28 मई – अंतर्राष्ट्रीय मेंसट्रूअल हाईजीन डे (Menstrual Hygenie Day) पर विशेष
सुगामाऊ की सबा (बदला हुआ नाम) और निजामुद्दीनपुरवा की लुबना के लिए मासिक किसी त्रासदी से कम नहीं था. इसकी वजह यह नहीं कि वह अपना ख़याल रखने में सक्षम नहीं थीं बल्कि सही उम्र में माहवारी शुरू होने के बावजूद अधूरी जानकारी उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को लगातार प्रभावित करती रही और इस हद तक कि लुबना को तो अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ गई. सहयोग संस्था द्वारा दी जा रही सही समय पर मासिक से जुडी जानकारी ही इनकी मदद कर पाई. आजकल यह परिस्थिति और भी विकट हो गई, जब हमारा देश COVID-19 जैसी महामारी से जूझ रहा है.
COVID-19 के समय में किशोरियों को सेनेटरी नैपकिन की समय पर उपलब्धता एक चुनौती बन कर सामने आई है. इसलिए लड़कियां कैसे कम से कम उपलब्ध संसाधनों में मासिक से जुड़ी साफ़ सफाई का ध्यान रख कर खुद को सुरक्षित रख सकती हैं. इसी महत्व को समझने के लिए प्रत्येक वर्ष 28 मई को विश्व भर में मासिक स्वच्छता प्रबंधन दिवस के रूप में देखा जाता है.
“मासिक चक्र” या “माहवारी” जो कि किशोरियों के प्रजनन तंत्र से जुड़ी एक प्राकृतिक व सामान्य प्रक्रिया है. जानकारी न होने के कारण किशोरियां इन्हें बीमारी के रूप में देखने लगती हैं और मात्र इस भावना से कि उनके साथ कुछ गलत हो गया है वह अपने से बड़ों से उसके बारे में बात करने से भी कतराती हैं.
किशोरियों का यह जानना बहुत ज़रूरी है इसका होना किशोरी के स्वस्थ होने का सूचक है. फिर भी मिथकों व भ्रांतियों के कारण इस विषय से तमाम वर्जनाएं जुड़ गयी हैं. जो चर्चा करने से लेकर व्यवहार तक जाती हैं. इस वजह से इस विषय पर खुलकर बात नहीं होती, इसे सामान्य प्रक्रिया नहीं समझा जाता. नतीजन इस विषय पर सही जानकारी व जागरूकता का ज़बरदस्त अभाव होता है. जिसका सीधा असर किशोरियों व महिलाओं के स्वास्थय पर पड़ता है.
उन दिनों किशोरियों और महिलाओं को उन विशेष दिनों में शारीरिक और मानसिक रूप से अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें मिथक उनकी परेशानी को काफ़ी बढ़ा देते हैं. उनके रोज़मर्रा के जीवन में तमाम तरह की पाबंदियां लग जाती हैं. अधिकांश लडकियाँ इस दौरान की जाने वाली रोक-टोक पर आपत्ति जताने का साहस नहीं कर पाती हैं. यदि कोई लड़की चर्चा करना भी चाहे तो उसे पारिवारिक और सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ता है. इस विषय के महत्व, सही जानकारी की आवश्यकता, इस दौरान राखी जाने वाली साफ़ सफाई के महत्व को दर्शाने और इससे जुड़े भेदभाव व उसके शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभावों को समझते हुए विश्व में पहली बार 28 मई 2014 को अंतर्राष्ट्रीय मेंसट्रूअल हाईजीन डे के रूप में मनाने की शुरुआत हुई.
मासिक चक्र स्वच्छता प्रबंधन अथवा मेन्सत्रुअल हाईजीन मैनेजमेंट यह केवल सेनिटरी नैपकिन का वितरण एवं उसकी उसके बारे में प्रशिक्षण देना मात्र नहीं है वरन इसके अंतर्गत मासिक चक्र के विषय पर किशोरियों और महिलाओं को जागरूक करना, उस दौरान साफ़ सफाई का ध्यान रखना, सेनेटरी पैड या साफ़ कपडे का इस्तेमाल एवं सुरक्षित निस्तारण भी उतना ही आवश्यक है.
इन व्यवहारिक बातों का ध्यान रखने से प्रजनन के संक्रमण और बीमारियों से बचाव संभव है. उत्तर प्रदेश सरकार ने महिला, किशोरी व बाल स्वास्थ्य को प्राथमिकता में रखते हुए कई ज़रूरी निर्णय लिए व योजनायें शुरू कीं. पिछले वित्त वर्ष को मातृ एवं बाल स्वास्थ्य के रूप में घोषित करना, मातृत्व सप्ताह का आयोजन, गर्भवती महिलाओं में जोखिम वाली महिलाओं को चिन्हित व रेफ़रल करना, पोषण दिवस के साथ साथ अति कुपोषित बच्चों की पहचान के लिए वज़न दिवस का आयोजन व उनका रेफेरल, ग्राम स्वास्थय पोषण दिवस को सुदृढ़ करना, आशाओं द्वारा गृह भ्रमण सुनिश्चित करना इसके कुछ उदाहरण है.
