जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना का खतरा अभी भी दुनिया से टला नहीं है। कोरोना की तमाम वैक्सीन और दवाएं आने के बाद भी कोरोना दुनिया को परेशान किए हुए हैं। मौजूदा वक्त में भी दुनिया भर में करीब पांच लाख से अधिक कोरोना के नये मामले सामने आ रहे हैं।
इस सबके बीच अब एक नई स्टडी में कोरोना को लेकर एक चौकाने वाला खुलासा हुआ है जो डरावना है। रिपोर्ट में सामने आया है कि कोरोना का असर 10 ढ्ढक्त अंक खोने के बराबर है।
यह स्टडी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों की एक टीम ने किया है। रिचर्स में पता चला कि कोरोना संक्रमण एक स्थाई संज्ञानात्मक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इसमें दावा किया गया है कि कोरोना संक्रमण का मस्तिष्क पर असर 20 साल तक बना रह सकता है।
कोरोना से संक्रमित मरीजों में संक्रमण के बाद भी थकान, शब्दों को याद करने में समस्या, नींद की समस्या, चिंता और पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (क्कञ्जस्ष्ठ) जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने कोरोना के 46 मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन किया है। ये सभी हॉस्पिटल में भर्ती थे। इनमें से 16 को आईसीयू में भी रखा गया था।
इन सभी कोरोना मरीजों को मार्च से जुलाई 2020 के बीच में अस्पताल में भर्ती कराया गया। इन मरीजों के संक्रमण के छह माह बाद कॉग्निट्रॉन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर टेस्ट कराए गए। ये टेस्ट मेमोरी, ध्यान और तर्क जैसे मानसिक पहलुओं को मापने वाले थे।
इसके अलावा अवसाद, चिंता और अन्य तनाव संबंधी विकारों का भी आकलन किया गया। आईसीयू में भर्ती मरीजों पर कोरोना का अधिक असर देखने को मिला।
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कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एनेस्थीसिया विभाग के प्रो. डेविड मेनन के अनुसार, नियमित उम्र बढऩे पर मनोभ्रंश और संज्ञानात्मक हानि आम बात है, मगर कोरोना के मामलों में जो पैटर्न देखा गया, वो अलग था।
रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना संक्रमण के छह माह से अधिक समय के बाद भी प्रभावों का पता लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं कोरोना संक्रमण के बाद इन असरों के ठीक होने की दर भी काफी धीमी है।
इंपीरियल कॉलेज लंदन में डिपार्टमेंट ऑफ ब्रेन के प्रो. एडम हैम्पशायर ने कहा, सिर्फ इंग्लैंड में कोरोना से संक्रमित हजारों लोगों को गहन देखभाल से गुजरना पड़ा। कई लोग काफी गंभीर बीमार थे, लेकिन उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया।
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प्रो. हैम्पशायर ने कहा, इसका मतलब है कि यहां बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो अभी भी कई महीनों बाद भी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। हमें तुरंत यह देखने की जरूरत है कि इन लोगों की मदद के लिए क्या किया जा सकता है? रिसर्चर के अनुसार, यह पहली बार है कि गंभीर कोरोना के बाद के प्रभावों के संबंध में इस तरह का कोई रिसर्च की गई।