जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ. लॉक डाउन ने आमदनी के रास्ते बंद कर दिए. लोगों ने हाथ रोककर खर्च करना सीख लिया. वहीं सहस्त्राब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन ने खर्च करना सीख लिया. बीस साल पहले अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड डूबने के बाद बिग बी के सामने पैसों का बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया था. उस दौर में उद्योगपति से राजनीतिज्ञ बने उनके एक मित्र की सलाह पर देश में सबसे बड़े परिवार का दावा करने वाले व्यवसायी की मदद से अमिताभ बच्चन को राहत मिली थी.
अमिताभ बच्चन ने तब जो आर्थिक नुक्सान उठाया था, उसने उनका नजरिया ही बदल कर रख दिया. इस नुक्सान के बाद मित्रों की मदद से अमिताभ संभल तो गए लेकिन दोबारा खड़े होने के बाद पैसा उनकी प्राथमिकता में शामिल हो गया. फिल्मों में अभिनय के लिए अमिताभ ने अपने किसी भी मित्र से पैसों को लेकर समझौता नहीं किया. मुफ्त में काम के लिए दूर से ही हाथ जोड़ लिए.
बीस साल पहले कमाई को लेकर अमिताभ का जो नजरिया बदला था उसमें लॉक डाउन में थोड़ी तबदीली आई है. सड़कों पर उमड़े मजदूरों के रेले और भूख से तड़पते लोगों को देखने के बाद अमिताभ बच्चन ने 28 मार्च 2020 से भूखे लोगों की मदद का सिलसिला शुरू किया. मुम्बई के हाजी अली इलाके में अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड साढ़े चार हज़ार लोगों के खाने का रोज़ इंतजाम कर रही है.
अमिताभ बच्चन ने कहा भी कि जितना मैंने 78 साल में नहीं सीखा उतना लॉक डाउन ने सिखा दिया. अमिताभ ने सोनू सूद को मजदूरों की मदद करते हुए देखा तो वह खुद भी प्रेरित हुए. इसके बाद उन्होंने भी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए बसों का इंतजाम किया.
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अमिताभ बच्चन ने ज़िन्दगी में नाम और पैसा दोनों बेशुमार कमाया लेकिन उनकी कम्पनी एबीसीएल के कई प्रोजेक्ट फेल हुए और अमिताभ की मेहनत की कमाई पूरी तरह से लुट गई. हालात इस हद तक खराब हो गए कि अमिताभ को यश चोपड़ा के पास काम मांगने जाना पड़ा. उनके बुरे वक्त में उनके दो मित्रों ने उनकी मदद की और कर्ज़ में डूबे अमिताभ को कर्जों से मुक्ति दिलाई.
मजदूरों की बदहाली देखकर अमिताभ को शायद वह गुज़रा ज़माना याद आया और यह बात भी समझ आयी की ज़रूरतमंद की किसी न किसी को मदद करनी ही पड़ती है. यही वजह है कि वह करीब दस हज़ार परिवारों को महीने भर का राशन देने के अलावा साढ़े चार हज़ार लोगों के लिए रोजाना खाना बनवा रहे हैं.