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मल्लिका दूबे
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से सीधे जुड़े गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से 10 प्रत्याशियों की सियासी किस्मत रविवार को ईवीएम में कैद हो गयी। मतदान समाप्त होने के बाद अब यह कहने में गुरेज नहीं कि यहां भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन के बीच सीधी टक्कर हुई है।
उप चुनाव में यहां पहली बार बाजी मारने वाली समाजवादी पार्टी बसपा से गठबंधन के चलते बने समीकरणों से अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है तो भाजपा को मुख्यमंत्री योगी द्वारा यहां ताबड़तोड़ किए गए चुनावी कार्यक्रमों पर पूर ऐतबार है। इस बीच मतदान समाप्त होने के बाद परिणाम को लेकर कयासबाजी का नया आधार बना है इस संसदीय क्षेत्र में उप चुनाव की तुलना में करीब दस फीसद बढ़ा वोट प्रतिशत। सीधी टक्कर वाली दोनों पार्टियां इस बढ़े वोट प्रतिशत को अपने लिए फलदायी मान रही हैं। इस बार के चुनाव में 57.51 फीसद वोट पोल हुए हैं जबकि उप चुनाव में 47.78 प्रतिशत ही पोलिंग हुई थी।
गोरखपुर संसदीय सीट वर्ष 1991 से लेकर वर्ष 2014 के चुनाव तक भाजपा के कब्जे में रही। इसके पहले 1989 के चुनाव में हिन्दू महासभा के बैनर तले ब्राह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने विजय पताका फहराया था। इसके बाद वह 1991 और 1996 के चुनाव में भाजपा के सिम्बल पर जीते।
1998 से सियासत की जिम्मेदारी उनके उत्तराधिकारी और संप्रति गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने संभाल ली। वर्ष 1998 से लेकर वर्ष 2014 तक लगातार पांच चुनावों में योगी ने भाजपा के लिए यह सीट जीती। 2017 में सूबे में भाजपा को विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने पर योगी आदित्यनाथ को पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया तो यहां उप चुनाव की नौबत आयी।
मार्च 2018 में हुए उप चुनाव में सपा को कट्टर प्रतिद्वंद्वी रही बसपा का समर्थन मिला और यहां उसने परिणाम को ऐतिहासिक बना दिया। उप चुनाव में हार से बीजेपी और योगी आदित्यनाथ को तगड़ा झटका लगा। राजनीतिक जानकार उप चुनाव में भाजपा की हार के लिए सपा-बसपा के जातीय समीकरणों के जुटान के साथ ही गिरे मतदान प्रतिशत को भी जिम्मेदार मानते हैं। गोरखपुर के उप चुनाव में 47.78 प्रतिशत मतदान हुआ था जबकि इसके पहले 2014 के आम चुनाव में 54.64 प्रतिशत।
उप चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र के कैम्पियरगंज विधानसभा क्षेत्र में 50.62 प्रतिशत, गोरखपुर ग्रामीण में 48.62, पिपराइच में 53.92, गोरखपुर शहर में 38.02 और सहजनवा में 49.93 प्रतिशत वोट पड़े थे। इस आम चुनाव में कैम्पियरगंज में 59.25, गोरखपुर ग्रामीण में 56.30, पिपराइच में 58 गोरखपुर शहर में 54 और सहजनवा में 60 फीसद वोटिंग हुई है।
ऐसा माना जाता है कि 2018 के उप चुनाव में बीजेपी के वोटर, खास तौर पर गोरखपुर शहर क्षेत्र में उदासीन बने रहे जिसके चलते मतदान में गिरावट दर्ज की गयी। पार्टी के नेता यह मानते हैं कि बीजेपी खेमे का पूरा वोट पोल न होने से वोटिंग में कमी आयी और पार्टी की हार की एक प्रमुख कारण बनी। इस चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने जबरदस्त मशक्कत की।
अपने वोटरों को रिझाने के साथ ही उनका खासा जोर अपने खेमे के वोटों को पोल कराने पर भी था। गोरखपुर में इस बार 54 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गयी है जो उप चुनाव की तुलना में उप चुनाव की तुलना में सोलह प्रतिशत अधिक है।
शहर में बढ़े इस मत प्रतिशत के साथ ही पूरे संसदीय क्षेत्र में करीब दस प्रतिशत वोटिंग बढ़ने से भाजपा के अंदरखाने में आश्वस्ति का माहौल है। उधर गठबंधन समर्थकों का मानना है कि उप चुनाव में बसपा ने सपा को मौखिक समर्थन दिया था जबकि इस चुनाव में औपचारिक गठबंधन था। बढ़ा वोट प्रतिशत इसी की देन है। किसका दावा कितना मजबूत है, यह तो 23 मई को मतगणना परिणाम से जाहिर होगा।