जुबिली न्यूज डेस्क
देश की शीर्ष अदालत ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पत्नी अपने पति की गुलाम या सम्पत्ति नहीं होती है जिसे पति के साथ जबरन रहने को कहा जाए।
अदालत ने यह बातें एक ऐसे मामले की सुनवाई के दौरान कही जिसमें पति ने कोर्ट से गुहार लगाकर अपनी पत्नी को साथ रहने के आदेश देने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन और हेमंत गुप्ता ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘आपको क्या लगता है? क्या एक महिला गुलाम या संपत्ति है जो हम ऐसे आदेश दें? क्या महिला कोई संपत्ति है जिसे हम आपके साथ जाने को कहें?’
विवाद के मूल में दांपतिक अधिकारों की बहाली पर एक अप्रैल 2019 का आदेश है, जो कि यूपी के गोरखपुर के फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह ऐक्ट के सेक्शन 9 के तहत पति के हक में दिया था।
महिला का दावा था कि वर्ष 2013 में शादी के बाद से ही उसका पति दहेज के लिए उसे प्रताड़ित कर रहा था।
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महिला ने वर्ष 2015 में महिला ने गोरखपुर कोर्ट में याचिका दायर कर पति से गुजारा-भत्ता की मांग की थी। जिस पर अदालत ने पति को 20 हजार रुपये हर महीने पत्नी को देने का आदेश दिया था।
इसके बाद पति ने अदालत में दांपतिक अधिकारों की बहाली के लिए अपनी याचिका दायर की थी।
गोरखपुर के फैमिली कोर्ट के आदेश के बाद पति ने उच्च न्यायालय का रुख किया और याचिका दायर कर गुजारा-भत्ता दिए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब वह अपनी पत्नी के साथ रहने को तैयार है तो इसकी जरूरत क्यों है।
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हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह याचिका खारिज कर दी जिसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत में महिला ने अपने बचाव में दलील दी कि उसके पति का पूरा खेल गुजारा-भत्ता देने से बचने के लिए है। महिला के वकील ने अदालत को यह भी कहा कि पति तभी फैमिली कोर्ट भी गया जब उसे पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश मिला।
पति की ओर से लगातार पत्नी को साथ रहने का आदेश दिए जाने की मांग पर शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी दी और पति की उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने अपने दांपतिक अधिकारों को बहाल करने की मांग की थी।