Tuesday - 28 January 2025 - 1:38 PM

बढ़े आयात शुल्क ने लगाई खाद्य तेलों में आग, मंहगी हुयी रसोई की थाली

जुबिली न्यूज डेस्क 

लखनऊ, केंद्र सरकार द्वारा पॉम आयल सहित कई अन्य खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने के फैसले के बाद आम लोगों की जेब पर खासा असर पड़ने लगा है। जहां खाद्य तेलों की मंहगाई के चलते रसोई का बजट बिगड़ा है वहीं बेकरी, कनफेक्शनरी, कॉस्मेटिक्स सहित कई अन्य कारोबार पर भी असर पड़ा है।

उत्तर प्रदेश के बाजारों में पहली बार खाद्य तेलों के दाम सरसो तेल से भी उपर निकल गए हैं। बीते कुछ महीनों में ही खाद्य तेलों के दाम 13 से 15 फीसदी तक बढ़े हैं और इसका असर रसोई से लेकर अर्थव्यवस्था तक पर नजर आने लगा है। राजधानी लखनऊ के खुदरा बाजारों में दीवाली से शुरु हुयी खाद्य तेलों की तेजी थमने का नाम नहीं ले रही है और इन दिनों इसके दाम सरसों तेल के आसपास चल रहे हैं। लगातार बढ़ रही खाद्य तेलों की कीमतों के चलते जहां रसोई की थाली मंहगी हो रही है वहीं इसका असर रेस्टोरेंट, बेकरी व कई अन्य कारोबार पर भी पड़ा है।

कारोबारियों का कहना है कि खाद्य तेलों में आयी तेजी का असर रेस्टोरेंटों से लेकर बेकरी और यहां तक कि कास्मेटिक्स बनाने वालों पर भी पड़ा है। उनका कहना है कि पाम आयल का इस्तेमाल कई तरह के साबुन, बिस्कुट से लेकर नमकीन और अन्य चीजों के बनने में होता है। आयात शुल्क बढ़ने से पाम आयल काफी मंहगा हुआ है जिसका असर सभी पड़ना लाजिमी है।

गौरतलब है कि सरकार द्वारा सितंबर में आयात शुल्क बढ़ाने का निर्णय लिया गया जिसके बाद इसे परिष्कृत पाम तेल के लिए 32.5% और कच्चे तेल के वेरिएंट के लिए 20% तक कर दिया गया। संशोधन के बाद प्रभावी आयात शुल्क 13.75% से बढ़कर 33.75% हो गया। हाल के महीनों में कच्चे पाम तेल की लागत में 40% से अधिक की वृद्धि हुई है, जो दिसंबर 2024 तक 1,280 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है। यह उछाल पूरे स्पेक्ट्रम में फैला हुआ है, जो सूरजमुखी और सोयाबीन तेल की कीमतों को काफी प्रभावित कर रहा है।

मंहगाई के खिलाफ व्यापारी संगठनों ने उठायी आवाज

खाद्य तेलों की मंहगाई के खिलाफ उत्तर प्रदेश के व्यापारी संगठनों ने भी आवाज उठायी है और केंद्र सरकार से आयात शुल्क घटाने को कहा है। उत्तर प्रदेश आदर्श व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजय गुप्ता ने खाद्य तेलों की मंहगाई के मामले में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि आम जनता इससे परेशानी उठा रही है।

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उन्होंने कहा कि रसोई की रोजमर्रा की जरुरतों पर किसी तरह का कर होना ही नहीं चाहिए पर उल्टा यहां तो आयात शुल्क खासा बढ़ा दिया गया है। गुप्ता कहते हैं कि आयात शुल्क बढ़ने के चलते खाद्य तेलों की मंहगाई बढ़ी है और बाजार में मिलावटी सामान आने की आशंका बढ़ गयी है। उनका कहना है कि पाम आयल से लेकर अन्य तेलों के आयात शुल्क निर्धारण के मामले में सरकार को बीच का रास्ता निकालना चाहिए ताकि किसानों और ग्राहकों दोनो का हित संरक्षित हो सके।

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