डॉ. शिशिर चन्द्रा
लखनऊ. अंग्रेज़ी में एक कहावत है “out of Sight out of mind” अर्थात जो नज़रों के सामने से हटा उसे हम भूल जाते हैं। स्वच्छता के साथ भी कुछ ऐसा ही है। जब तक आँखों के सामने गन्दगी या मल दिख रहा है तब तक वह गन्दा लगता है पर जैसे ही दिखना बंद हुआ हम उसके बारे में सोचना छोड़ देते हैं कि उस गन्दगी या मल का क्या हुआ.
हमें यह समझना होगा कि शौचालय के मल का सही निष्पादन हुआ या फिर दिखावटी तौर पर उसे ढांप दिया गया. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि या तो हम लापरवाह होते हैं या हमें सही जानकारी नहीं होती है. अब शहरों में बने सेफ्टिक टैंक का ही उदाहरण ले लें, हममे से कितने लोगों को सैनिटेशन वैल्यू चेन के बारे में पता है.
हममे से कितने लोगों को यह पता है कि सही सेफ्टिक टैंक कैसे बनता है, उसका डिज़ाइन क्या होता है. हममे से कितने लोगों को यह पता है कि सेफ्टिक टैंक सुचारु और प्रभावी रूप से काम करता रहे इसके लिए अपने सेफ्टिक टैंक की सफाई हर तीन से पांच साल के बीच करा लेनी चाहिए.
हममे से कितने लोगों को यह पता है कि सेफ्टिक टैंक की नियमित सफाई न कराने से एक समय ऐसा भी आता है कि सेफ्टिक टैंक में जो मल के उपचार की प्रक्रिया होती है वह होनी बंद हो जाएगी और बिना उपचार हुआ ठोस मल (untreated septage) नाली में सीधे आने लगेगा और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या का कारण बनेगा. हममे से कितने लोगों को यह पता है कि सेफ्टिक टैंक से निकला बिना उपचार हुआ ठोस मल नाली- नालों से होता हुआ छोटी बड़ी नदियों में जाता है और नदियों को दूषित करता है.
हमें तो बस इतना भर पता है कि लैट्रिन में पानी डाला और मल आँख के सामने से हट गया, अब वह सेफ्टिक टैंक में गया, नाली में गया, नदी में गया हमको क्या पता और क्या फ़र्क़ पड़ता है।
सीवर ट्रीटमेंट प्लांट या फिकलस्लज ट्रीटमेंट प्लांट भी शहरों में अभी बनने की प्रक्रिया में हैं, जहाँ हैं वो अपर्याप्त हैं. तो सवाल ये उठता है कि क्या हम आम जनता को इस मुद्दे के बारे में पता भी है. क्या हम इस पूरे मामले और पर्यावरणीय समस्या को समझना भी चाहते हैं, और क्या हमारी भी इसमें कोई भूमिका हो सकती है.
आमतौर पर शहरी क्षेत्र में या आजकल तो गाँव में भी सेफ्टिक टैंक के नाम पर जिस तरीके का ढाँचा बन रहा है वो एक कंटेनर या बड़ा कंटेनर के अलावा कुछ नहीं है, जिसमें मल उपचार की न तो किसी तरीके की कोई प्रक्रिया होती है और न ही लम्बे समय के लिए ये सुरक्षित ही है. स्थानीय बिल्डर और ठेकेदारों को भी इससे कोई सारोकार नहीं है कि डिज़ाइन क्या और कैसी होनी चाहिए. घर के मालिक भी समझते हैं कि एक बड़ा सा कोई कमरानुमा ढाँचा जमीन के नीचे बना दो बस बन गया सेफ्टिक टैंक और मिल गई 30 से 50 साल की छुट्टी.
यह मुद्दा केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि एक वृहद सामाजिक और पर्यावरणीय समस्या है. प्रदूषण मुक्त हमारी नदियाँ हों यह हम सबका भी सपना है और सरकार की भी प्राथमिकता है, पर जिम्मेदारी किसी एक की यह ठीक नहीं. जितनी सरकार और सरकारी तंत्र की जिम्मेदारी है उतना ही हमारा दायित्व है कि हम आगे आने वाली समस्या को समझें और न केवल समझें बल्कि अपनी भूमिका भी अदा करें.
हमें भी समझना होगा कि कैसे होता है सही डिज़ाइन का सेफ्टिक टैंक का निर्माण, कम से कम कितने दिनों में अपने सेफ्टिक टैंक को खाली कराना जरुरी है, सेफ्टिक टैंक खाली कराने के लिए किनसे बात करनी होगी वह लोकल सेनेटरी इंस्पेक्टर भी हो सकता है. वह सेफ्टिक टैंक खाली कराने वाला ट्रक / ट्रैक्टर समूह भी हो सकता है, लोकल पंचायत भी हो सकती है.
हमें इस बात की भी निगरानी करनी होगी कि कोई हनीसकर सेफ्टिक टैंक से ठोस मल निकालकर कहीं इधर-उधर नाली-नाले या खुले मैदान में तो नहीं डाल रहा. एकल बने घर जिनका कोई नाली निकासी मार्ग नहीं है उन घरों में सोकपिट व्यवस्था होनी होगी. जब तक कि स्थानीय पंचायत या म्युनिसिपालिटी कोई ठोस व्यवस्था न कर दे। जल भराव से बचने के हर संभव प्रयास करने होंगे चाहे वो पिट के माध्यम से चाहे ऐसे पेड़ पौधे लगाकर जो ज्यादा पानी सोखते हैं या अन्य तरीके से.
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हमें ऐसे हर वो छोटे बड़े संभव प्रयास करने होंगे जिस से हम पर्यावरणीय स्वच्छता सुनिश्चित कर सकते हैं और जब आँख खोलकर अपने आसपास देखें तो खाली ऊपरी सफाई न दिखे अंदर गहरे में और जो नहीं दिख रहा वो भी सही मायने में स्वच्छ हो.
(लेखक वाटर एड इंडिया के कार्यक्रम समन्वयक हैं.)