जुबिली न्यूज डेस्क
कर्नाटक में हिजाब को लेकर मचे विवाद पर पाकिस्तान सरकार में विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भी अपनी राय रखी है।
कुरैशी ने ट्वीट कर कहा है कि मुसलमान लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इस मौलिक अधिकार से किसी को वंचित करना और हिजाब पहनने के लिए आतंकित करना पूरी तरह दमनकारी है। दुनिया को ये समझना चाहिए कि ये मुसलमानों की घेटो (एक समुदाय की तंग बस्ती) में रहने को मजबूर करने की भारत की योजना का हिस्सा है।
Depriving Muslim girls of an education is a grave violation of fundamental human rights. To deny anyone this fundamental right & terrorise them for wearing a hijab is absolutely oppressive. World must realise this is part of Indian state plan of ghettoisation of Muslims.
— Shah Mahmood Qureshi (@SMQureshiPTI) February 9, 2022
हालांकि कुरैशी से पहले सूचना प्रसारण मंत्री चौधरी फवाद हुसैन की भी प्रतिक्रिया आई थी।
फवाद हुसैन ने ट्विटर पर लिखा है, “मोदी के भारत में जो हो रहा है वो डरावना है। भारतीय समाज अस्थिर नेतृत्व में तेजी से नीचे आ रहा है। हिजाब पहनना एक व्यक्तिगत पसंद है, ठीक वैसे ही जैसे किसी भी दूसरी ड्रेस को पहनने के लिए लोग स्वतंत्र हैं।”
What’s going on in #ModiEndia is terrifying, Indian Society is declining with super speed under unstable leadership. Wearing #Hujab is a personal choice just as any other dress citizens must be given free choice #AllahHuAkbar
— Ch Fawad Hussain (@fawadchaudhry) February 8, 2022
हालांकि चौधरी फवाद हुसैन से पहले पाकिस्तान की महिला अधिकार कार्यकर्ता मलाला युसूफजई भी हिजाब-विवाद को लेकर टिप्पणी कर चुकी हैं।
ट्विटर पर उन्होंने एक कॉलेज छात्रा के बयान को ट्वीट किया है, जिसमें वो लड़की कहती है कि कॉलेज उन्हें हिजाब और पढ़ाई में से एक को चुनने के लिए मजबूर कर रहा है।
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क्या है मामला
पिछले सप्ताह कर्नाटक के उडुपी में हिजाब पहनकर कॉलेज जाने को लेकर विवाद शुरू हुआ था। कॉलेज प्रशासन का कहना है कि छात्राओं को कॉलेज की यूनिफॉर्म में आना चाहिए। इसके बाद इसका विरोध शुरू हो गया। बाद में हिजाब समर्थक और हिजाब विरोधियों के बीच ठन गई।
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हिजाब पहनने से रोके जाने पर छात्राओं ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। उनका कहना है कि हिजाब पहनना उनका संवैधानिक अधिकार है। लिहाजा उन्हें इससे रोका नहीं जा सकता।
कर्नाटक हाई कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई चल रही है।