जुबिली न्यूज़ डेस्क
देश की केंद्र सरकार महंगाई को लेकर कितनी सजग है इस बात का अंदाजा आप इससे लगा सकते है कि महंगाई बढ़ने की बात करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी पहले से ज्यादा हुई है। इस बात का खुलासा आईएएनएस-सीवोटर के बजट पर हुए एक सर्वे में सामने आया है।
देश में मोदी सरकार बनने के बाद से महंगाई बेलगाम हो गई है। देश की लगभग तीन चौथाई जनता को ऐसा लगता है जोकि अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। इस बार 72.1 प्रतिशत लोगों ने ये स्वीकार किया है कि महंगाई बढ़ गई है जबकि 2015 में ये प्रतिशत मात्र 17.1 था।
किये गये सर्वे में ये बात सामने आई है कि साल 2020 में, केवल 10.8 प्रतिशत लोगों ने ये बात कही है कि कीमतों में गिरावट आई है जबकि, 12.8 प्रतिशत ने कहा कि कुछ भी नहीं बदला है। 2014 के बाद से आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार का ये सबसे खराब प्रदर्शन है।
देश के 46.4 प्रतिशत लोगों को ये लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यकाल में आर्थिक मोर्चे पर अब तक का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। तो वहीं 31.7 फीसदी लोगों का ऐसा मानना है कि प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर है।
साल 2010 के बाद से किसी भी सरकार का ये सबसे खराब प्रदर्शन है। बीते एक साल में महंगाई के प्रतिकूल प्रभाव को लेकर 38.2 प्रतिशत लोगों ने बताया कि इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है, जबकि 34.3 प्रतिशत लोगोको ऐसा लगता है कि थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ा है।
48.4 प्रतिशत लोगों का ये कहना है कि आम आदमी का जीवन स्तर पिछले एक साल में खराब हुआ है, जबकि 28.8 फीसदी लोगों ने कहा कि इसमें सुधार हुआ है और 21.3 फीसदी ने कहा कि यह पहले जैसा ही है।
हालांकि, आने वाले समय को लेकर लोग काफी आशावादी नजर आ रहे हैं। किये गये सर्वे में शमिल 37.4 प्रतिशत लोगों का ऐसा मानना है कि आने वाले एक साल में आम आदमी के जीवन स्तर में सुधरेगा। वहीं 25.8 प्रतिशत लोगों को ऐसा लगता है कि जीवन का स्तर पहले से खराब हो जाएगा, जबकि 21.7 प्रतिशत लोगों का कहना है कि यह जैसा है वैसा ही रहेगा।
सर्वे में ये बात भी सामने आई है कि आधे से अधिक लोगों का ऐसा मानना है कि सामान्य जीवन स्तर के लिए चार लोगों के परिवार को कम से कम 20,000 रुपये प्रति महीने की जरूरत है, जबकि 23.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि यह आंकड़ा 30,000 रुपये प्रति माह बताया
इस आंकड़े को एक लाख से अधिक बताने वाले लोग बहुत ही कम है। सर्वे में जब लोगों से पूंछा गया कि क्या इस आय को कर मुक्त होना चाहिए, तो 81.4 प्रतिशत ने हां में जवाब दिया।
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किये गये इस सर्वे से ये साफ़ है कि घरेलू मोर्चे पर सरकार के सामने चुनौतियां बहुत हैं क्योंकि ज्यादातर लोग शिकायत कर रहे हैं कि उनकी आय या तो स्थिर हो गई है या खर्च काफी बढ़ गया है। सर्वे में शामिल 43.7 प्रतिशत लोगों ने कहा कि हालांकि आय स्थिर बनी हुई है, लेकिन खर्च में वृद्धि हुई है, जबकि अन्य 28.7 प्रतिशत ने कहा कि पिछले एक वर्ष में आय कम हुई है लेकिन खर्च बढ़ गया है।
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इसके अलावा लगभग दो तिहाई या 65.8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि पिछले साल की तुलना में खर्च काफी बढ़ गया है, जबकि 30 प्रतिशत लोगों ने कहा कि खर्च तो बढ़ा है, लेकिन अभी भी बेकाबू नहीं हुआ है।