Wednesday - 30 October 2024 - 4:25 AM

प्रवासी मजदूरों को लेकर चल रही हैं ये तैयारियां

जुबिली न्यूज़ ब्यूरो

नई दिल्ली. कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए देश भर में लगाए गए लॉक डाउन की वजह से बेरोजगार हो चुके लाखों प्रवासी मजदूरों को सरकार फिर से काम से जोड़ने की नीति बनाने में जुट गई है. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलौत के नेतृत्व में मंत्रियों का एक समूह इस काम में जुट गया है.

मंत्रियों के समूह ने सरकार को सुझाव दिया है कि बेरोजगार हो चुके मजदूरों को रोज़गार से जोड़ने के लिए एक राष्ट्रीय रोज़गार नीति बनानी होगी. इसके साथ ही माइग्रेट वर्कर्स वेलफेयर फंड बनाकर उसे आयुष्मान भारत योजना के साथ जोड़ना होगा. मंत्रियों ने कहा है कि आयुष्मान भारत योजना से जुड़ने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि मजदूर जहाँ काम करेंगे वहां उन्हें कैशलेस मेडिकल सुविधा भी हासिल हो जायेगी.

मजदूरों को रोज़गार से जोड़ने की नीति पर काम कर रही कमेटी ने तय किया है कि माइग्रेट वर्कर्स वेलफेयर फंड को श्रम मंत्रालय की देखरेख में रखा जाएगा. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि मजदूर जब अपनी नौकरी बदलेगा तो उसके स्वास्थ्य बीमा और बेरोजगारी भत्ते आदि की समस्याओं का हल भी श्रम मंत्रालय की देखरेख में हो जायेगा.

श्रम मंत्रालय की देखरेख में मजदूरों को काम देने की शुरुआत होगी तो कुछ समय बाद इन मजदूरों का उनके काम के अनुसार उनका बर्गीकरण किया जा सकता है. वर्गीकरण हो जाएगा तो यह जानकारी भी सामने होगी कि किस उद्यम में किस मजदूर का इस्तेमाल हो सकता है. इससे श्रम बाज़ार व्यवस्था में कुशल कामगारों की आपूर्ति आसान हो जायेगी.

मजदूरों की बेहतरी के लिए गठित मंत्रियों की यह कमेटी इस बात पर भी विचार कर रही है कि मजदूरों के बच्चो की स्कूल में बेहतर पढ़ाई की व्यवस्था हो सके. मेधावी बच्चो के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था हो. उन्हें स्कूल की यूनीफार्म और पाठ्यक्रम की पुस्तकें उपलब्ध कराई जाएँ.

इसके साथ ही यह भी तय किया जा रहा है कि मजदूर जिस राज्य के उद्यम में लगा हो वहां की राज्य सरकार की उसकी देखरेख की ज़िम्मेदारी हो और केन्द्र सरकार की राज्यों किन व्यवस्था पर नज़र हो.

इस कमेटी ने यह भी स्वीकार किया है कि लॉक डाउन की वजह से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों के बड़े शहरों से चले जाने की वजह से व्यवसायों और उद्योगों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ने वाला है. ऐसे में यह बहुत ज़रूरी है कि सभी राज्यों में श्रमिकों को लेकर ऐसी नीति बनाई जाए कि श्रमिकों को काम की कमी न रहे और उद्योगों को कामगारों की कमी न रहे. एक अधिकारी ने यह स्वीकार किया है कि अगर चले गए श्रमिकों की वापसी न हुई तो कई उद्योगों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा.

मंत्रियों के इस समूह ने निर्माण कार्य में लगे करीब दो करोड़ श्रमिकों को पंजीकृत करने का अभियान चलाने की सिफारिश की है. पंजीकृत होने के बाद इन्हें श्रमिक अधिनियम में बताये गए लाभ भी मिलने लगेंगे. ऐसा करने से मजदूरों को पेंशन, गृह ऋण, बच्चो की पढ़ाई और मैटरनिटी सुविधाएं भी हासिल हो सकेंगी. इस नियम के तहत पंजीकृत होने वाले उन श्रमिकों को भी फायदा दिया जाना चाहिए जो काम के सिलसिले में दूसरे राज्यों की यात्रा करते हैं.

यह भी पढ़ें : क्या प्रियंका के दांव में उलझ जाते हैं योगी ?

यह भी पढ़ें : कोरोना काल में “बस” पर सवार हुई राजनीति

यह भी पढ़ें : राहुल ने आगे बढ़कर आखिर पीएम मोदी को शुक्रिया क्यों कहा

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : गरीब की याददाश्त बहुत तेज़ होती है सरकार

श्रमिकों की बेहतरी के लिए केन्द्र सरकार ने मनरेगा में दिए जाने वाले धन में वृद्धि की. पहले 61 हज़ार करोड़ रुपये का बजट होता था, इस बार सरकार ने इसमें 40 हज़ार करोड़ रुपये और जोड़ दिए. इस व्यवस्था का सीधा फायदा श्रमिकों को ही होगा. काम के एवज में मिलने वाले धन में 40 हज़ार करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी से ज्यादा श्रमिकों को काम मिलेगा. श्रमिकों को ज्यादा समय तक भी लाभ मिलेगा. श्रमिकों के सामने सबसे बड़ी समस्या उनके सामने बार-बार आने वाली बेरोजगारी ही है.

ज़मीन पर कैसी हो सकती है यह योजना

प्रवासी मजदूरों के कल्याण के लिए की जा रही इस तैयारी पर सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ. जितेन्द्र चतुर्वेदी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में करीब एक करोड़ मजदूर वापस लौट रहे हैं. यह योजना एक करोड़ लोगों को राहत दे पायेगी, अभी से कह पाना जल्दबाजी होगी क्योंकि जिस तरह से सरकारी योजनायें बनती हैं वह किसी से छिपी बात नहीं है.

हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमने 21 लाख लोगों को गाँव में ही रोज़गार दे दिया. इतनी बड़ी संख्या में रोज़गार दिया गया होता तो सभी ग्राम पंचायतों को काम मिल गया होता.

उन्होंने बताया कि सरकार ने गाँव में टीकाकरण की योजना बनाई तो अधिकाँश गाँव के लोग टीकाकरण के लिए तैयार नहीं हुए. चार जिलों के गाँव में स्वयं सहायता समूहों की मदद से यह काम कराने के लिए मुझे बताया गया कि सरकारी वेबसाईट पर स्वयं सहायता समूह के नाम हैं. सभी जिलों में 18-18 समूह वेबसाईट पर दिखे. गाँव में जाने पर पता चला कि सारे समूह सिर्फ कागज़ पर थे.

डॉ. चतुर्वेदी ने बताया कि बहराइच में 1256 गाँव हैं जबकि काम सिर्फ 10-12 गाँव में ही दिख रहा है. इसी तरह सरकार का कौशल विकास विभाग सिर्फ स्किल्ड लेबर तैयार करता है. किसी भी विधा में दक्ष नहीं बनाता है. नीतियां बनाना एक बात है और उनका क्रियान्वयन दूसरी बात है. प्रवासी मजदूरों के भले के लिए कुछ हो पाए तो अच्छा रहेगा.

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com