सेवा प्रदातों को ट्रेनिंग देने से लेकर जागरूकता फैलाना, व इनसे जुड़ी सामग्री की उपलब्धता व वितरण सुनिश्चित करना शामिल है. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े, घने व विविध राज्य में शुरुआती दौर में कठिनाइयां भी देखी जा रही हैं. किशोरी स्वास्थ्य में ख़ासतौर से माहवारी को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार द्वारा निम्न प्रयास किये जा रहे हैं.
स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रामीण अंचलों में रहने वाली लड़कियों एवं महिलाओं को लाभ पहुचाने के लिए सितम्बर 2015 से पंचायत उद्योगों द्वारा “दिशा” नाम से सेनेटरी नैपकिन का उत्पादन शुरू किया है. इन नैपकिन को कारागार विभाग, बेसिक शिक्षा एवं चिकित्सा विभाग द्वारा बाज़ार से कम भाव पर खरीद कर कारागार में रहने वाली महिला कैदियों, कस्तूरबा गांधी में पड़ने वाली छात्राओं तथा स्वास्थ्य सेवाओं में आने वाली प्रसूताओं और किशोर किशोरियों के लिए बनी AFHC (Adolescent Friendly Health Clinic) क्लीनिक में आने वाली लड़कियों को मुफ्त देकर लाभान्वित किया जा रहा है. यही सेनेटरी नैपकिन खुले बाज़ारों में भी सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं जिसे लडकियां ख़ुद भी ख़रीद सकती हैं. (6 पीस वाले एक पैकेट की कीमत 15 रूपए है और 8 पीस के एक पैकेट की कीमत 20 रूपए है)
किशोरी सुरक्षा योजना के अंतर्गत सरकारी विद्यालयों/परिषदीय विद्यालयों/ में कक्षा 6 से कक्षा 12 तक की छात्राओं (जिनको माहवारी प्रारंभ हो गई हो) को नि:शुल्क सेनेटरी नेपकिन दिए जाने का प्रावधान है. इस योजना का उद्देश्य ये था कि लड़कियां जागरूक हों और जो लड़कियां माहवारी के दिनों में स्कूल नहीं जाती हैं वो स्कूल जाना शुरू करें.
विवेकानंद पालिक्लिनिक में लखनऊ ओबीज़ एंड गाइनोकालज़ी सोसाइटी की प्रेसिडेंट डॉ. इंदु टंडन का मानना है कि “लड़कियों का स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किशोरावस्था से ही आरम्भ हो जाना चाहिए. प्रत्येक लड़की को उनके स्वास्थय से जुड़े पहलुओं पर प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक है. इस सन्दर्भ में उन्हें एनीमिया, यौन स्वास्थय, आत्म रक्षा इत्यादि के विषय में जानकारी दी जानी चाहिए.”
क्या कहते हैं आंकड़े ?
किशोरियां देश की सम्पूर्ण जनसँख्या का 11 प्रतिशत हैं. उनके सही विकास के लिए माहवारी की जानकारी दी जानी आवश्यक है.
लगभग 30 प्रतिशत किशोरियां एक ही कपड़े को बार –बार धो कर दोबारा इस्तेमाल करती हैं.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे– 3 आंकड़ों के अनुसार 40 प्रतिशत किशोरियां कक्षा 7 के बाद स्कूल आना छोड़ देती हैं. माहवारी से उपजी असहजता को इसके एक मुख्य कारण के तौर पर देखा जा सकता है.
यूनिसेफ की 2012 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 280 लाख बच्चों को स्कूलों में शौचालय की सुविधा नहीं मिलती.
यूनेस्को 2012 की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 66% किशोरियों को मासिक धर्म शुरू होने से पहले उसकी जानकारी नहीं होती.
ए.सी नेल्सन की 2011 की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में केवल 12% महिलाएं सेनेटरी नैपकिन प्रयोग करती हैं, बाकी महिलाएं पुराना कपड़ा, राख, बालू इत्यादि का प्रयोग करती हैं.
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आदर्श परिदृश्य
वास्तविकता
साफ़ एवं स्वच्छ शौचालय जहाँ साबुन एवं पानी की व्यवस्था होने चाहिए.
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा किये गए सर्वे के अनुसार 60% भारतीय परिवारों के घरों में शौचालय नहीं होते, जिसके कारण लड़कियां व महिलाएं अस्वच्छ व असुरक्षित माहौल में जीने को बाध्य होती हैं.
लड़कियों में माहवारी के दौरान रखी जाने वाली साफ़ सफाई की जानकारी स्कूलों और घरों में दी जानी चहिये.
75% गाँव की महिलाओं को मासिक के दौरान रखी जाने वाली साफ़ सफाई की जानकारी नहीं होती और 23% लड़कियां माहवारी के बाद स्कूल छोड़ देती हैं.
मासिक एक सामान्य प्रक्रिया है और इसको लेकर किसी भी प्रकार के छुआछूत की भावना नहीं होनी चाहिए.
70% माएं माहवारी को गन्दा और अशुद्ध मानती हैं.