न्यूज डेस्क
लेग स्पिनर युजवेंद्र चहल (51 रन पर चार विकेट) के विश्वकप में यादगार पदार्पण और उपकप्तान रोहित शर्मा (नाबाद 122) शतक की बदौलत भारत ने आईसीसी विश्व कप में अपने अभियान की जोरदार शुरुआत करते हुए दक्षिण अफ्रीका को बुधवार को छह विकेट से पराजित कर टूर्नामेंट में जीत से आगाज किया है। इस जीत के साथ ही टीम इंडिया के विकेटकीपर धोनी के ग्लव्स पर बने एक खास निशान की भी चर्चा काफी हो रही है।
दरअसल पैराशूट रेजिमेंट के विशेष बलों के पास उनके अलग बैज होते हैं, जिन्हें ‘बलिदान‘ के रूप में जाना जाता है। इस बैज में ‘बलिदान‘ शब्द को देवनागरी लिपि में लिखा गया है। यह बैज चांदी की धातु से बना होता है, जिसमें ऊपर की तरफ लाल प्लास्टिक का आयत होता है। यह बैज केवल पैरा-कमांडो द्वारा पहना जाता है।
भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को क्रिकेट में उनकी उपलब्धियों के कारण 2011 में प्रादेशिक सेना में मानद लेफ्टिनेंट कर्नल की रैंक दी गई थी। धोनी यह सम्मान पाने वाले कपिल देव के बाद दूसरे भारतीय क्रिकेटर हैं।
धोनी को मानद कमीशन दिया गया क्योंकि वह एक युवा आइकन हैं और वह युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। धोनी एक प्रशिक्षित पैराट्रूपर हैं। उन्होंने पैरा बेसिक कोर्स किया है और पैराट्रूपर विंग्स पहनते हैं।
महेंद्र सिंह धोनी ने प्रादेशिक सेना (टीए) की 106 पैराशूट रेजिमेंट में मानद लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में अपनी रैंक को साबित कर दिखाया है।
धोनी अगस्त 2015 में प्रशिक्षित पैराट्रूपर बन गए थे. आगरा के पैराट्रूपर्स ट्रेनिंग स्कूल (पीटीएस) में भारतीय वायु सेना के एएन-32 विमान से पांचवीं छलांग पूरी करने के बाद उन्होंने प्रतिष्ठित पैरा विंग्स प्रतीक चिह्न लगाने की अर्हता प्राप्त कर ली थी। यानी इसी के साथ धोनी को इस बैज के इस्तेमाल की योग्यता हासिल हो गई।
गौरतलब है कि तब धोनी 1,250 फीट की ऊंचाई से कूद गए थे और एक मिनट से भी कम समय में मालपुरा ड्रॉपिंग जोन के पास सफलतापूर्वक उतरे थे।