अनूप मणि त्रिपाठी
आज रहम दिल बादशाह निकला है अपनी रिआया का हाल जानने। वैसे तो वह अपने किले की फ़सील से ही मुल्क के नाम पैगाम देकर अपनी रिआया से मुखातिब होता रहा है। पर आज वह निकला है। निकला भी क्यों क्योंकि बहुत दिनों से उसने गैर मुल्कों का दौरा नहीं किया था। वर्जिश करने के बावजूद भी उसका पेट निकले जा रहा था। चुनाँचे,पेट को कम करने के लिए वह अपने राजमहल से बाहर निकला।
निकलने से पहले उसने अपने मेकप आर्टिस्ट और हेयर ड्रेसर को बुलाया और सख्त हिदायद दी,’ देखो बादशाह होकर भी मैं फकीर जैसा लगता हूँ। आज तुम लोग मेरा ऐसा हुलिया बदलो कि मैं हकीकत में बादशाह जैसा दिखूं, ताकि रिआया पर मैं जाहिर न हो सकूं!’
‘बादशाह सलामत की दूरंदेशी का जवाब नहीं! बादशाह का इकबाल बुलंद रहे!’ दोनों फनकारों ने एक साथ अपनी कलाकारी दिखायी। बादशाह सलामत जब निकलने को हुए, तो पहरेदार बोला,’जहाँपनाह! इजाजत हो तो कुछ अर्ज करूँ!’
‘बको!’ ऐन वक्त पर टोके जाने से बादशाह का मूड खराब हो गया था।
‘हुजूर! अगर सुरमा और लगा लेते!’
‘वाह! वाह! क्या कहने!’
‘सुभान अल्लाह!जनाब ने क्या मशवरा दिया है!बादशाह सलामत बुरी नजर से भी बच जाएंगे!’ मेकप आर्टिस्ट और हेयर ड्रेसर बारी-बारी से बोले।
बादशाह को पहरेदार का मशवरा पसंद आया। इसका नतीजा यह हुआ कि मेकप आर्टिस्ट और हेयर ड्रेसर की तनख्वाह कम करने का बादशाह ने फौरन फरमान सुनाया। जिस पर फौरन अमल भी कर दिया गया। बादशाह के मुताबिक दोनों फनकारों ने अपने काम में कोताही बरती थी। जो मशवरा इन्हें देना था,वह पहरेदार की तरफ से आया। पहरेदार के बादशाह सलामत ने तारीफों के पुल बांधें और उसकी तनख्वाह में कुछ भी इजाफा न किया। जबकि पहरेदार काफी देर तक सजदे में हाथ हिलाता रहा।
तो बादशाह निकल पड़ा अपने मुल्क में। एक चौराहे पर वह पहुंचा। लोग बादशाह की ही बात कर रहे थे। बादशाह उनके बीच शामिल हो कर उनकी बातें सुनने लगा।
‘भई बादशाह का चेहरा बहुत चमकता है!’
‘क्या खाता है भाई!’
‘मुल्क!’
वहां बैठे सभी लोग हँसने लगे! बादशाह भी हँसा। मगर खिसियाई हँसी।(आप ने क्या सोचा बादशाह हँसेगा नहीं! ऐसे थोड़ी न वह बादशाह बना!’
‘मगर वह कहता है कि मजदूर के पसीने को मैं अपने चहेरे पर मल लेता हूँ, तो चमक उठता हूँ!’ बादशाह बोला।
‘देखिए जनाब! लगता है हुजूर भी शौक फरमा कर आए हैं!’ एक व्यक्ति बोला, सब हँस दिए। बादशाह भी हँसा।(आप ने क्या सोचा!) बादशाह वहां से फ़ौरन उठा। उसे किसी चीज की तलब लगी। सबने उसे देखा। बादशाह को शंका हुई कि उन्हें शक हो गया है। उनका शक दूर करने और अपना सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ाने की गरज से बोला,’वह बादशाह…अरे क्या नाम है उसका!’ बादशाह ने अभी इतना ही कहा था कि सब एक सुर में बोले,’नाम न लें!’
