संजय भटनागर
उत्तर प्रदेश में हाल ही में अनेक ऐसी घटनाएं हो गयीं, जिससे पुलिस तंत्र फिर निशाने पर आ गया। दो पत्रकारों की गिरफ्तारियां, जहरीली शराब से मौतें और मासूम बच्चियों से बलात्कार और हत्याओं ने प्रदेश में हलचल मचा दी। ट्वीटर और अन्य सोशल मीडिया पुलिस की ज्यादतियों से रंग गया।
सरकार ने पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी की। एक सवाल भी उठ गया कि प्रदेश में कोई भी घटना होती है तो कार्रवाई का पहला शिकार पुलिस होती है लेकिन आईएएस नौकरशाही और मजिस्ट्रेसी पर कभी कोई आंच नहीं आती है।
एक नज़रिया यह भी है कि पुलिस नौकरशाही की कार्यप्रणाली में जितनी पारदर्शिता है उतनी आईएएस नौकरशाही में नहीं है। पिछले कुछ सालों में डायल 100, 1090 और उत्तर प्रदेश पुलिस की ट्विटर सेवा ने जिस तरह आम जनता को जोड़ा है , प्रशासनिक तंत्र उतना ही गैर-पारदर्शी होता जा रहा है।
बात सही भी है। पुलिस की ट्विटर सेवा ही नहीं उनके व्हाट्सएप्प ग्रुप भी शिकवा शिकायतों का माध्यम बने हुए हैं। एक सामान्य व्यक्ति भी अगर ट्वीट करके शिकायत करता है तो वह तुरंत अधिकारियों और आम लोगों की जानकारी में आ जाता है और सोशल मीडिया तो वैसे भी आक्रामक रहता है।
अब आम शिकायत यह है कि अगर आईपीएस नौकरशाही महज़ अपनी पारदर्शिता के कारण हर समय खुले पटल पर रहती है लेकिन क्या यही बात आईएएस ब्यूरोक्रेसी के लिए भी कही जा सकती है , उत्तर होगा – कतई नहीं।
एक समय था कि कानून व्यवस्था की ब्रीफिंग प्रमुख सचिव (गृह) स्वंय करते थे लेकिन धीरे धीरे यह परंपरा समाप्त हो गयी और जवाबदेही सिर्फ पुलिस ब्यूरोक्रेसी पर आ गयी। यह तो सिर्फ कानून व्यवस्था का ही मामला था लेकिन क्या किसी को याद आता है कि आम जनता के आमने सामने आईएएस नौकरशाही हो। शायद नहीं।
एक बड़े ज़िले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का कहना है कि जिस तरह वह जनता से मिलते हैं और उनकी परशानियों को सुनते हैं , क्या यही अपेक्षा जिलाधिकारी से नहीं होनी चाहिए। एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अरविन्द नारायण ने स्वीकार किया कि इस संवर्ग के अधिकारी आम जनता से मिलना पसंद नहीं करते हैं और न ही अपने को किसी भी घटना के लिए जवाबदेह होना।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में अपनी बैठकों में अधिकारियों के पेंच ज़रूर कसे हैं लेकिन इसके लिए भी पुलिस प्रशासन ही सकते में है। पुलिस के शीर्ष अधिकारियों की शिकायत वाजिब भी लगती है कि पुलिस महानिदेशक सहित समस्त अधिकारी वर्ग सीधे जनता के निशाने पर है लेकिन मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और अन्य अधिकारी संवर्ग पर किसी तरह की कोई जवाबदेही नहीं है।
सच तो यह है कि आईएएस संवर्ग ने एक बड़ी योजना के तहत अपने को आम जनता से उतना दूर कर दिया है जितना पुलिस संवर्ग ने अपने को नज़दीक। आम जनता को न तो पुलिस के अलावा किसी अन्य संवर्ग की कार्यप्रणाली के बारे में ही पता रहता है, न ही उनके पास कोई ऐसा तंत्र ही है जिससे वह अपनी शिकायत कर सकें।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का सुझाव है कि जिस तरह पुलिस ट्विटर सेवा चलती है, उसी तरह मुख्य सचिव को अन्य विभागों की भी सेवाएं चलानी चाहिए। कानून व्यवस्था के साथ साथ पानी, बिजली, सफाई, मकान, ज़मीन के विवाद, शिक्षा और स्वास्थ्य भी उतने ही महत्वपूर्ण विषय हैं जिस पर आम जनता को सीधे सवाल पूछने का हक़ है।
सिर्फ उपलब्धियों की एकतरफा जानकारी ही नहीं बल्कि जनता से विचारों के आदान प्रदान का भी कोई ज़रिया निकलना होगा। इसके लिए आईएएस नौकरशाही को कभी कभी ही सही लेकिन अपने सिंहासनों से उतर कर आम जनता के बीच आने की हिम्मत जुटानी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)