डॉ. सीमा जावेद / निशांत सक्सेना
हजारों साल पहले मौखिक रूप से रचित, संकलित और संहिताबद्ध, दुनिया के सबसे पहले ग्रन्थ वेदों को सिर्फ यूं ही नहीं अद्भुत माना जाता है। यह दरअसल यह मौखिक परंपरा और उसकी शानदार निष्ठा और सुसंगति है। जिसके ज्ञान को संरक्षित करने के लिए हमारे ऋषी मुनियों ने मनुष्य के चित्त को ही कागज बना दिया।
आज की इक्कीसवीं सदी में मस्तिष्क विज्ञान पर रिसर्च में लगे वैज्ञानिकों को एक बार फिर इनके लाजवाब और बेमिसाल होने के प्रमाण मिले हैं जो इनके इंसानी दिमाग पर होने वाले पॉजिटिव असरात साफ़ ज़ाहिर करते हैं ।
वैज्ञानिकों ने पाया कि वेदों का हर दिन उच्चारण करने वालों की दिमागी संरंचना और ज्यादा लचीली हो जाती है और उसकी कार्यक्षमता सामान्य से बढ़ जाती है। उनकी याददाश्त सामान्य से काफी ज्यादा हो जाती है। यानी अगर साइंस की मने तो वेदो का पाठ करने वालों को पार्किन्सन और अलज़ाइमर जैसी बुढ़ापे में होने वाली दिमागी बिमारियों की संभावना नहीं है।
सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च, (सीबीएमआर) लखनऊ के वैज्ञानिकों का तो कहना है कि इस मौखिक परंपरा की निष्ठा और सुसंगति को बनाए रखना कोई मामूली बात नहीं और इसके लिए मस्तिष्क की ज़बरदस्त कार्यक्षमता शामिल है। उनके ऐसा मानने की वजह है कि उनके ताज़ा अध्ययन से पता चला है कि इस मौखिक परंपरा के विद्वानों के मस्तिष्क में एक आम इन्सान से अपेक्षाकृत अधिक ग्रे और वाइट मैटर होता हैं।
गौरतलब है कि पार्किन्सन और अलज़ाइमर ऐसी बीमारियाँ है जिनका आज भी जिनको रिवर्स करके पूरी तरह ठीक करने की कोई दवा या इलाज नही खोजा जा सका है। बल्कि सच यह है कि इंसानी दिमाग़ आज भी एक ऐसी गुत्थी है जिसे सुलझाने की लाखों कोशिशों के बावजूद वोह उलझा ही हुआ है चाहे चाहे वोह डिप्रेशन का मरीज़ हो या डीमेनशिया या फिर कोई अन्य डिसऑर्डर।
मस्तिष्क और उसके संचार तंत्र में आई किसी भी गुथी को सुलझाना आसान नहीं है। ऐसे में उसका सुचारू रूप से काम करना विशेष कर बढ़ती उम्र के साथ एक ऐसा तोहफा है जिसका जवाब नहीं।जहाँ एक तरफ दिमाग के व्हाइट मैटर और इसमें होने वाली ख़ून की सप्लाई महत्वपूर्ण है वहीं जब हम सोचते हैं, चलते हैं, बोलते हैं, सपने देखते हैं और जब हम प्रेम करते हैं तो यह सब इमोशन दिमाग़ के ग्रे मैटर में होते हैं तो दूसरी तरफ मस्तिष्क की प्राथमिक संदेशवाहक सेवा के रूप में, माइलिनेशन व्हाइट मैटर को शरीर के एक सिरे से दुसरे सिरे तक एक सेकंड के हजारवें हिस्से से भी कम समय में सन्देश पहुँचाने का काम करता है । जैसे आप चलने का सोचें फ़ौरन कदम उठ जाते हैं । हाथ से खाना मुंह तक पहुँच जाता है।
अनुसंधान निष्कर्ष
शोध के निष्कर्षों को साझा करते हुए, सीबीएमआर के निदेशक, प्रो. आलोक धवन ने कहा, “वैदिक मन्त्रों का पाठ और उन्हें याद रखने के अभ्यास से मस्तिष्क के भौतिक स्वरुप पर प्रभाव पड़ता है। इतना, कि मानव मस्तिष्क की संरचनात्मक प्लास्टिसिटी और इसके अंतर्निहित तंत्रिका सबस्ट्रेट्स इससे प्रभावित होती है।”
