शबाहत हुसैन विजेता
लखनऊ. केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा हो गया है. कोरोना काल की वजह से भीड़ जुटाकर कार्यक्रम संभव नहीं है तो बीजेपी इसे डिजीटली सेलीब्रेट कर रही है. सोशल मीडिया के ज़रिये सरकार की एक साल की उपलब्धियां बताई जा रही हैं.
इस एक साल को बीजेपी ने उपलब्धियों का साल माना है. बीजेपी का मानना है कि राम मंदिर, धारा 370 और तीन तलाक से लेकर आर्थिक सुधारों की दिशा में जो काम एक साल में हुआ है वह कोई दूसरी सरकार कई सालों में भी नहीं कर पाई.
बीजेपी का मानना है कि यह सरकार कोरोना से लड़ाई में भी काफी सफल साबित हुई है. इस सरकार ने जनाकांक्षाओं को पूरा करने का काम किया है.
उधर विपक्ष ने इस एक साल को विफलताओं का साल माना है. सरकार को हर मोर्चे पर फेल करार दिया है. इस एक साल में रोज़गार छिने हैं. हिन्दू-मुसलमान के बीच खाई बढ़ी है. जुबिली पोस्ट ने सरकार के एक साल के कार्यकाल पर राजनीतिज्ञों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों की राय जानी.
सामाजिक कार्यकर्त्ता दीपक कबीर कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार का यह एक साल कांफीडेंट और आत्म मुग्धता का साल है. पिछले कार्यकाल में विपक्ष के विरोध से जो परेशानी होती थी, इस साल में वह भी खत्म हो गई है. परेशानी को अब बी टीम के लिए छोड़ दिया गया है.
वह कहते हैं कि ताज्जुब तो इस बात का है कि ट्रेनें रूट बदलकर दूसरे प्रदेशों में पहुँच गईं लेकिन कोई इस्तीफ़ा नहीं, कोई माफी नहीं. कोरोना के दौर में हालात ऐसे हो गए कि लोग प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री के अलावा सारे मंत्रियों के नाम भूल गए. यह देश अब दो मंत्रियों और टीवी चैनलों के भरोसे चल रहा है.
कोरोना को लेकर 5 जनवरी को राहुल गांधी ने ट्वीट किया था लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के पास तब तक ज़रूरी जानकारी भी नहीं थी. लोग अब कोरोना से भी मर रहे हैं और भूख से भी मर रहे हैं. यह सारी मौतें सरकार के खाते में लिखी जानी चाहिये.
सरकार के इस एक साल ने आत्मनिर्भरता छीन ली. श्रम कानूनों को पूंजीपतियों के हवाले कर दिया. खबरों के सभी संसाधनों पर कब्ज़ा जमा लिया. देश आर्थिक रूप से बर्बाद हो गया. आज हम सिर्फ इत्तफाक पर जिंदा हैं. हमें कोरोना नहीं हुआ तो यह इत्तफाक है. हमारी नौकरी नहीं गई तो यह इत्तफाक है. किसी भी पड़ोसी देश से हमारे रिश्ते अच्छे नहीं. देश के साठ फीसदी लोग डिप्रेशन का शिकार हैं. और सरकार कोरोना को अपारच्युनिटी की तरह इस्तेमाल कर रही है.
समाजवादी छात्रसभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पूजा शुक्ला कहती हैं कि जिस युवा शक्ति ने अपने वोट के दम पर सरकार बनाई थी वह इस एक साल में सबसे ज्यादा निराश हुई है. छात्रों को कोई राहत नहीं मिली है. यूनीवर्सिटी की हालत खराब हुई है. शिक्षकों की जो जगह खाली हुई है वहां किसी को परमानेंट नौकरी नहीं मिली है.
कोरोना काल में दिए गए 20 लाख करोड़ के पॅकेज पर उनका कहना है कि इसमें किसको क्या मिलेगा यही स्पष्ट नहीं है. सरकार कोरोना को अपारच्युनिटी की तरह ले रही है. इस मुद्दे पर सरकार खुद राजनीति कर रही है जबकि समाजवादी पार्टी इस मुद्दे पर सरकार के साथ खड़ी है. अखिलेश यादव ने कोरोना काल में तमाम पीड़ितों को एक-एक लाख की मदद की है, लेकिन इस सरकार ने झूठ के सहारे जैसे पांच साल विताये थे वैसे ही यह एक साल भी गुज़ार दिया है.
नरेन्द्र मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल पर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अमित पुरी का कहना है कि यह अवसरों का भी साल था और एक्सप्रेशन का भी साल था. इस एक साल में राम मन्दिर, तीन तलाक, धारा 370 और आर्थिक जगत में सुधार की दिशा में काम हुए. कोरोना जैसी वैश्विक महामारी इस साल में सामने आयी. चिकित्सा जगत की जो स्थितियां थीं और जो वातावरण था, उसमें हम इस चुनौती से जिस तरह से लड़ पाए वह बड़ी बात है.