यह पहली घटना थी।
बादशाह की तलब महल में पहुंच कर ही शांत हो सकती थी, मगर वह महल अभी जाना नहीं चाहता था। बादशाह को लगा अभी उसने ज्यादा कैलोरी बर्न नहीं की है।
वह चलते-चलते हाइवे पर आ गया। उसकी आँखें फटी की फटी रह जानी थी! मंजर ही कुछ ऐसा था! मगर बादशाह की आंखें और चेहरा नार्मल रहा। गोकि वह यह सब देखने का आदी हो! मंजर कुछ ऐसा था कि जैसे मुल्क का बंटवारा हो रहा हो! लोग एक मुल्क से दूसरे मुल्क में जा रहे हो! बादशाह ने देखा कि एक खातून अपने नवजात को लिए धीरे-धीरे जा रही है। बादशाह को लगा कि इससे बात करना सही होगा। वह उस औरत से बात करने लगा। मगर वह औरत थकान से इतनी चूर थी कि उसका बात करने का मन न हुआ! उसके बदले उसके पति ने बादशाह से बात की।
‘मुबारक हो! ‘ बादशाह बोला।
आदमी कुछ नहीं बोला।
‘लड़का ही है न!’ बादशाह दुबारा इत्मीनान करना चाहता था।
‘कहां डिलीवरी करवाई!’
‘सड़क पर!’ अब वह आदमी बोला।
‘कहां पर!’बादशाह एक्ज़ेक्ट लोकेशन जानना चाहता था।
‘तरक्कीपुर!’
‘अरे वह यहां से तो बहुत दूर है! तकरीबन एक सौ नब्बे किलोमीटर!’ बादशाह को हैरत हुई ।
‘मालूम है! बच्चा होने के एक घण्टे बाद ही हम चल दिये थे!’
‘इस मुल्क का बादशाह जो है..!’ बादशाह अभी इतना बोला था कि ‘नाम न लो भाई!’ कहते हुए व्यक्ति आगे चल दिया।
यह दूसरी घटना थी।
बादशाह ने देखा कि एक आदमी एक बूढ़ी को लादे चला आ रहा है।
‘क्यों विक्रम-बेताल खेल रहे हो!’ बादशाह ने अपना कन्सर्न दिखाया।
‘नहीं हुजूर! हमार माई हौ!’
‘तो लादे क्यों हो!’
‘चल नाहीं सकत!’
‘ कितनी एज है !’
‘हम जानत बानी की नब्बे पुरियात है!’
‘अब और कितना इनके चलईबो!’ यह कहकर बादशाह खुद पर फिदा हो गया। अपने सेन्स ऑफ ह्यूमर पर नहीं, उसे लगा कि वह बहुत जमीनी है। उसने आम आदमी की जुबान में बात की।
‘इस मुल्क का बादशाह…’ बादशाह यह आखिरी सवाल पूछने ही जा रहा था कि ‘नाम मत लो भाई!’ अपने आंसू पोछता वह आगे बढ़ गया।
यह तीसरी घटना थी।
एक टमटम तेजी से चली आ रही थी । आकर बादशाह के पास रुकी । टमटम वाले ने आगे का रास्ता पूछा। बादशाह ने देखा कि छोटे से टमटम में सौ से ज्यादा लोग भरे हुए हैं। किसी ने अपने घुटने मोड़े थे, किसी ने अपनी गर्दन। ‘इतने लोग समा कैसे गए!’ बादशाह सोच रहा था। जबकि इसी बीच टमटम वाले ने दो बार उससे आगे का रास्ता पूछा। टमटम वाला बादशाह को नशेड़ी समझ आगे बढ़ने लगा।
‘तुम्हारे घोड़े बहुत खूबसूरत हैं!’ बादशाह टमटम को जाते देख बोला।
‘ऐसा करो यहां के बादशाह…’ नाम न लो उनका!’ टमटम वाला तेज बोलता हुआ आराम से निकल गया।दरअस्ल, बादशाह घोड़े खरीदने के बारे में बात करना चाहता था,मगर टमटम वाले ने पूरी बात सुनी ही नहीं।
यह चौथी घटना थी।
बादशाह ने सोचा कि मुल्क का उसने काफी जायजा (काफी कैलोरी बर्न कर ली) ले लिया है। वह अभी महल लौटने की सोच ही रहा था कि उसने देखा कि एक लड़का और एक बूढ़ा चले आ रहे हैं। बूढ़े की दाढ़ी सफेद से मटमैली हो चुकी थी। बच्चे को देखकर बादशाह चौंका।
वह सीधे बच्चे से बोला,’यह क्या पहने हो!’
‘कप्पल!’
‘हैएं!’
