जुबिली न्यूज़ डेस्क
नई दिल्ली. उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की जाँच रिपोर्ट पर अदालत ने सवाल उठाये हैं. दिल्ली पुलिस की जांच पर अदालत ने कहा है कि ऐसा लगता है कि सिर्फ एक पक्ष को निशाना बनाया जा रहा है.
पुलिस जांच रिपोर्ट पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं लेकिन उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों की पुलिस जांच रिपोर्ट को पढ़ने के बाद जज धर्मेन्द्र राणा की टिप्पणी दिल्ली पुलिस के क्रियाकलाप से पर्दा उठाने के लिए काफी है.
सेशंस जज धर्मेन्द्र राणा ने दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस से दंगों से सम्बंधित मामले की अपनी निगरानी में निष्पक्ष जांच का आदेश देते हुए कहा कि पुलिस की जांच रिपोर्ट परेशान करने वाली है. इस रिपोर्ट में सिर्फ एक पक्ष को निशाना बनाया गया है. जांच अधिकारी यह तक नहीं बता पाए कि दंगे में दूसरे पक्ष की संलंग्नता में जांच भी हुई या नहीं.
दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सेशंस जज धर्मेन्द्र राणा ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल की गिरफ्तारी मामले की सुनवाई के दौरान यह बात कही. दिल्ली पुलिस ने आसिफ को आतंकवादियों के खिलाफ बने क़ानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था. 21 मई को गिरफ्तार आसिफ पर इल्जाम था कि उसने 15 दिसम्बर 2019 को दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर में नागरिकता क़ानून के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के दौरान अपने भाषण से लोगों को भड़काया था इसी वजह से हिंसा हुई थी.
यह भी पढ़ें :डंके की चोट पर : … तो जन्नत मर बदल गई होती यह ज़मीन
यह भी पढ़ें : कोरोना काल में सुरक्षित सफर होगा चुनौती
यह भी पढ़ें : व्हाइट हाउस तक पहुंची हिंसक झड़पों की आग
यह भी पढ़ें : Lockdown-4 क्यों साबित हुआ बुरा सपना
पुलिस ने जज से आसिफ को 30 दिन के न्यायिक हिरासत में माँगा था. जज ने पुलिस की इस प्रार्थना को तो स्वीकार कर लिया लेकिन पुलिस की केस डायरी पर तल्ख टिप्पणियाँ करते हुए डिप्टी कमिश्नर ऑफ़ पुलिस को अपनी निगरानी में जांच का आदेश भी दे दिया. जज ने कहा कि पुलिस ने गिरफ्तार लोगों की जो सूची पेश की है उसे देखकर ही यह पता चल जाता है कि उसकी जांच किस दिशा में जा रही है.
उल्लेखनीय है कि दिल्ली पुलिस ने दंगों के इल्जाम में छात्र सफूरा जरगर, मीरान हैदर, पार्षद इशरत जहाँ और सामाजिक कार्यकर्त्ता खालिद सैफी को गिरफ्तार किया था. यह सभी लोग नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों में शामिल हुए थे.