राजेश कुमार
लखनऊ। विभिन्न मामलों में वैसे तो कोर्ट कचहरी आना- जाना अफसरों का हर सरकार में रहा है लेकिन फिलहाल योगी सरकार में जैसे इसमें बाढ़ सी आ गयी है। इन दिनों ऐसा एक भी दिन नहीं है जब सूबे का कोई बड़ा अफसर अवमानना आदि के केस में हाईकोर्ट में न देखा गया हो।
शुक्रवार को इसी क्रम में अवमानना के केस में प्रमुख सचिव PWD नितिन रमेश गोकर्ण भी हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में पेश हुए। बताते चलें कि गोकर्ण को आज उसी न्यायमूर्ति विवेक चौधरी के कोर्ट में पेश होना पड़ा जिसमें अभी चंद दिन पहले अवमानना के ही केस में अपर प्रमुख सचिवालय प्रशासन महेश गुप्ता को पेश होना पडा था। जिसके बाद उनके तबादले की भी चर्चा सोशल मीडिया पर चल रही है।
दरअसल याचिकाकर्ता राकेश कुमार के पिता PWD में कार्यरत थे और वर्ष 2008 में ड्यूटी के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। उस समय राकेश कुमार नाबालिक थे। बालिग होने के बाद राकेश ने नौकरी के लिए आवेदन किया जिसको प्रमुख सचिव गोकर्ण द्वारा यह कहते हुए रिजेक्ट कर दिया गया कि Dying in Harness 1974 के नियम के अनुसार उसके आवेदन की अवधि 5 साल पूरी हो चुकी है इसलिए इसको स्वीकार नहीं किया जा सकता। जबकि उक्त नियम में यह भी है कि अगर सरकार चाहे तो इस समय को सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए बढ़ा भी सकती है।
शासन की तरफ से सहयोग न मिलने के कारण राकेश को मजबूरी में कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पडा। जिसके बाद कोर्ट ने पूछा कि रिजेक्शन पत्र में क्यों इस बात का कारण नहीं बताया गया कि क्यूँ 5 साल से देरी को माफ़ नहीं किया जा सकता है। अतः कोर्ट इसको अवमानना का प्रकरण मानती है और आज शुक्रवार को इसी अवमानना के केस में हाईकोर्ट लखनऊ बेंच में हाजिर होना पडा।
शिकायतकर्ता राकेश कुमार ने एक परिवाद हाईकोर्ट उच्च न्यायालय लखनऊ बेंच में दायर कर खुद को मृतक असीत कोटे में नौकरी दिए जाने की अपील की। केस संख्या 211/2019 जिसकी सुनवाई 19 मार्च 2019 को करते हुए कोर्ट नम्बर 8 के जज न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की अदालत ने मामले में 5 अप्रैल को प्रमुख सचिव लोक निर्माण नितिन रमेश गोकर्ण और सुपरिटेन्डेंट वर्क्स टेम्परेरी डिपार्टमेंटल कंस्ट्रक्शन रमाकांत सिन्हा को उपस्थित होने का आदेश दिया था।
कोर्ट का कहना था कि जब सरकार के पास विचार करने और नियम को शिथिल करते हुए समय सीमा बढाने का अधिकार है तो ऐसी दशा में सरकार ने आवेदन को रिजेक्ट क्यूँ और किस आधार पर किया।
इस तरह कोर्ट ने प्रथम दृष्टया अपने 19 मार्च 2019 को आदेश संख्या 9 फरवरी 2018 की रिट संख्या 4232 के तहत अवमानना मानते हुए 5 अप्रैल को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश सुनाया था।
कोर्ट ने साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस बीच यदि सरकार चाहे तो वादी को ज्वाईनिंग करा करके कोर्ट को सूचित कर सकती है। आज इसी क्रम में शासन ने राकेश कुमार को ज्वाईनिंग भी दे दिया है। वैसे अगर सूत्रों की मानें तो इस पूरे मसले में गोकर्ण को उनके नीचे के अफसरों ने अँधेरे में रखा जिसके चलते उनको अवमानना के केस में हाजिर होना पड़ा।