Tuesday - 29 October 2024 - 12:19 PM

पैदल सफर, मुश्किल डगर, लाठियां भी, मौत भी, मगर नहीं मिलता घर

प्रमुख संवाददाता

लखनऊ. कोरोना महामारी के बाद पूरी दुनिया अपनी जगह पर थम गई है. भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में लॉक डाउन की वजह से हर तरफ सन्नाटा पसर गया है. रोज़ कमाकर खाने वालों के हाथ से काम छिन गया है. अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम करने के लिए अपने घरों से हज़ारों किलोमीटर दूर बैठे मजदूर अचानक से बेरोजगार हो गए हैं.

बेरोजगारी का दंश झेल रहे मजदूर अपने घरों को लौटना चाहते हैं क्योंकि जब हाथ में काम नहीं है तो खुद का पेट भर पाना भी संभव नहीं रहा है, परिवार को कहाँ से भेजेंगे. वापस लौटने के लिए ट्रेन नहीं हैं, बसें नहीं हैं. ऐसे में हज़ारों किलोमीटर का सफ़र पैदल तय करने की हिम्मत करते हैं तो सड़क पर पुलिस की लाठियां मिलती हैं, तेज़ रफ़्तार वाहन रौंदकर निकल जाते हैं. तमाम लोगों ने कई सौ किलोमीटर पैदल चलने के बाद थकान की वजह से अपना दम तोड़ दिया. मजदूरों ने रेल की पटरियों पर सफ़र शुरू किया तो मालगाड़ी रौंदकर गुज़र गई.

पैदल अपने घरों को लौट रहे मजदूरों का कहना है कि किसी सूरत से अपने घरों पर पहुँच गए तो दो वक्त की रोटी तो किसी तरह मिल ही जायेगी. कम से कम भूख से तो नहीं मरना पड़ेगा.

भारत के विभिन्न राज्यों में असंगठित मजदूरों की बहुत बड़ी तादाद है. यह बात सुनकर लोगों को आश्चर्य लग सकता है कि करीब 4 करोड़ मजदूर अपना प्रदेश छोड़कर दूसरे प्रदेशों में काम करने जाते हैं. इनमें टैक्सी ड्राइवर हैं, खेतों में काम करने वाले मजदूर हैं, बिल्डिंग निर्माण के क्षेत्र में लगे हैं.अन्य तरह की मजदूरी करते हैं.

लॉक डाउन का सबसे बड़ा असर इन्हीं चार करोड़ लोगों पर पड़ा. यह जिन राज्यों में काम करते हैं वहां की सरकारों ने उनकी सुधि नहीं ली तो उन्होंने अपने घरों को लौटने का फैसला किया.

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का एलान किया था. राज्य सरकारों ने इसे 25 मार्च तक बढ़ाया. बाद में प्रधानमन्त्री ने 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा कर दी. 21 दिन तक देश के थम जाने से मजदूर बेचैन हो गए. यही वजह है कि यूपी-दिल्ली की सीमा पर 28 मार्च को पहली बार मजदूरों का जनसमुद्र उमड़ा और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गईं.

मजदूरों के सड़क पर आने के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी बसें लगाकर मजदूरों को उनके जिलों तक पहुंचवाया. इसी के बाद ट्रेनों की मांग ने जोर पकड़ा. इसी के बाद मुम्बई में ट्रेन चलने की अफवाह उड़ी और बांद्रा में हज़ारों मजदूर जमा हो गए. सड़कों पर पैदल सफ़र का सिलसिला तो लगातार जारी है.

सरकार ने मजदूरों को ट्रेनों से भेजने का सिलसिला शुरू किया तो किराए के मुद्दे पर सियासत शुरू हो गई. रेलवे ने सम्बंधित राज्यों से किराया लेने की बात कही लेकिन सोशल मीडिया पर पहले बस के टिकट और बाद में ट्रेन के टिकट वायरल होने से यह बात तो साफ़ हो गई कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है ही. एक लम्बे अरसे से बेरोजगार मजदूर टिकट कहाँ से खरीदें यह समस्या सामने आयी तो सड़कों पर पैदल सफर का सिलसिला रुका नहीं.

गुजरात के सूरत कपड़ा मिल में काम करने वाले 17 मजदूरों की ट्रेन पटरियों पर हुई मौत व्यवस्था पर सवाल तो खड़े करती ही है. शिया पीजी कालेज में रसायन विभाग के अध्यक्ष और कार्यवाहक प्रधानाचार्य डॉ. सरवत तकी से इस मुद्दे पर बात हुई तो उन्होंने कहा कि मजदूर जिस प्रदेश की सेवा में लगा था वहां की सरकार की ज़िम्मेदारी है कि इस बुरे वक्त में मजदूर के भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी उठाये.

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के जो मजदूर हैदराबाद या मुम्बई में फंसे हैं उनके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यूपी से बसें भेजें इससे तो बेहतर है कि महाराष्ट्र, गुजरात या आंध्रप्रदेश की सरकार इन मजदूरों को ट्रेन या बसों में बिठाकर उनके गंतव्य के लिए रवाना कर दें. उनके रास्ते के खाने का इंतजाम कर दें. मजदूर जिस सूबे का है वहां की सरकार के पास खर्चे का बिल भेजकर भुगतान ले लें.

डॉ. सरवत तकी ने कहा कि ट्रेन की पटरी पर 17 मजदूरों की मौत हो जाना इतना छोटा मामला नहीं है. इसके लिए वह सरकार ज़िम्मेदार है जिसके राज्य की यह मजदूर सेवा कर रहे थे. वह कहते हैं कि मजदूर ट्रेन की पटरी पर न जाते तो आखिर क्या करते? वह सड़क पर चलते हैं तो पुलिस की लाठी खानी पड़ती है. रेल पटरी पर कम से कम मार तो नहीं पड़ती है.

कई राज्य सरकारें यह दावा करती हैं कि वह मजदूरों के रहने और खाने का इंतजाम कर रहे हैं. सवाल यह है कि जो पैसा वह खाने में खर्च कर रही हैं वही किराए में खर्च कर दें. तमाम मजदूरों को अपने घर लौटने की जल्दी इसलिए भी है क्योंकि जहाँ वह हैं वहां काम छिन गया है. पास में पैसे हैं नहीं. गाँव में थोड़ी बहुत ज़मीन पर जो फसल लगाकर आये हैं. घर पहुंचकर उसी को बचा लें.

 

आज रेल की पटरी पर जिस तरह से 17 जानें गई हैं, उससे सबक लेकर जाग जाने का समय आ गया है. क्योंकि मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई हैं. ओडिशा के पांच लाख मजदूर विभिन्न प्रदेशों में फंसे हैं और अपने-अपने घर लौटने की कोशिश में लगे हैं. राजस्थान के सरकारी पोर्टल पर 15 लाख लोगों ने या तो यहां से जाने के लिए आवेदन किया है या फिर राजस्थान में वापस आने के लिए आवेदन किया है. बिहार सरकार से 27 लाख लोगों ने अपने घर लौटने के लिए मदद माँगी है. मध्य प्रदेश के एक लाख से ज्यादा लोग दूसरे राज्यों में फंसे हुए हैं. यही हालत झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम की भी है. सरकारों ने समय रहते कदम नहीं उठाये तो हादसों को रोकना आसान नहीं होगा.

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