जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। कोरोना की वजह से लॉक हुईं शादियों ने परिवार वालों के साथ ही दर्जियों की भी मुश्किलों को बढ़ा दिया हैं। दर्जियों की दुकानों पर दुल्हे राजा के सूट और सेरवानी से लेकर दुल्हन के लहंगे तक फंसे हुए हैं।
दर्जी दुल्हा- दुल्हन को फोन कर कपड़ा ले जाने की गुजारिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी तरफ से उल्टा ही जवाब मिल रहा है। शादियों के 60 फीसदी कपड़े फंसे होने से टेलरों की लाखों की पूंजी फंसी हुई है।
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शहर में टेलरों की दुकानों पर दूल्हा-दुल्हन के साथ ही उनके परिवारों वालों के कपड़े बड़ी मात्रा में फंसे हुए हैं। अप्रैल, मई और जून की शादियों को लेकर लोगों ने मार्च में कपड़े सिलने को दे दिये थे।
प्रतिष्ठित टेलर बॉबी का कहना है कि लॉकडाउन के बाद भी कपड़ों की सिलाई हुई। लोगों को उम्मीदें थीं कि लॉकडाउन इतना लंबा नहीं खिंचेगा। दुकान में दूल्हे और उनके परिवारों के करीब 200 सेट सूट फंसे हुए हैं। इनकी डिलीवरी हो जाए तो करीब छह लाख की पूंजी खाली हो जाएगी।
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टेलर अजमल का कहना है कि कारीगरों को तो तत्काल मेहनताना देना होता है। घर में रखी पूंजी भी फंस गई है। शादियों और त्योहारों में ही कपड़े की अधिक डिमांड होती है, पूरा साल कोरोना की भेंट चढ़ गया।
अब टेलर के आगे मुश्किल ये है कि जो ग्राहक आ रहे हैं, वे अपनी जरूरत के कपड़े की डिलीवरी ले रहे हैं, शेष को छोड़ दे रहे हैं। बीच बाजार में दुकान किराये पर लेकर चला रहे हैं। जहां किराया ही नहीं भारी- भरकम बिजली का बिल भी अदा करना होता है। काम और कमाई है नहीं, हर महीने 1500 से 2000 रुपये बिजली का बिल अदा करना पड़ रहा है।
कारीगरों के पास काम भी नहीं है। लोग बहुत जरूरी होने पर ही कपड़े सिलाते हैं। सर्वाधिक ऑर्डर होली, ईद और शादियों में मिलते हैं। होली तो जैसे- तैसे गुजर गई, लेकिन ईद में कोई ऑर्डर नहीं मिला। शादियों को लेकर भी लोगों में अभी असमंजस की स्थिति है।
मुश्किल ये भी है कि जो लोग जैसे- तैसे शादियां निपटा रहे हैं, वे रेडीमेड कपड़ों को पसंद कर रहे हैं। उम्मीद यही है कि बैक्सीन आने के बाद स्थितियां सुधरेगीं। फरवरी- मार्च के बाद सभी अच्छे हालात की उम्मीद कर रहे है। ऐसी स्थितियां लंबी खिंचीं तो जीवन यापन करना मुश्किल हो जाएगा।
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