जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ. लॉकडाउन खुलते ही देश भर में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है. कुछ दिन राहत की सांस लेने वाले भारतीय एक बार फिर घुटन वाले माहौल में जीने के लिए विवश हो रहे हैं.
आईआईटी दिल्ली के एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर लॉकडाउन के दौरान भारत के कम प्रदूषण के स्तर को बनाए रखा जाता है, तो यह देश की मृत्यु दर में 6.5 लाख की कमी ला सकता है. यही वजह है कि पर्यावरण को लेकर चिंतित आम आदमी और संस्थाएं आगे आ रही हैं. साफ हवा को बनाए रखने के लिए वह भारत सरकार से वह स्पष्ट और लागू होने वाले कार्यक्रम की मांग कर रहे हैं. इसके लिए ऑनलाइन आंदोलन की मुहिम शुरू करने जा रहे हैं.
आगामी 5 जून को लोगों से विश्व पर्यावरण दिवस पर ‘’स्वच्छ हवा के लिए’’ स्लोगन के साथ अपने शहर का फोटो साझा करने की अपील की जा रही है. लोगों को देशव्यापी डिजिटल आंदोलन में भाग लेने के लिए तैयार किया जा रहा है. साथ ही एक ऑनलाइन पेटिशन अभियान भी चलाया जा रहा है जिसमें यह पूछा गया है कि सरकार स्वच्छ हवा को सुनिश्चित करने के लिए क्या किसी खास को यह जिम्मेदारी दे रही है. इस आंदोलन का नेतृत्व महाराष्ट्र की सामाजिक संस्था झटका समेत देश की कई संस्थाएं कर रही है.
25 मार्च से हुए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण 300 मिलियन से अधिक गरीबों को अकल्पनीय पीड़ा से गुज़रना पड़ रहा है. लाखों मजदूर पैदल ही अपने घर जाने को मजबूर हैं. वो हजारों किलोमीटर की यात्रा पैदल ही कर रहे हैं. लेकिन इस बीच सड़कों पर लाखों कारों के साथ, कारखानों को बंद रखना पड़ा है. निर्माण और आर्थिक गतिविधियों में ठहराव की वजह से इस दौरान भारत को दो दशकों में सबसे स्वच्छ हवा मिली है.
जबकि इससे पहले हालात ये थे कि दुनिया के टॉप 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 21 तो भारत के ही थे. लॉकडाउन के दौरान एयर इंडेक्स क्वालिटी (AQI) में लगातार गिरावट देखी जा रही है. दिल्ली जैसे शहर में सर्दियों में इसका स्तर 400 के पार था. वहीं लॉकडाउन के दौरान यह 60 के आसपास दिख रही है.
देश के 122 शहर स्वच्छता के राष्ट्रीय मानक को नहीं करते हैं पूरा
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के अनुसार भारत में 122 ऐसे शहर हैं जो स्वच्छ वायु के राष्ट्रीय मानक के गुणवत्ता को पूरा नहीं करते हैं. इसमें 18 शहर तो केवल महाराष्ट्र के हैं. इन शहरों के लोगों को खासतौर पर इस आंदोलन में हिस्सा लेने की अपील की गई है. साथ ही दूसरे लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करने की अपेक्षा की गई है. लोग सरकार पर यह दवाब बना सकते हैं कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी भारत के लोगों को स्वच्छ हवा मिले, इसके लिए ठोस रणनीति बनाने की ज़रुरत है.
देहरादून की 12 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता रिद्धिमा पांडे भी स्वच्छ हवा की मांग करने वालों में शामिल हैं. ये वही रिधिमा हैं जो जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की दिशा में सरकारों की निष्क्रियता पर पिछले साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र में याचिका देने वाली 16 बच्चों (ग्रेट थुनबर्ग के साथ) में से एक थीं.
वहीं रिद्धिमा पांडेय कहती हैं स्वच्छ हवा हमारा बुनियादी अधिकार है. उनके मुताबिक, “पिछले दो महीनों में, ऐसा महसूस हुआ है कि मेरी पीढ़ी की सारी चीजें हमें उपहार में मिली हैं. नीला आसमान, कम उत्सर्जन, स्वच्छ हवा.
झटका की कैंपेन मैनेजर शिखा कुमार कहती हैं, “इस हफ्ते, लॉकडाउन मानदंडों में ढील दी गई थी. दिल्ली में हवा की गुणवत्ता का स्तर 200 तक पहुंच गया था. यह दिखाता है कि लॉकडाउन की दुनिया में हम कितने डरे हुए हैं. जबकि इस दौरान हमने देखा कि प्रकृति कैसे खुद को ठीक करने की प्रक्रिया शुरू करती है.
अब आगे क्या होगा? क्या हम वापस फिर जहरीली हवा खाने जा रहे हैं? हमने समस्या की गंभीरता को स्वीकार करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं.
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सर गंगा राम अस्पताल में फेफड़े के सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक डॉ. अरविंद कुमार कहते हैं, कोविड-19 महामारी ने हमें दो चीजें दिखाई हैं. पहला यह कि हम भी स्वच्छ हवा पा सकते हैं. दूसरा, खराब हवा हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकती है, जिससे बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. हार्वर्ड और इटली के अध्ययनों ने अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में कोविड-19 मामलों और मृत्यु दर की काफी अधिक संख्या दिखाई है. भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर हमारे बच्चों की भलाई के लिए एक बड़ा खतरा है. हमें सभी के लिए स्वच्छ हवा का लक्ष्य रखना चाहिए.
भारत की कई सामाजिक संस्थाएं इस डिजिटल आंदोलन को अपना समर्थन दे रही है. इसमें लेट मी ब्रीथ, फ्राइडे फ़ॉर फ्यूचर, लेट इंडिया ब्रीथ, ग्रीनपीस इंडिया, वातावरण फ़ाउंडेशन, हेल्प डेल्ही ब्रीथ, माय राइट टू ब्रीथ, कोलकाता क्लीन एयर फ़ोरम, मुंबई का आरे समूह, आवा फ़ाउंडेशन सहित कई अन्य संस्थाएं शामिल हैं.