– प्रभावशाली मार्केटिंग फंडा है डर या खौफ
राजीव ओझा
डर का मनोविज्ञान एक बहुत ही प्रभावशाली मार्केटिंग रणनीति है। डरावनी कहानियाँ, किस्सागोई या हॉरर फिल्म कितनी भी घटिया क्यों न हो, लोगों को एक बार देखने-सुनने को मजबूर जरूर करती हैं। रहस्य हमेशा रोमांच पैदा करता है।
जैसे हर साल एक बार मीडिया जरूर चिल्लाता है की प्रलय का समय निकट है और दुनिया खत्म होने वाली है। कभी किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी, कभी कोई खगोलीय घटना और कभी बड़े भूकंप का खतरा हमेशा हमें डराता रहता है।
जैसे आजकल डराया जा रहा है की 29 अप्रैल की तिथि तय कर दी गई है कि उस दिन पृथ्वी पर सर्वनाश होगा। कहा जा रहा है कि इस दिन उल्का पिंड या छुद्र ग्रह 1998 OR2 पृथ्वी से टकरा जायेगा।
31319 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से पृथ्वी के करीब आ रहे इस उल्का पिंड से डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि यह पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश नहीं करेगा। वैसे तो हम मूर्ख दिवस 1 अप्रैल को मनाते हैं लेकिन इस वर्ष अप्रैल में दो मूर्ख दिवस मनाएंगे। 1 और 29 अप्रैल को।
जिस उलकापिंड को मीडिया वाले पृथ्वी से लड़ाने पर आमादा हैं खगोलविदों के मुताबिक ऐसे उल्का पिंडों का हर 100 साल में धरती से टकराने की 50,000 संभावनाएं होती हैं।
अनुमान है कि यह उल्का पिंड अगले महीने 29 अप्रैल को धरती के पास से गुजरेगा। इस बारे में डॉक्टर स्टीवन का कहना है यह उल्का पिंड 52768 सूरज का एक चक्कर लगाने करीब 3.7 वर्ष लेता है और एक दिन की धुरी 4 दिन में पूरी करता है। जब जब यह पृथ्वी के थोडा नजदीक आता है तब तब मीडिया कुछ दिन लोगों को डराता है।
दरअसल मीडिया वालों ने नासा की रिपोर्ट रिपोर्ट कुछ महीने पहले पढ़ ली है कि एक छुद्र ग्रह 1998 OR2 हमारे करीब से गुजरने वाला है। सबसे पहले इसका पता 1998 में चला था। तभी से इसको लेकर मिर्च मसाला लगा कर प्रलय के कई मुहूर्त निकाले जा चुके हैं।
ये भ पढ़े: होली पर ‘गज केसरी योग’ और कोरोना
मीडिया के किसी आइडिया गुरु ने कहा की 29 अप्रैल को हिमालय जितना बड़ा उल्कापिंड पृथ्वी से टकराने वाला है। पृथ्वी का जन्म करीब पांच अरब साल पहले हुआ था और अभी करीब साढ़े चार अरब साल की इसकी उम्र बची हुई है। उसके बाद पृथ्वी सूर्य में समा जायेगी।
यह अकाट्य सत्य है लेकिन उसके पहले पृथ्वी बड़े परमाणु युद्ध की स्थिति में या फिर कोई अप्रत्याशित खगोलीय घटना से ही समय से पहले खत्म हो सकती है। कहते हैं करोड़ों साल पहले एक बड़े उल्का पिंड के गिरने के कारण ही धरती से डायनासोर समाप्त हुए थे।
छोटे उल्का पिंडों की बारिश हमेशा पृथ्वी पर होती रहती है लेकिन अधिकाँश धरती से टकराने के पहले जल कर नष्ट हो जाते हैं। हमारी धरती ने उल्का पिंड गिरने का एक सबूत 1908 में साइबेरिया के टुंगुस्का में देखा था, जब एक क्षुद्र ग्रह
धरती से टकराने से पहले जलकर नष्ट हो गया था। इसकी वजह से क़रीब 100 मीटर बड़ा आग का गोला बना था। इसकी चपेट में आकर करीब 8 करोड़ पेड़ नष्ट हो गए थे।
इसी तरह करीब आठ लाख साल पहले पृथ्वी से टकराए विशाल उल्कापिंड का मलबा तीन महाद्वीपों एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका तक फैल गया था। यह पृथ्वी के इतिहास का सबसे बड़ा उल्कापिंड माना जाता है।
खगोल विज्ञान इतना उन्नत हो चुका है कि किसी बड़े पिंड के धरती से टकराने का सटीक पूर्वानुमान लगा सकेंगे। नासा का भी कहना है कि इस उल्का पिंड से घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह धरती से कई किलोमीटर दूरी से गुजरेगा। फिलहाल कोरोना का संकट ज्यादा बड़ा है इसलिए उस पर ध्यान देना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)