डा. रवीन्द्र अरजरिया
बीती स्मृतियों के सुखद स्पन्दन के साथ मानवीय भावनायें आनन्द के हिंडोले पर उडान भरतीं है। अतीत की दस्तक वर्तमान के दरवाजे पर हौले से होती है जिसे अन्तःकरण की अनुभूतियों से ही अनुभव किया जा सकता है। सफल जीवन के सूत्रों को उदघाटित करने वाली पुस्तक के शब्द नेत्रों के माध्यम से सीधे मस्तिष्क पर चोट कर रहे थे।
चाणक्य से लेकर शैक्सपियर तक की तराजू पर सामाजिक जीवन तौला जा रहा था। विभिन्न संस्कृतियों की मर्यादाओं के अलग-अलग मापदण्डों पर सही-गलत का निर्णय न करके सार्वभौमिक सत्य की ओर अक्षरों की यात्रा जारी थी। तभी किसी ने किताब को हाथों से झटक लिया। नजर फेरी तो विश्वविद्यालय के सहपाठी दिलीप कुमार सिंह का मुस्कुराता चेहरा सामने था। उन्होंने तपाक से बांहें फैला दी। हमने गले लगकर आत्मीयता का बोध प्राप्त किया।
कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद सत्य को स्वीकारने, आनन्दित जीवन प्राप्त करने और अतीत को आत्मसात करने जैसे विषय पर चर्चा का दौर चल निकला। देश की तार-तार होती पुरातन संस्कृति और संस्कारों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि कथित आधुनिकता की आड़ में लोग स्वार्थपरिता को पुष्ट कर रहे हैं। अतीत को भूल रहे हैं। अहम् की पूर्ति के लिए नैतिकता-अनैतिकता का भेद मिटाने पर तुले हैं।
पद, प्रतिष्ठा और वैभव की चमक के तले स्वजनों के संबंधों की अर्थी निकालने वाले, वर्तमान की स्थिति पर भविष्य की उथल-पुथल को निरंतर अदृष्टिगत कर रहे हैं। ऊंचे आसन पर बैठते ही अन्य को हेय समझने वाले अपने इन्हीं कृत्यों से पतन के गर्त में समाने लगते हैं। दार्शनिक चिन्तन की गहराई की ओर बढते देखकर हमने उन्हें बीच में ही टोकते हुए राजनैतिक परिपेक्ष में अतीत से वर्तमान तक की यात्रा करने वालों के भविष्य पर टिप्पणी करने का निवेदन किया।
आदर्शों, मर्यादाओं और सिद्धान्तों को हाशिये पर पहुंचाने की स्थिति की विवेचना करते हुए उन्होंने कहा कि सभी दलों ने दो तरह के मुखौटे ओढ रखे हैं। जनता को दिखाने वाले चरित्र से कहीं हटकर, ठीक विपरीत कारकों के समुच्चय से भरा होता है उनका आन्तरिक स्वरूप। कांग्रेस में जहां परिवारवाद का बोलवाला है वहीं भाजपा के दोहरे मापदण्ड और कारकों को पर्दे के पीछे से निरंतर हवा दी जा रही है। लम्बे समय से पार्टी के लिए समर्पित भाव से कार्य करने वाले स्वयंसेवक पर दलबदल कर आने वाले स्वार्थी लोग हावी होते जा रहे हैं। आगन्तुकों को संतुष्ट करके लिए पुराने साथियों की बली दी जाने लगी है। एक व्यक्ति-एक पद, का नारा देने वाले दल में भी एक से अधिक पद हथियाने के लिए लचीली व्यवस्था बना ली गई है।
अतीत को स्वीकारे बिना सुखद भविष्य की कल्पना मिथ्या है। मृगमारीचिका के पीछे भागने वालों की मौत भी अतृप्ति के समुन्दर में ही होती है। कल तक साथ पढने वाले जब कद्दावर नेता बनकर उभरते हैं, तब उन्हें बीते हुए समय को भूलना ही समाचीन लगता है। उनकी इस पीड़ा को हमने गहराई से समझते कुछ अधिक गहराई से कुरेदा।
एक लम्बी सांस लेते हुए उन्होंने कहा कि छात्र जीवन में अनेक अमानवीय घटनाओं को जन्म देने वाले जब अपनी कुटिल चालों के बल पर कुछ पा लेते हैं तब वह उन सभी लोगों से किनारा करने लगते हैं जिन्होंने कवच बनकर कठिन दिनों में उनका साथ दिया था। चर्चा चल ही रही थी कि नौकर ने चाय के साथ स्वल्पाहार की सामग्री सेन्टर टेबिल पर सजाना शुरू कर दी। विचार विमर्श में व्यवधान उत्पन्न हुआ किन्तु तब तक हमें पुस्तक से कहीं अधिक अपने मित्र से ही उसके अनुभवों पर तैयार सूत्रों की बानगी मिल गई थी। सो सेन्टर टेबिल की ओर रुख किया। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नये मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जय हिंद।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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