इस साल में आतंकवाद भी एक चुनौती था, 2019 में जो जनादेश मिला था उन आकांक्षाओं को भी पूरा करना था. वह कहते हैं कि पैर का भ्रमण रोकना मुश्किल होता है लेकिन पेट का भ्रमण रोकना असंभव होता है. कश्मीर से सिर्फ ढाई लाख लोगों का पलायन हुआ था जिसे आज तक हम भूल नहीं पाए तो यह तो 9 करोड़ लोगों का पलायन है. आज़ादी के बाद कभी भी इतना बड़ा पलायन नहीं हुआ. अभी तो कोरोना से पार पाना है. कोरोना के बाद चुनौतियाँ और भी हैं.
कांग्रेस प्रवक्ता रफत फात्मा सरकार के एक साल के कार्यकाल पर कहती हैं कि इस एक साल में जनता का सुकून छिन गया. यह सिर्फ वादों की सरकार है. किसान, मजदूर, व्यापारी सब परेशान हैं. इस सरकार ने वादा किया था कि बड़े पैमाने पर नौकरियां देंगे लेकिन बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां जा रही हैं. देश आर्थिक रूप से कमज़ोर हुआ है.
20 लाख करोड़ के पैकेज के सवाल पर उनका कहना है कि पैकेज हवा हवाई है. देश में जो हालात हैं उसमें व्यापार के लिए लोन लेने कौन जाएगा. इस दौर में तो मजदूरों और छोटे व्यापारियों के खातों में पैसे डाले जाने चाहिए थे. वह कहती हैं कि सरकार को जनता चुनती है लेकिन सरकार ने जनता का भरोसा तोड़ दिया है. जनता चुनाव में इसका जवाब देगी.
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नरेन्द्र मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी की सरकार दूसरी बार प्रचंड बहुमत से आयी थी तो उसके पीछे उसके पांच साल के कामकाज नहीं थे. इस जीत का सबसे महत्वपूर्ण कारण पुलवामा अटैक था. पुलवामा हमले को लेकर विपक्ष ने सवाल खड़े किये तो प्रचारतन्त्र की मदद से उसे देशद्रोही साबित कर दिया गया. पुलवामा को लेकर पत्रकारों, लेखकों और स्तम्भकारों सबने मोदी सरकार की मदद की.
उनका कहना है कि दूसरी बार सरकार आयी तो हमारी अपेक्षाएं बढीं. यह बात मोदी सरकार ने भी मान ली. सरकार बनाने के फ़ौरन बाद इस सरकार ने अपने एजेंडे पर काम शुरू कर दिया. राम मंदिर, धारा 370 और तीन तलाक क़ानून के ज़रिये उन्होंने हिन्दू-मुसलमान के बीच की खाई को और भी बढ़ा दिया.
वह कहते हैं कि कोरोना काल में भी यही एजेंडा जारी रहा. पहले तब्लीगी जमात पर इल्ज़ाम मढ़ा गया और उसके बाद प्रवासी मजदूरों पर. सुरेश बहादुर सिंह का कहना है कि उपलब्धियां छोड़िये, यह संकट का समय है. इस संकट में अर्थव्यवस्था मिट गई है. कोरोना के बाद जो संकट आने वाला है उसकी चुनौतियाँ और भी बड़ी होंगी.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव विश्वविजय सिंह से बात हुई तो उन्होंने कहा कि इस एक साल में श्रमिक बदहाल हो गया. बेरोजगारी बढ़ गई. किसानों की परेशानियां बढ़ गईं. अर्थव्यवस्था बदहाल हुई और पूंजीपति मालामाल हुआ. वह कहते हैं कि एक साल में भारत लगातार बर्बादी की तरफ बढ़ रहा है.
उनका कहना है कि कोरोना संकट कुछ लोगों के लिए अवसर की तरह से आया. मेडिकल किट और वेंटीलेटर खरीद में घोटाले हो रहे हैं. करोड़ों लोग रोज़गार खो रहे हैं. भूख एक बड़े संकट के रूप में उभर रही है. आम आदमी के लिए यह सबसे गंभीर संकट का समय है.
सरकार अपने एक साल को सेलीब्रेट करे. दूसरे साल में खुशियों के साथ प्रवेश करे लेकिन इस एक साल ने जो चुनौतियाँ उसके सामने रखी हैं उस पर मंथन भी उसी को करना होगा. देश की सड़कों से गुज़र रहे नौ करोड़ मजदूरों के रोज़गार के बारे में सोचना होगा. जिन लोगों की नौकरियां छिन गई हैं उनके हाथों में फिर से काम देना होगा. कोरोना काल में किट और वेंटीलेटर घोटालों की जो खबरें आयी हैं उनकी जांच भी करानी होगी. हिन्दू और मुसलमानों के बीच बढ़ती जा रही खाई को भी पाटना होगा. सरकार को इस चुनौती को हर हाल में स्वीकार करना होगा कि सरकार सौ फीसदी नागरिकों की होती है. इस सबके साथ-साथ विपक्ष ने कोरोना काल में सरकार की तरफ मदद के लिए जो हाथ बढ़ाया है उसके लिए सरकार को उसका धन्यवाद भी देना होगा.