- तालाबंदी में छूूट मिली तो शुरु हुआ रिवर्स माइग्रेशन
- श्रमिकों को बुलाने के लिए भेजी जा रही हैं लग्जरी बसें
न्यूज डेस्क
अक्सर कहा जाता है कि व्यवसायी किसी के नहीं होते। वह अपने नफे-नुकसान से ऊपर नहीं सोच पाते। ऐसा ही तालाबंदी के दौरान देखने को मिला। कामधाम पर ताला लगा तो तो सबसे पहले काम करने वाले श्रमिकों के पेट पर लात मारा। मजबूरन श्रमिक पैदल ही हजारों किलोमीटर दूर अपने गांव जाने को मजबूर हुए और अब जब सरकार ने तालाबंदी के प्रतिबंधों में छूट दे दी है तो एक बार फिर व्यवसासियों को श्रमिकों की याद आने लगी है।
पिछले ढ़ाई माह से फैक्ट्रियों में ताले लटके हुए हैं। ये श्रमिकों की कमी के चलते खुल नहीं पा रहे हैं। दोबारा कामधाम शुरु करने के लिए अब व्यवसासियों को इन श्रमिकों की याद आने लगी है। वह उन्हें जॉब ऑफर कर रहे हैं और तरह-तरह के प्रलोभन भी दे रहे हैं। इतना ही नहीं उन्हें बुलाने के लिए लग्जरी बसें भी भेज रहे हैं।
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ढ़ाई माह पहले जब श्रमिकों का पलायन हो रहा था तो किसी को इनकी फिकर नहीं थी। न तो सरकार उनके बारे में सोच पा रही थी और न ही फैक्ट्री मालिक। फैक्ट्री मालिक अपना नफा-नुकसान का आंकलन कर रहे थे। बेचारे श्रमिक भूखे-प्यासे नंगे पाव गांव जाने को मजबूर हुए और और अब हालात बदल गए हैं।
बिहार लौटे प्रवासी मजदूर इन दिनों जॉब ऑफर से परेशान हैं। पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश से उनके लिए जॉब ऑफर है। दूसरे राज्यों के किसान जहां उनके लिए वातानुकूलित बसें भेज रहे हैं तो तेलांगना और तमिलनाडु की रीयल एस्टेट कंपनियां तो हवाई जहाज भेज रही हैं। वहीं इस रिवर्स माइग्रेशन के बीच बिहार सरकार कह रही है कि घर में ही रहिए, यहीं रोजगार मिल जाएगा।
श्रमिक दुविधा में हैं। वह समझ नहीं पा रहे हैं कि किसकी सुने। हालांकि श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा काम की पुरानी जगह पर लौटने का मन बना रहा है। कुछ लोग लौट भी रहे हैं।
वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं- मजबूरी में कोई श्रमिक बाहर नहीं जाएगा। हां, विशेष हुनर वाले श्रमिकों को कहीं ऑफर मिले तो जा सकते हैं।
फिलहाल इन श्रमिकों को वापस ले जाने के लिए पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से लग्जरी बसें आ रही हैं। पहली बस शिवहर जिले में आई थी। उससे ३० श्रमिक गए। दूसरी और तीसरी बसें मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर में आईं थीं। अब श्रमिकों को हिमाचल से आने वाली बसों का इंतजार है। एक जून से ट्रेनों की आवाजाही सामान्य होने के बाद श्रमिक अपने स्तर से भी टिकट कटा कर लौट रहे हैं, लेकिन उन श्रमिकों के मन में भय बना हुआ है, जिन्हें बुरे दौर में नियोजकों ने उपेक्षित छोड़ दिया था।
मई के अंत में शुरु हुआ रिवर्स माइग्रेशन
हालांकि बिहार में रिवर्स माइग्रेशन की शुरूआत तीन मई को ही हो गई थी, लेकिन मई के अंत में इसमें तेजी आई है। तीन मई को प्रवासियों को लेकर पहली ट्रेन तेलांगना से खगडिय़ा आई थी। लौटती में उसी ट्रेन पर सवार होकर २२२ श्रमिक तेलांगना लौट गए थे। ये श्रमिक होली की छुट्टी में गांव आए थे। तालाबंदी हुई तो घर पर ही रह गए। इनके लिए रेल टिकटों का बंदोबस्त तेलांगना के उस चीनी मिल मालिकों ने किया था, जिसमें वे काम करते थे।
अब लॉकडाउन में छूट के साथ मई के आखिरी सप्ताह में श्रमिकों का रिवर्स माइग्रेशन तेज हो गया। नई खबर यह है कि दक्षिण भारत की कई रियल एस्टेट कंपनियों ने श्रमिकों की वापसी के लिए चाटर्ड प्लेन और हवाई टिकट का इंतजाम किया। केरल सरकार ने इनके लिए मुफ्त आवास और चिकित्सा सुविधा देने की घोषणा की है।
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20 लाख से अधिक श्रमिक लौटे बिहार
बिहार में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 14850स्पेशल ट्रेनों से 20 लाख 51 हजार श्रमिक बिहार लौटे हैं। राज्य सरकार इन्हें रोकने का इंतजाम कर रही है। रोजगार का भरोसा देने के अलावा उनके बच्चों के स्कूलों में दाखिला कराने का भी उपाय हो रहा है।
लघु उद्योगों के लिए सरकार की कई योजनाएं पहले से चला रही हैं। योजना है कि इनमें बाहर से आए श्रमिकों को उद्यमी बनने का अवसर दिया जाए। उधर दूसरे राज्यों से पहले की तुलना में कहीं अधिक आकर्षक प्रस्ताव मिलने के कारण राज्य सरकार के लिए इन श्रमिकों को बिहार में रोक कर रखना कठिन हो सकता है।
एक अनुमान के मुताबिक कोरोना के दौर में राज्य में 25 लाख से अधिक श्रमिक आए हैं। इनमें बड़ी संख्या अकुशल मजदूरों की है। अभी तो फिलहाल श्रमिकों का रिवर्स माइग्रेशन शुरु हुआ है। जानकारों का कहना है कि जरूरी नहीं है कि सारे श्रमिक वापस ही चले जायेंगे। श्रमिकों के पास कुछ राज्यों का बुरा अनुभव है। इनमें महाराष्ट्र और गुजरात शामिल हैं।