ज्ञात हो कि शायद हमारे बुजुर्गों को इस बात का ज्ञान सदियों पहले से था और समय के साथ भौतिकवाद की अंधी दौर में हम यह भूल गए कि हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ही हमारी सबसे बड़ी दौलत है। अधुनिक विज्ञान भी मस्तिष्क की शक्ति के आगे नतमस्तक है और अब यह बात साफ़ हो चुकी है कि हमारे दिमाग में असीमित शक्ति है जो प्लेसिबो इफ़ेक्ट के ज़रिये हमारी हर बीमारी का इलाज करने से लेकर, मनोबल के रूप में हमें हिमालय के सबसे ऊँचे हिमशिखर तक चढ़ने के लिए प्रेरित कर सकती है।
यानी दिमाग तन्दुरुस्त तो सारी दुनिया मुठी में और शायद दिमाग की इन्हीं छमताओं के विकास को सुद्रढ़ करने के लिए इस परंपरा का जनम हुआ।
यह शोध, जिसके निष्कर्ष प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुए हैं, बताता है कि वैदिक शिक्षा मस्तिष्क की प्लास्टिसिटी में सुधार करती है, श्वसन क्रिया में सुधार के अलावा संवेदी कार्य, सीखने और स्मृति कौशल को बढ़ाती है।
अध्ययन पद्धति और परिणामों का विवरण देते हुए, इस शोध में शामिल प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. उत्तम कुमार ने बताया, “इस अध्ययन में 25 वयस्क वैदिक विद्वानों सहित कुल 50 वोलंटियर्स की जांच की गई। इन वोलंटियर्स के विभिन्न स्मृति कार्यों को मापने के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिक आंकलन के अलावा उन्नत मस्तिष्क मानचित्रण तकनीकों का उपयोग किया गया। परिणामों से पता चला कि प्रशिक्षित वैदिक विद्वानों के पास अपेक्षाकृत बेहतर स्मृति कौशल था, साथ ही उनके मस्तिष्क के कई क्षेत्रों में ग्रे और सफेद पदार्थ में वृद्धि हुई थी।”
हमारे मस्तिष्क दो तरह की कोशिकाओं से बना है जिन्हे ग्रे मैटर की मदद से हम सुनने, याद रखने, भावनाएं व्यक्त करने, निर्णय लेने और आत्म-नियंत्रण जैसी चीज़ें करते हैं। जबकि वाइट मैटर हमें को तेजी से सोचने, सीधे चलने और गिरने से बचाने में मदद करता है।
मौखिक वैदिक परंपरा
इस मौखिक वैदिक परंपरा की विशिष्टता पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. कुमार ने कहा, “वैदिक विद्वान जो कुछ भी सीखता है वह लगभग सब कुछ बोलने और याद रखने के माध्यम से होता है। वेदों (श्रुति) की मौखिक परंपरा में कई पाठ, या वैदिक मंत्रों के जाप के तरीके शामिल हैं।
वैदिक सस्वर पाठ में पाद पाठ जैसे कई तरीकों का उपयोग किया जाता है, जिसमें वाक्य को एक साथ जोड़ने करने के बजाय शब्दों में तोड़ दिया जाता है। इसके बाद क्रमा पाठ है, जिसमें शब्दों को क्रमिक और अक्रमिक रूप से जोड़ना शामिल है जैसे पहला शब्द दूसरे से, दूसरा से तीसरा, तीसरा से चौथा, और इसी तरह। ऐसे ही है जटा पाठ, जिसमें पहले और दूसरे शब्दों का पहले एक साथ पाठ किया जाता है और फिर उल्टे क्रम में और फिर मूल क्रम में पढ़ा जाता है। ”
डॉ कुमार ने आगे कहा, “सीखने की इस परम्परा के अनुपालन के लिए असाधारण स्मृति, शक्तिशाली सांस नियंत्रण और शानदार मोटर आर्टिक्यूलेशन की आवश्यकता होती है।”
चार वेद
चार वेद हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। प्रत्येक वेद को आगे चार प्रमुख भाग, संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद में वर्गीकृत किया गया है। ये दरअसल वेदों के भिन्न और विशिष्ट भाग नहीं हैं, बल्कि यह वैदिक विचार के विकास के क्रम का प्रतिनिधित्व करते हैं।