जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा है। भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में काफी वक्त लगेगा।
वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी वित्त वर्ष 2021-22 के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया।
आईएमएफ ने कोरोना महामारी की दूसरी भीषण लहर के असर को देखते हुए यह कदम उठाया है। चालू वित्त वर्ष के लिये यह ताजा अनुमान अप्रैल में जताये गए 12.5 फीसदी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर के अनुमान से तीन फीसदी पॉइंट्स कम है।
वहीं IMF ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिये आर्थिक वृद्धि दर 8.5 प्रतिशत रहने की संभावना जताई है जो अप्रैल के 6.9 प्रतिशत वृद्धि के अनुमान से ज्यादा है।
ताजा विश्व आर्थिक परिदृश्य में IMF ने कहा, ”इस साल मार्च से मई के दौरान कोरोना महामारी की दूसरी गंभीर लहर को देखते हुए भारत में वृद्धि की संभावना को कम किया गया है। इससे भरोसे में सुधार की गति भी धीमी पडऩे की आशंका है।”
संस्थान ने कहा कि आर्थिक स्थिति में सुधार का सीधा रास्ता बढ़ते कोरोना वैक्सिनेशन से है, लेकिन भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में इसकी गति काफी धीमी है, जिसकी वजह से जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में यह दोनों देश सबसे ज्यादा प्रभावित रहेंगे।
मालूम हो भारत की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे गिरावट के दौर से बाहर निकल रही है। 31 मार्च, 2021 को खत्म हुए पिछले वित्त वर्ष में इसमें 7.3 प्रतिशत की गिरावट रिकॉर्ड की गई थी।
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रेटिंग एजेंसियां भी गिरा चुकी हैं आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान
आईएमएफ के अलावा कई अन्य वैश्विक और घरेलू एजेंसियों ने चालू वित्त वर्ष के लिये आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाया है। पिछले महीने एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत और 2022-23 में 7.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था।
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वहीं वर्ल्ड बैंक ने चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत जबकि एशियाई विकस बैंक (एडीबी) ने पिछले महीने 11 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कुल मिलाकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2021 में 6 प्रतिशत और 2022 में 4.9 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया है।
वर्ष 2021 के लिये नया आर्थिक वृद्धि अनुमान अप्रैल 2021 के विश्व आर्थिक परिदृश्य में जताये गये अनुमान के समान है। हालांकि इसमें कुछ संशोधन किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था में पुनरूद्धार जारी है, लेकिन विकसित देशों और कई उभरते तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच अंतर बढ़ रहा है।”
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