जुबिली न्यूज डेस्क
देश की उच्चतम न्यायालय ने हिंदू महिला की संपत्ति के उत्तराधिकार के मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि हिंदू विधवा की सम्पत्ति का उत्तराधिकारी उसके मायके वाले भी हो सकते हैं।
फैसला सुनाते हुए कहा है कि अदालत ने कहा कि मायका पक्ष अजनबी नहीं है और वे महिला के परिवार के माने जाएंगे।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि हिंदू विधवा के पिता की ओर से आए लोग “अजनबी” नहीं माने जा सकते हैं और हिंदू विधवा की संपत्ति के उत्तराधिकारी हो सकते हैं।
जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने इस अधिनियम की धारा 15 (1) (डी) की व्याख्या करते हुए कहा कि महिला के पिता के उत्तराधिकारियों को महिला की संपत्ति के उत्तराधिकारियों में शामिल किया गया है।
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अपने फैसले में बेंच ने कहा, “महिला के पिता की ओर से आए रिश्तेदार अजनबी नहीं हैं, वे भी परिवार का हिस्सा हैं। कानून में आए शब्द परिवार का संकीर्ण मतलब नहीं निकाला जा सकता। इसे विस्तार के साथ देखना होगा, जिसमें हिंदू महिला के रिश्तेदार भी शामिल होंगे।”
धारा 15 कहती है कि अगर किसी महिला की मृत्यु बिना वसीयत बनाए हुई तो उसकी संपत्ति का उत्तराधिकार धारा 16 के मुताबिक तय होगा।
इसमें पहला हक महिला के बेटे और बेटी का होगा, इसके बाद पति के रिश्तेदारों का होगा, इसके बाद महिला के माता-पिता का होगा, इसके बाद महिला के पिता के रिश्तेदारों का होगा और आखिरी में महिला की मां के रिश्तेदारों का होगा।
क्या है मामला
उच्चतम न्यायालय का यह फैसला एक हिंदू विधवा के मामले में आया है। विधवा महिला को पति की संपत्ति मिली थी। महिला का कोई बच्चा नहीं था और उसने अपने भाई के साथ पारिवारिक समझौता किया और संपत्ति अपने भाई के बेटों के नाम कर दी।
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लेकिन महिला के पति के भाई के बेटों ने इसका विरोध किया और उन लोगों ने उच्च न्यायालय में इसको चुनौती दी. लेकिन अदालत ने उनकी चुनौती को खारिज कर दिया। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।
महिला के पति के भाई के बेटों ने दलील दी थी कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती है।
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