‘चप्पल’ बूढ़े ने बताया।
‘बहुत ही खूबसूरत और नायाब हैं!’ बादशाह ने बच्चे के चप्पल की तारीफ की। जो पिचकी हुईं प्लास्टिक की बोतल को तलवों से चिपका कर कपड़े से बांधा गया था । बादशाह का इंटरेस्ट बच्चे में खत्म हो गया था।
‘और चाचा! आपकी तबियत कुछ गिरी लगती है!’ बादशाह ने बूढ़े से पूछा।
‘ तीन दिन से भूखा हूं बेटा! मैं गिरा नहीं क्या यह कम है!’ बूढ़े ने करहाते हुए जवाब दिया।
‘यहां के बादशाह जो हैं…’,
‘भाई नाम न लो!’ बूढ़ा हाथ जोड़कर बोला। इस तरह से इस बार भी बादशाह का आखिरी जुमला अधूरा रह गया।
यह पांचवीं घटना थी।
बादशाह महल को लौटने लगा। अभी चला ही था कि उसने देखा एक नौजवान बेहोश लेटा है। उसका सर दूसरे नौजवान की गोद में रखा हुआ है। बादशाह उसके पास पहुंच गया। बादशाह ने सारी बात जाननी चाही। वह आज जानने के मूड में था भी। नौजवान ने बताया कि वे हजारों किलोमीटर दूर अपने गांव जा रहे थे। रास्ते में इसकी तबियत खराब हो गयी। लोग कोरोना समझ कर जबरन इसे उतार दिए। इसके पीछे-पीछे वह भी उतर आया।
‘तुम्हारा कौन है ये!’ बादशाह ने पूछा।
‘भाई है!’
‘तुम्हारा नाम क्या है!’
‘अशफाक!’
‘और तुम्हारे भाई का!’
‘राम प्रसाद!’
यह सुनते ही बादशाह भड़का।
‘झूठ बोलते हो! भाई कैसे हो गए! दोनों का मजहब जुदा है!”
‘इसमें झूठ क्या है! यह मुझे और मैं इसे भाई बोलता और मानता हूं!’
‘यह झूठ अगर बादशाह को पता चल गया…’
‘नाम न लेना बादशाह का!’ नौजवान बेसब्री से आसपास मदद को देखने लगा।
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यह छठी घटना थी।
इसके बाद बादशाह महल में लौट आया।
उसके आते ही उसका वजीर बोला,’तलब लगी होगी हुजूर को! थक गए होंगे’
‘लगी तो है, मगर पहले एक जरूरी काम कर लूं!’ बादशाह बोला।
‘इससे जियादा जरूरी कौन-सा काम जहाँपनाह!’ वजीर मुसकुराते हुए बोला।
‘बात तो सही है तुम्हारी, पर अभी कुछ मूड नहीं बन रहा! आज मैं डायरी लिखूंगा!’
‘जैसी हुजूर की मर्जी!’ बादशाह के मन की बात को समझते हुए वजीर बोला।
वजीर के जाने के बाद राजा डायरी लिखने बैठ गया;
आज मैं बहुत खुश हूँ। आज मैं अपने मुल्क का जायजा लेने के लिए निकला था।
यहां के लोगों का सेन्स ऑफ ह्यूमर बहुत खराब है। वे इसका बेजा फायदा उठाते हैं और हकीकत को चंदूखाने की गुप्प समझते हैं। (पहली घटना के सम्बंध में)
यहां की औरतें बहुत मेहनती और बच्चे बहुत किस्मतवाले हैं। सड़क पर पैदा होने के बाद भी जी जाते हैं। और औरतें डिलीवरी के बाद मीलोमील चल लेती हैं । (दूसरी घटना के संदर्भ में)
यहाँ के लोग बहुत जज्बाती होते हैं। वह बेकार चीजों को भी पीठ पर लादे घूमते हैं।(तीसरी घटना के संदर्भ में)
मुझे यह देख कर फिक्र हो रही है कि मुल्क की आबादी में जबरदस्त इजाफा हो रहा है। माचिस की डिबिया बराबर जगह में बक्सा भर लोग होते जा रहे हैं। इस मसले पर एक सख्त कदम उठाए जाने की सख्त दरकार है।( चौथी घटना के संदर्भ में)
इस मुल्क का मुस्तक़बिल रौशन है। और हो भी क्यों न! जब इस मुल्क का बच्चा इतना हुनरमंद और बुजुर्ग साबिर.. साबिर नहीं ताकतवर हो!(पांचवी घटना के संदर्भ में)
पर यहां झूठ बोल के अफवाह फैलाने वाले कम नहीं है। (छठी घटना के संदर्भ में)
इस मुल्क का इतना नाम क्यों है! इस मुल्क का डंका गैरमुल्कों में क्यों बज रहा है! क्योंकि मुल्क के लोग अपने बादशाह को बहुत इज्जत देते हैं। यहां तक कि उसका नाम तक नहीं लेते। मुझे अंदाजा तो था, अब मेरा यकीन पुख्ता हो गया…
बादशाह अभी और लिखता मगर लिखते-लिखते बादशाह सो गया। उसे देखकर ऐसा लगता था कि जैसे वह बरसों से सो रहा हो और उसके खर्राटे बता रहे थे कि वह जल्दी जगने वाला नहीं…
(लेखक सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं.)