शबाहत हुसैन विजेता
गर्भवती हथिनी को किसी ने फल में भरकर विस्फोटक खिला दिया. पेट में धमाका हुआ और हथिनी की मौत हो गई.
गर्भवती गाय को किसी ने फल के साथ विस्फोटक दे दिया. गाय ने जैसे ही फल को काटा, विस्फोट हुआ और उसका जबड़ा उड़ गया.
गर्भवती महिला को अस्पताल ने भर्ती नहीं किया क्योंकि उसके पास अस्पताल का पर्चा बनवाने तक का पैसा नहीं था. अस्पताल के पोर्टिको में उसने बच्चे को जन्म दिया.
ट्रेन से घर जाने के लिए निकली एक छोटे से बच्चे की माँ ने भूख और प्यास की वजह से प्लेटफार्म पर ही दम तोड़ दिया. कफ़न बन चुकी चादर को बच्चा कई घंटे तक उठा-उठा कर इस कोशिश में लगा रहा कि शायद उसकी माँ की आँख खुल जाए.
तस्वीरें बहुत सी हैं, जो डराती हैं. जो आँख खोलने को मजबूर करती हैं. जो बदलते वक्त का आइना बन जाती हैं. इन तस्वीरों के सामने आने पर बहुत सी आँखों से दो बूँद आंसू निकलकर गाल तक बहकर आते हैं और फिर सूख जाते हैं.
डराने वाले हालात की तस्वीरें अखबार में छपने वाली खबरों की तरह से रात होते-होते रद्दी में बदल जाती हैं. सुबह आसमान पर नया सूरज निकलता है तो दिल को दहला देने वाली नई ख़बरें लेकर आता है.
क़र्ज़ में डूबे एक नौजवान ने अपने फूल जैसे बच्चो को सरिया से पीट-पीटकर मार डाला. बच्चो के बाद उसने अपनी बीवी का कत्ल किया और उसके बाद घर के आँगन में खुद को फांसी लगा ली.
भूख जब बहुत ज्यादा परेशान करने लगी तो एक औरत अपने पांच बच्चो के साथ कुएं में कूद गई. लोगों ने आनन-फानन में सभी को कुएं से निकालकर अस्पताल पहुंचाया. अस्पताल में सभी बच्चो की मौत हो गई जबकि औरत की जान बच गई.
एमबीए करने के बाद एक नौजवान ने रियल स्टेट की दुनिया में कदम रखा. रियल स्टेट के लिए ज़मीन की ज़रूरत होती है लेकिन इस नौजवान ने बगैर ज़मीन के ही अपना बिजनेस शुरू कर दिया. बाज़ार से कम कीमत पर प्लाट बेचने का विज्ञापन निकलवाया तो लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. हज़ारों लोगों ने पैसा इन्वेस्ट किया तो इस नौजवान ने कारपोरेट स्टाइल में ऑफिस बनाया. मर्सीडीज़ कार खरीदी. एक अखबार शुरू कर दिया. पैसा जितना ज्यादा आता गया. उसके ऑफिस की भव्यता बढ़ती गई.
धीरे-धीरे उस पर प्लाट देने या फिर प्लाट की रकम वापस देने का दबाव बढ़ने लगा. उस पर मुक़दमे कायम होने लगे. इसी बीच उसने बंगाल की एक अभिनेत्री से शादी कर ली और कई करोड़ रुपये उसकी फिल्म में इन्वेस्ट कर दिए. वह फिल्म भी डिब्बा बंद हो गई. सब तरह से घिर गए इस नौजवान ने अपने फ़्लैट में फांसी लगाकर जान दे दी. उसकी मौत के बाद जब पुलिस ने दरवाज़ा तोड़ा तो उसके ब्रीफकेस में 80 लाख रुपये कैश मिले.
एक और नौजवान याद आता है. वह एक मैगजीन में काम करता था. ठीक-ठाक सैलरी थी. उसने शादी कर ली. दो बच्चे हो गए. इसी बीच मैगजीन बंद हो गई. उसने किसी से तीन लाख रुपये उधार लेकर खिलौनों का बिजनेस शुरू किया. कई महीनों में उसका बिजनेस जम गया लेकिन इसी बीच उस मार्केट में शार्ट सर्किट से आग लग गई. देखते ही देखते पूरी दुकान जलकर राख हो गई.
