शबाहत हुसैन विजेता
सड़कों पर नारों का शोर है. घरों पर रंग-बिरंगे झंडे हैं. सफ़ेद कलफ लगी खादी पहने हुए लोग बड़ी इज्जत से बात कर रहे हैं. पांच साल पहले जो लोग वोट लेकर गायब हो गए थे, वह बगैर ढूंढे ही वापस लौट आये हैं. मौजूदा वक्त में वह एमएलए हैं मगर घंटी बजा-बजाकर सबकी खैरियत पूछ रहे हैं.
ज़िन्दगी में तमाम उलझनें हैं मगर इलेक्शन में सुकून बहुत है. बड़ी-बड़ी गाड़ियों में सवार लीडर घर-घर जा रहे हैं. सब कुछ ठीक कर देने के वादे कर रहे हैं. हालांकि यह बात बहुत अच्छे से मालूम है कि लीडर में इलेक्शन से पहले और इलेक्शन के बाद बहुत बड़ी तब्दीली आ जाती है मगर अगर कोई आपसे प्यार से बोले तो आप प्यार का कर्ज़ उतारोगे या नहीं. इतना बड़ा आदमी आपके घर आया है तो वो आपसे आपका वोट ही तो मांग रहा है. कोई यह थोड़े ही कह रहा है कि अपना घर मेरे नाम लिख दो. आपको अपना वोट बड़ा कीमती लगता है तो रखे रहो अपने पास लेकिन मैं तो अपना वोट ज़रूर दूंगा.
पहले बैलट पेपर से इलेक्शन होता था. रिज़ल्ट आने में कई-कई दिन लग जाते थे. फिर इलेक्शन में टेक्नीक की घुसपैठ हुई. ईवीएम आ गई. बटन दबाया और वोट पड़ गया. ईवीएम आई तो इलेक्शन आसान हो गया लेकिन ईवीएम पर लगने वाले इल्जामों की फेहरिस्त बड़ी लम्बी हो गई.
कोई भी हारने वाला ईवीएम पर इल्जाम लगाने से बाज़ नहीं आता, लेकिन ईवीएम के विरोध में इलेक्शन लड़ना भी नहीं छोड़ता. इलेक्शन से पहले ईवीएम की बाकायदा जांच होती है. कई बार यह शिकायतें आती हैं कि वोट किसी भी निशान को दिया जाये मगर वह कमल के फूल पर ही चला जाता है. यह इल्जाम बीजेपी छोड़कर सभी पार्टियाँ लगाती हैं.
पिछले इलेक्शन में मैं भी यही सोचकर वोट डालने गया था कि मैं कोई भी बटन दबाऊंगा लेकिन वह बीजेपी को ही चला जायेगा लेकिन मैंने जो बटन दबाया था वही निशान दिखाई पड़ा था. मतलब मेरा वोट उसी को पड़ा था. हालांकि रिज़ल्ट आया तो बीजेपी वाला ही जीत गया था.
इस बार फिर इलेक्शन का शोर मचा है. वोट डालने की तारीख करीब आ रही है. मैंने तय कर लिया है कि अपना वोट बीजेपी को ही दूंगा. एक तो यह कि जब मेरा वोट वहीं चला जाना है तो मशीन को गाली क्यों खिलवाई जाए दूसरे यह कि जब ज़रूरत पड़ेगी तब डंके की चोट पर कह सकूंगा कि मैंने बीजेपी को वोट दिया था.
बीजेपी को वोट दूंगा तो बारहवीं पास करने के बाद बेटा जब इंटर में जायेगा तो उसे लैपटॉप मिलेगा. रही बाकी परेशानियों की बात तो वह कोई भी आ जाए कहाँ दूर होने वाली हैं. हकीकत तो यह है कि यही वो पार्टी है कि जिसने हर हाल में जीना सिखाया है. पेट्रोल सौ के पार चला गया मगर गाड़ी चलती रही, प्याज दो सौ रुपये में बिक गया मगर सड़क पर कोई तोड़फोड़ नहीं हुई. दालें और सब्जियां जेब को इतना हल्का करती चली गईं कि जेब में बजने वाले सिक्कों के घुंघरू खामोश हो गए और जेब कटने का डर खत्म हो गया.
बीजेपी को वोट दूंगा क्योंकि यही वो पार्टी है जिसने नेहरू के चेहरे पर पड़ा हिजाब उतारकर दिखाया कि इस आदमी के चक्कर में महंगाई डायन खाए जात है. पहली बार कोई सरकार ऐसी आई जिसने सिर्फ सात साल की हुकूमत में इस सच से पर्दा हटा दिया कि कांग्रेस की वजह से भारत तरक्की नहीं कर पाया.
बीजेपी ने पहली बार बताया कि साइकिल का इस्तेमाल आतंकवाद में होता है. यकीन करना पड़ा क्योंकि पुलवामा हमले में ज़रूर साइकिल इस्तेमाल हुई होगी. सोहराबुद्दीन और इशरत जहाँ ज़रूर साइकिल पर सवार होकर जा रहे होंगे. जम्मू-कश्मीर में साइकिलों की भरमार होगी. यह बातें आम आदमी कैसे जानेगा. यह तो सरकार को पता चल पाती हैं. सरकार ने खुद बताया है. मैंने तो डर के मारे अपने घर पर खड़ी साइकिल रात को बहुत दूर ले जाकर खड़ी कर दी. कुछ हज़ार रुपये की साइकिल के लिए कौन अपनी जान खतरे में डाले. इधर उस पर बैठकर निकले कि पुलिस ने पकड़कर अन्दर कर दिया कि कहाँ आतंकवाद फैलाने जा रहे हो.
मैं इन सब चक्करों में पड़ने के मूड में नहीं हूँ कि मैंने यह बटन दबाया और वोट कमल के फूल पर चला गया. जब मेरा वोट वहीं जाना है. जब सरकार में कमल ही खिलना है. तो फिर इधर-उधर का बटन दबाकर चोरों की तरह क्यों मुंह छुपाता घूमूं. बड़े वाले मंत्री ने कहा है कि बीजेपी नहीं आयेगी तो दंगे होंगे, पलायन होंगे. ज़िन्दगी का सुकून छिन जायेगा. हमारे खुद के मौलाना ने भी बताया है कि जो दंगा फसाद नहीं होने देता उस बीजेपी को वोट दो. जब मौलाना ने भी समझ लिया है कि दंगाई को बिजी रखना ज़रूरी है तो हम छोटे बुद्धि के आदमी क्यों फालतू सोचें. तारीख आ रही है. सुबह-सुबह निकलूंगा और वोट बीजेपी को ही दूंगा.
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