Tuesday - 29 October 2024 - 3:52 AM

सबके पास तो लाइसेंस है, फिर दुर्घटनाएं क्यों ?

सड़कों पर बढ़ता जा रहा है जोखिम-2

रतन मणि लाल

यह जानना जरूरी है कि भारत में कुल सड़क दुर्घटनाओं के 80 प्रतिशत का कारण वे वाहन होते हैं जिन्हें वैध ड्राइविंग लाइसेंस धारक चला रहे होते हैं. वर्ष 2018 में एक सामाजिक संस्था ‘सेव लाइफ फाउंडेशन’ द्वारा यह दावा किया गया था कि वैध ड्राइविंग लाइसेंस धारक लोगों में से 59 प्रतिशत ने कभी नियमानुसार ड्राइविंग टेस्ट नहीं दिया फिर भी उन्हें लाइसेंस मिला.

लखनऊ ही नहीं, प्रदेश के हर छोटे-बड़े शहर में ड्राइविंग लाइसेंस कैसे बनते और मिलते हैं यह कोई सरकारी गुप्त सूचना नहीं है.

जिलों के आर टी ओ कार्यालय में लाइसेंस बनाने के लिए क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं इसके लिए इन दफ्तरों में जाने की भी जरूरत नहीं है – जरूरत है सिर्फ उस एक ‘लोकप्रिय’ व्यक्ति की जो इस सिस्टम का बाहर से हिस्सा है और एक फीस लेकर आपका दो-पहिया या चार-पहिया वाहन ड्राइविंग लाइसेंस आपके घर तक पहुंचा देगा.

यही नहीं, ऐसे लोगों की आपके आस-पास कमी नहीं है जो आर टी ओ ऑफिस गए तो थे दोपहिया ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने, लेकिन उन्हें इस ‘लोकप्रिय’ सहायक ने अतिरिक्त फीस लेकर चार-पहिया लाइसेंस दिलवा दिया.

लखनऊ समेत कुछ शहरों में लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया में कुछ बदलाव हो रहे हैं लेकिन अभी भी ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना कोई ख़ास कठिन काम नहीं है.

भारत में लर्निंग लाइसेंस बनाने की फीस 150 रूपए और परमानेंट लाइसेंस की फीस लगभग 300 रुपये है. आम तौर पर लाइसेंस बनने में एक हफ्ते या उससे भी कम समय लगता है – यह निर्भर करता है कि आप आर टी ओ अधिकारी को या वहां के प्रभावशाली संपर्क सूत्र को कितनी अच्छी तरह से जानते हैं.

इसके विपरीत, अमेरिका, कनाडा, इंगलैंड, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी और नॉर्वे जैसे देशों में परमानेंट लाइसेंस बनने की फीस 60000 रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक है, और इसे बन कर मिलने में दो हफ्ते से कुछ महीनों तक का समय लगता है. जर्मनी में ड्राइविंग लाइसेंस बनने की प्रक्रिया सबसे कठिन, लम्बी और खर्चीली है, और नॉर्वे में लगभग इतना ही समय और खर्च लगता है. दुबई जैसे देशों में भी यह खर्च एक लाख रुपये तक आ सकता है और कई हफ़्तों का समय भी लग सकता है.

इन देशों में ड्राइविंग लाइसेंस बनने में समय इसलिए लगता है क्योंकि आवेदनकर्ताओं को एक लम्बे और कठिन टेस्ट से गुजरना पड़ता है, जिसके लिए उन्हें कई किताबें या अन्य डॉक्यूमेंट पढने पड़ते हैं. एक बार इस टेस्ट में फेल हो जाने पर कुछ दिनों के बाद ही दोबारा टेस्ट दे पाते हैं.

कई देशों में अपने खर्चे पर ड्राइविंग इंस्ट्रक्टर की सेवाएँ लेनी पड़ती हैं जो कई हजार रुपये तक हो सकती है. एक बार किसी भी मामूली दुर्घटना के बाद भी ड्राइविंग लाइसेंस रद्द किया जा सकता है और लम्बे समय बाद ही दोबारा आवेदन कर सकते हैं.

इस लेख की पहली कडी पढे : बढ़ते वाहन, तेज रफ़्तार और असंयमित व्यवहार

सच तो यह है कि इन देशों में किसी व्यक्ति को ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है और इसे मिल जाने पर आमतौर पर युवा लोग पार्टी करके इस मौके पर खुशियाँ मनाते हैं.

और हमारे देश में? लाइसेंस मिलना हम अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं. यदि हमारी पहुँच और संपर्क सही है तो लाइसेंस घर पहुँचाया जाता है. अवैध या लैप्स हो चुके ड्राइविंग लाइसेंस पर कोई ख़ास जुरमाना नहीं है, ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जिनमे फर्जी नाम, आंशिक या पूर्णतः शारीरिक निर्बलताओं वाले या अक्षम, अशिक्षित व्यक्तियों को भी रेगुलर लाइसेंस मिला होता है.

जब ऐसे लोग, बिना किसी ट्रेनिंग, सुरक्षा मानकों की जानकारी के बगैर, बिना तैयारी के, हाईवे या एक्सप्रेसवे पर निजी या सवारी गाड़ियां चलाएंगे, तो क्या दुर्घटना हो जाना अप्रत्याशित है?

ख़राब सड़कें, गलत डिजाईन की गई सड़कें, ख़राब बसें भी दुर्घटनाओं के लिए कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण है वाहन चलने वाले लोगों का अयोग्य होना. किसी भी तरीके से लाइसेंस बनवा लेना, और फिर बिना तैयारी या पर्याप्त आराम के लम्बी दूरी की, रात की यात्रा की बस चलाना आम बात है.

ऐसे उदाहारण भी कम नहीं जहां चालक थोडा ओवरटाइम करके एक फेरा और गाडी चलते हैं जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी हो जाएगी. बस ही नहीं बल्कि टैक्सी और एसयूवी के चालक भी ऐसा करते मिल जायेंगे.

नीतियां बनाते समय अगर इन बातों पर ध्यान नहीं दिया गया तो भारत के हिस्से सड़क दुर्घटना में सर्वाधिक मौतों का रिकॉर्ड लम्बे समय तक बना रहेगा.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

 

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