संदीप पाण्डेय
नेहरू को याद करने के दो ताजा कारण हैं । एक तो सोनभद्र नरसंहार को यूपी के सीएम आदित्यनाथ द्वारा 1955 की गलती बताना। दूसरे कुछ दिन पहले लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा कश्मीर समस्या के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराना।
सोनभद्र नरसंहार के लिए 1955 के बहाने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने वाला सीएम आदित्यनाथ का बयान बीजेपी के ही शीर्ष नेतृत्व के बयान की कॉपी ही लगता है।
सीएम आदित्यनाथ जब 1955 और 1989 के साल का जिक्र करते हैं तो इशारा यूपी की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की तरफ होता है। इन्ही सालों में जमीन के हस्तांतरण का खेल खेला गया। लेकिन 17 जुलाई 2017 को जब प्रधान यज्ञदत्त ने जमीन की रजिस्ट्री कराई तब किसकी सरकार थी?
बयान देते समय सीएम आदित्यनाथ ये भी भूल जाते हैं कि जब 19 अक्टूबर 2017 को जब डीएम अमित कुमार सिंह इस मामले की जांच का भरोसा देते हैं तो फिर ये जांच क्यों नहीं हुई। तब तो कांग्रेस की सरकार नहीं थी? और अंत में 17 जुलाई 2019 में 10 गांववालों की हत्या हुई तब किसकी सरकार थी? इन घटनाओं के लिए भी नेहरू जिम्मेदार थे?
1955 की गलतियों को 2017 और 2019 में क्यों नहीं सुधारा गया। क्या नेहरू के भूत ने सुधार करने से रोक दिया था?
रहा सवाल कश्मीर का तो जब गृह मंत्री अमित शाह नेहरू को कश्मीर समस्या के जिम्मेदार ठहराते हुए ये कहते हैं कि अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते तो कश्मीर की समस्या ही नहीं रहती। तब वो कश्मीर पर पटेल के मन में चल रहे द्वंद को भूल जाते हैं या अनदेखा कर देते हैं।
पटेल के मुताबिक जिन्ना को हैदराबाद और जूनागढ़ के बदले कश्मीर को लेना चाहिए (सेंटेनरी वाल्यूम -1 के पेज 74) जूनागढ़ में पटेल ने भाषण के दौरान जिन्ना का नाम लेकर कहा था कि ‘अगर हम कश्मीर को लेने की कोशिश करेंगे तो वो ऐसा ही जूनागढ़ और हैदराबाद के लिए करेंगे। हमारा जवाब ये हैं कि हम कश्मीर देने पर सहमत हैं अगर वो हैदराबाद देने पर सहमत हैं’। (सरदार पटेल सेंटेनरी – 2)
सिर्फ ये दो ही उदाहरण नहीं है। ऐसे बहुत से खत हैं जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि पटेल खुद कश्मीर को लेकर भ्रम में थे। इसके बाद भी मान लेते हैं कि कश्मीर समस्या के लिए सिर्फ नेहरू ही गलत थे तब भी उनके बाद वाले प्रधानमंत्रियों ने क्यों नहीं इस गलती को सुधारा?
1965, 1971, 1999 में तत्कालीन भारतीय सरकारें क्यों नहीं कश्मीर में एक इंच भी आगे बढ़ पाई। और बढ़ भी गईं तो वापस क्यों आईं। क्या इसके लिए भी नेहरू जिम्मेदार थे?
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1999 में कारगिल युद्ध के दौरान वाजपेयी जी को नेहरू ने सपने में आकर आगे बढ़ने से मना किया था ? वाजपेयी ने तो इस युद्ध में उतनी ही जमीन को कब्जे से मुक्त कराया जितना पंडित नेहरू ने हासिल किया था। करगिल युद्ध में हम अपने सैकड़ों सैनिकों की शहादत के बावजूद एक इंच आगे नहीं सरक पाए।
करीब 50 साल बाद कांग्रेस ये कहना शुरू कर दे कि वाजपेयी की जगह आडवाणी प्रधानमंत्री होते तो करगिल संभव नहीं होता? ये कितना तर्क संगत लगेगा? ये मानव स्वभाव होता है कि वो गलतियों के लिए हमेशा दूसरा कंधा खोजता है। उस दौर और आज के नेताओं के बीच यही फर्क है कि उस दौर के नेता अपनी गलतियों की जिम्मेदारी खुद लेते थे और आज के नेता अपनी गलतियों की जिम्मेदारी भी उन्ही पर टिकाते हैं।
क्या ये संभव है कि आज के नेताओं से गलतियां न होती हो और क्या किसी नेता को अपनी गलती मानते हुए किसी ने देखा सुना है?
(लेखक पत्रकार हैं )
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