उस नौजवान ने बाज़ार से सात लाख रुपये फिर उधार लिए और कम्प्यूटर का बिजनेस शुरू किया. साल भी नहीं बीता था कि दुकान में चोरी हो गई. सारा सामान चला गया. कुछ महीनों की परेशानी के बाद उसे मुख्यमंत्री कार्यालय में नौकरी मिल गई. यहाँ उसे आउटसोर्सिंग से रखा गया था. सैलरी छह महीने बाद मिलती थी. सैलरी अच्छी खासी थी लेकिन वक्त से पैसा नहीं मिलने की वजह से वह उधारी में गले तक डूबता जा रहा था.
कुछ दिन बात उसने वह नौकरी भी छोड़ दी. फिर बिजनेस की तरफ मुड़ा. बिजनेस डूबते गए, कर्जा बढ़ते-बढ़ते 80 लाख तक जा पहुंचा. उसने समझ लिया कि अब उधार की रकम लौटा पाना आसान नहीं है. वह घर से निकला और बहराइच जा पहुंचा. घाघरा नदी के पुल पर मोटरसायकिल खड़ी की. सुसाइड नोट लिखकर डिग्गी में डाला, उसी में मोबाइल फोन रखा. जूते उतारे और घाघरा में छलांग लगा दी. पुलिस ने कई दिन तलाशा लेकिन लाश भी नहीं मिली.
तस्वीरें इस तरह की भी बहुत हैं जो सोचने को मजबूर करती हैं. अपनी ज़िन्दगी का खात्मा करने वाले सभी लोगों के पास जिन्दा रहने के रास्ते थे.
कुएं में बच्चो को लेकर कूदने वाली औरत मजदूरी कर सकती थी, बच्चो को सरकारी स्कूल में पढ़ा सकती थी. अपने बीवी बच्चो का कत्ल कर फांसी लगा लेने वाला नौजवान अपनी काबलियत के हिसाब से मेहनत कर अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी को फिर से स्टार्ट कर सकता था.
रियल स्टेट के नाम पर धोखाधड़ी करने वाला नौजवान मरते वक्त अपने ब्रीफकेस में 80 लाख रुपये और मर्सीडीज़ कार छोड़ गया. वह उन्हीं पैसों से ईमानदारी वाला बिजनेस शुरू करता तो कुछ सालों में सबका पैसा लौटा सकता था.
दो मासूम बच्चो और बीवी को लावारिस छोड़कर घाघरा में कूद जाने वाले नौजवान ने अगर अपने खर्चों पर अंकुश रखा होता और सरकारी नौकरी मिल जाने के बाद अपने खर्चो को समेट लिया होता तो अपने बच्चो का अच्छा भविष्य तैयार कर सकता था.
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…लेकिन जिस गर्भवती औरत के पास अस्पताल का पर्चा बनवाने का भी पैसा नहीं है उसे अस्पताल से बाहर ढकेल देने वालों पर अंकुश लगाने का इंतजाम क्या किसी के पास नहीं है?
गर्भवती हथिनी और गर्भवती गाय को विस्फोटक खिलाने वालों के खिलाफ मुकदमा चलेगा. उन्हें जेल भेजा जाएगा. सबूत नहीं मिलने पर वह छूट जायेंगे और सबूत मिल जाने पर कुछ सालों की सजा हो जायेगी लेकिन जिस स्कूल में इस तरह की मानसिकता बनाई जा रही है उनके खिलाफ कुछ न हुआ तो यह सिलसिला थमेगा नहीं. ज़रुरत उस स्कूल की है जो इंसानियत को नारों में नहीं इंसान के भीतर पहुंचाने का काम करे. दिल में जब नफरत धड़केगी तो कभी जानवर का कत्ल होगा कभी इंसान का.
रोज़ अखबारों में छपती रहेंगी खून में डूबी खबरें और रोज़ रात तक अखबार रद्दी बनता रहेगा. सिलसिला रुका नहीं तो भावनाएं भी हो सकती हैं रद्दी, और तब हालात संभलने लायक नहीं रह जाएंगे. ज़िन्दगी में सबसे कीमती चीज़ होती है उम्मीद. उम्मीद को कभी मरने नहीं देना चाहिए.