शबाहत हुसैन विजेता
आदरणीय प्रधानमंत्री जी.
देश आपदा के दौर से गुज़र रहा है. छोटी-छोटी नोकझोंक को दरकिनार किया जाए तो मौजूदा समय में देश एक प्लेटफार्म पर खड़ा है. हर मुद्दे पर आस्तीन चढ़ाने वाला विपक्ष न सिर्फ सरकार के साथ खड़ा है बल्कि गाहे-बगाहे सरकार की तरफ मदद के लिए हाथ भी बढ़ा रहा है.
कोरोना के हमले को कमज़ोर करने के लिए सरकार ने लॉक डाउन किया, बहुत अच्छा किया. सरकार की बात को पूरे देश ने सर आँखों पर लिया इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता. लॉक डाउन की वजह से विभिन्न राज्यों में फंसे 4 करोड़ प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को समझने में सरकार से चूक हुई इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता.
22 मार्च को आपने पूरे देश में एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया था. बगैर किसी सुपरविजन के 130 करोड़ लोगों ने जिस संयम और साहस के साथ उसे कामयाब बनाया था, उसी समय अगर सरकार ने मजदूरों को उनके राज्यों में वापसी के लिए ट्रेनें चलाने का इंतजाम भी कर लिया होता तो शायद देश में इतनी अफरातफरी नहीं मची होती.
जिस तरह से एक महीने बाद मेडिकल चेकअप के बाद सफ़र और क्वारंटाइन करने का काम किया गया अगर पहले ही इसकी प्लानिंग हो जाती तो शायद रेल की पटरी पर मजदूर नहीं मरते. तब घर लौट रहे मजदूरों को गाड़ियाँ नहीं कुचलतीं, तब टैंकर में घुसकर लोग सफ़र को मजबूर नहीं होते. तब लम्बी दूरियां पैदल चलकर लोग नहीं मरते.
ज़ाहिर है कि आप यह कह सकते हैं कि ऐसी आपदा पहली बार आई थी. ऐसी आपदा को हैंडिल करने का अनुभव सरकार के पास नहीं था. जैसे-जैसे विचार आते गए वैसे-वैसे सलाह-मशविरे के बाद चीज़ें होती चली गईं.
आपने जब पूरे देश से ज़रूरतमंदों की मदद का आह्वान किया तो आम लोगों के साथ-साथ वह विपक्ष भी मदद के लिए लोगों के बीच पहुँच गया जिसका काम सरकार के काम की समीक्षा और जनता को उसके अधिकारों के लिए जागरूक करना है. जिस राहुल गांधी को आप शहजादे-शहजादे कहकर मंद-मंद मुस्कुराते थे और आपकी पार्टी उन्हें पप्पू साबित करने पर जुटी थी उन्होंने भी अपनी एक तिहाई सम्पत्ति कोरोना से जंग के लिए दे दी. राहुल-प्रियंका और कांग्रेस ने कोरोना काल में जो किया है उसे सियासी तौर पर आप जैसे भी लें मगर निजी तौर पर झुठला नहीं सकते हैं.
असदुद्दीन ओवैसी से संसद में आपकी और आपकी पार्टी की जो भिड़ंत होती है वह सबने देखी है लेकिन कोरोना काल में हैदराबाद में ट्रकों में भरकर जिस तरह से उन्होंने राहत सामग्री बंटवाई है उसकी सराहना तो आपको भी करनी ही पड़ेगी.
सोनिया गांधी ने तमाम मजदूरों का ट्रेन का टिकट खरीदकर दिया. अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव ने लोगों की मदद के लिए जो कुछ भी किया वह सबने देखा है, आपने भी देखा ही होगा.
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आपसे विपक्ष की बात सिर्फ इसलिए की क्योंकि इस मौके पर आपसे यही कहना है कि देश आपदा के दौर से गुज़र रहा है और आपदा के समय में सियासी लोग भी खुले हाथ से मदद के लिए खड़े हैं.
लम्बे लॉक डाउन से लोगों के व्यापार चौपट हो गए हैं. लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं. रोज़ कमाने-खाने वालों के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई है. अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आपने देश को 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया है.
इस 20 लाख करोड़ के पैकेज में 7 लाख करोड़ आप पहले ही दे चुके हैं. बचे हुए 13 लाख करोड़ के बंटवारे पर वित्त मंत्री लगातार मगजमारी कर रही हैं. उद्योगों को पैसा बांटने किन बात है. गरीबों को राशन देने की बात है. बिजली कंपनियों की चरमराई दशा को ठीक करने की बात है. रेहड़ी वालों, ठेला लगाने वालों को पांच-पांच हज़ार रुपये की सहायता देने की बात है.
यह पूरा 13 लाख करोड़ बंट जाएगा. सरकार खाली हाथ हो जायेगी. मगर यह पैसा बंट जाने के बाद क्या पूरे देश में खुशहाली लौट आयेगी. क्या जिन छोटे व्यापारियों के व्यापार चौपट हो गए वह फिर से खड़े हो जायेंगे. क्या कई महीने बेरोजगार रहने वाला मजदूर कुछ ही दिनों में अपना पूरा कर्जा उतार पायेगा. क्या बिजली कंपनियों के दिन फिर से बहुर जायेंगे. हालात सामान्य होने के बाद क्या विपक्ष इस धन के बंदरबांट की खाल नहीं उतारेगा. क्या आपसे कोरोना काल में हुए खर्च का हिसाब नहीं माँगा जाएगा. 13 लाख करोड़ जैसी बड़ी रकम को खर्च करने के बाद भी कुछ हज़ार लोगों की किस्मत चमकाने के अलावा आप कुछ भी नहीं कर पाएंगे.
आप अपने हर भाषण में 130 करोड़ देशवासियों की बेहतरी का सपना देखते हैं. उनकी भलाई की बातें करते हैं. एक बार सोचकर देखिये कि क्या आप वाकई में 13 लाख करोड़ खर्च करने के बाद भी 130 करोड़ लोगों तक मदद पहुंचा पाएंगे.
13 लाख करोड़ बहुत बड़ी रकम होती है. भारत विशाल देश है. इस रकम का बंटवारा सभी राज्यों के भूभाग के हिसाब से किया जाना चाहिए. जितना पैसा जिस राज्य के हिस्से में आये उस पैसे से उस राज्य में ऐसा उद्योग स्थापित किया जाए जिससे मजदूर को अपने ही राज्य में मजदूरी मिल जाये. इससे मजदूरों का पलायन भी रुकेगा और हर हाथ को काम भी मिलेगा. उद्योग स्थापित होंगे तो शिक्षित और अशिक्षित सभी को रोज़गार मिल जाएगा.
यह आपदा का समय है तो इसमें भविष्य को ध्यान में रखकर सोचा जाना चाहिए. 60-65 साल पहले हैजे के रूप में आपदा आई थी. अभी कोरोना के रूप में आई है. उत्तराखंड में कुछ साल पहले जैसी आपदा आई थी वैसी दुनिया के किसी न किसी कोने में आती ही रहती है. कभी सुनामी के रूप में, कभी बड़ी दुर्घटना के रूप में और कभी युद्ध के रूप में.
दिक्कतों का स्थाई समाधान ढूँढिये. सरकारें आयेंगी और जायेंगी. सरकार चलाने की ज़िम्मेदारी बदलती रहती है लेकिन हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर पहुँचने की मजबूरी की पुनरावृत्ति न हो इसका इलाज तो खोजना ही होगा.