जुबिली न्यूज डेस्क
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि बिल के खिलाफ संसद से लेकर सड़क तक संग्राम मचा हुआ है। किसान तो इस बिल के विरोध में जून माह से लामबंद थे, पर इस बिल के विरोध में मोदी कैबिनेट की मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया। उनके बगावती तेवर की वजह से सरकार को इस बिल पर सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
एक बार फिर कृषि विधेयकों के विरोध में मंत्री पद छोडऩे वाली शिरोमणी अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने कहा ह मैंने कई बार कहा कि ऐसा कोई कानून न लाया जाए, जो किसान विरोधी हो, लेकिन वे सरकार को इस बारे में मनाने में असफल रहीं।
यह भी पढ़ें :संजय सिंह तो बहाना हैं आप को बढ़ाना है
यह भी पढ़ें : अब दिल्ली में गाड़ी खरीदना होगा मुश्किल
यह भी पढ़ें : IPL 2020 में दिखेंगे UP के ये सितारे
उन्होंने कहा कि इस विधेयक को लेकर मैंने कई किसानों से बात की है। एक ग्रामीण किसान की कही बात का उदाहरण देते हुए उन्होंने टेलिकॉम सेक्टर में मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो’ के आने की तुलना कृषि क्षेत्र में निजी कंपनियों के आने से कर दी।
यह भी पढ़ें : एक वायरल तस्वीर ने पुलिस कमिश्नरेट को किया मजबूर
यह भी पढ़ें : चुनावी माहौल में ट्रंप पर लगा यौन शोषण का आरोप
यह भी पढ़ें :कोरोना : गरीबी के दलदल में फंसे 15 करोड़ से ज्यादा बच्चे
उन्होंने आगे कहा कि किसानों को चिंता है कि आने वाले दिनों में नए कानून की वजह से निजी कंपनियां कृषि सेक्टर पर नियंत्रण कर लेंगी, जिससे उन्हें नुकसान होगा।
एक टीवी चैनल से साक्षात्कार में हरसिमरत ने कहा, “एक किसान ने हमें केंद्र के नए प्रावधानों से पडऩे वाले असर का उदाहरण दिया। उसने कहा कि जब जियो आया था, तब फ्री फोन दिए गए। जब सभी ने इन फोनों को ले लिया, तो वे इन पर निर्भर हो गए। इसके चलते पूरी प्रतियोगिता ही खत्म हो गई और बाद में जियो ने अपने रेट बढ़ा दिए। किसान का कहना था कि कॉरपोरेट कंपनियां हमारे साथ यही करना चाह रही हैं।”
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ऐसा नहीं है कि मैने इस बिल का विरोध नहीं किया। मैंने पूर कोशिश की पर समझाने में असफल रही। उन्होंने कहा कि मैंने मोदी सरकार से कई बार किसानों द्वारा उठाई गई चिंताओं को सुनने के लिए कहा। साथ ही बिल पेश करने से पहले उनसे बातचीत करने की तरकीब भी सुझाई, पर मेरी बात नहीं सुनी गई।
उन्होंने कहा कि मैेंने कई बार कहा कि ऐसा कोई कानून न लाया जाए, जो किसान विरोधी हो। आप कैसे लोगों का नजरिया जाने बिना कुछ भी ला सकते हैं। मैंने उन्हें मनाने की काफी कोशिश की, लेकिन मैं अपनी बात समझाने में विफल रही।
उन्होंने कहा, “अध्यादेश बनने से पहले जब ये मेरे पास आया था तो मैंने ये कहा था कि किसानों के मन में इसे लेकर दुविधाएं हैं। इन्हें दूर करना चाहिए और राज्य सरकारों को भी विश्वास में लेकर ही कोई कदम उठाया जाना चाहिए। ये विरोध मैंने मई में दर्ज किया। इसके बाद जून में जब अध्यादेश आया उससे पहले भी मैंने कैबिनेट में कहा कि जमीन स्तर पर किसानों में इस अध्यादेश को लेकर बहुत विरोध है। उनको विश्वास में लेकर ही कोई अध्यादेश आए। जब ये अध्यादेश कैबिनेट में पेश किया गया आया तब भी मैंने इसे पूरे जोरों से उठाया।”
हरसिमरत के अनुसार उन्होंने अध्यादेश आने से दो महीने तक लगातार किसानों और किसान संगठनों के साथ बैठकें कीं, लेकिन जब संसद के एजेंडे में विधेयक आ गया, तो मैं समझ गई कि मेरी पार्टी बातचीत का समर्थन नहीं कर रही है। पूर्व मंत्री ने यह भी कहा कि उन्हें विपक्ष के बयानों की कोई चिंता नहीं है।
यह भी पढ़ें : सऊदी : नौकरी गई तो भीख मांगने को विवश हुए 450 भारतीय
यह भी पढ़ें : अमेरिकी चुनाव : भारतीय ही नहीं पाकिस्तानी महिलाएं भी हैं मैदान में