया का सबसे शानदार मुल्क बनने से – एक मिसाल कायम करने से, जो हमारा देश सदियों से करता आया है।
जय हिन्द !