प्रीति सिंह
अक्सर जब हाईस्कूल-इंटरमीडियट का परिणाम घोषित होने वाला रहता है तब सोशल मीडिया पर एक कॉमन पोस्ट दिखती है कि हार में ही जीत छिपी होती है। इसलिए परीक्षा परिणाम को लेकर छात्र परेशान न हो। अभिभावकों के लिए भी कुछ संदेश दिया जाता है।
ऐसा ही संदेश तब दिखता है जब इंजीनियरिंग या मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश की तैयारी कर रहा कोई छात्र खुदकुशी कर लेता है। इस पर कुछ दिनों तक बहस चलती है और अभिभावकों से लेकर विशेषज्ञ कहते हैं कि छात्रों पर अभिभावक दबाव न बनाए।
लेकिन कुछ ही दिनों बाद हम सब यह भूल जाते हैं और फिर सब उसी पुराने ढर्रें पर चलने लगते हैं। अभिभावक भी सब भूल जाते हैं और बच्चों को गलाकाट प्रतिस्पर्धा में शामिल होने के लिए धकेल देते हैं।
शायद इसी का नतीजा है कि देश में हर साल दस हजार छात्र खुदकुशी की राह चुनते हैं। मतलब हर 55 मिनट में एक छात्र खुदकुशी कर लेता है। यह आंकड़ा मानव संसाधन विकास मंत्रालय का है।
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अब एक और आंकड़ें की बात करते हैं। कोचिंग के गढ़ कोटा में 2011 से 2019 के बीच अलग-अलग कोचिंग संस्थानों में पढऩे वाली 31 लड़कियों समेत कुल 104 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है।
खुदकुशी का कदम उठाने वाले ये विद्यार्थी कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों की उन प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, जिनमें लाखों उम्मीदवारों को गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
यह खुलासा एक आरटीआई में हुआ है। मध्य प्रदेश के नीमच निवासी आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ की अर्जी पर कोटा पुलिस ने सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी दी है।
कोटा के एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) ने जवाब में बताया कि शहर में कोचिंग संस्थानों के विद्यार्थियों की आत्महत्या के 2011 में छह, 2012 में नौ, 2013 में 13, 2014 में आठ, 2015 में 17, 2016 में 16, 2017 में सात, 2018 में 20 और 2019 में आठ मामले सामने आए।
आरटीआई के तहत ही मालूम हुआ है कि खुदकुशी करने वाले इन विद्यार्थियों की उम्र 15 से 30 वर्ष के बीच थी। खुदकुशी करने वालों में राजस्थान के साथ ही बिहार, हिमाचल प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, झारखंड, पंजाब, केरल, गुजरात, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर और तमिलनाडु के विद्यार्थी शामिल हैं।
हालांकि आरटीआई से मिली जानकारी में इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि देश के शीर्ष मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिले की जबर्दस्त होड़ में शामिल इन विद्यार्थियों ने किन कारणों से आत्महत्या की।
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आरटीआई में भले ही छात्रों के आत्महत्या का कारण नहीं बताया गया है पर इसकी वजह क्या है सभी जानते हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है यह बताने की जरूरत नहीं है।
कोटा कोचिंग का गढ़ माना जाता है। हर साल यहां इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में नामांकन कराने के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाओं की तैयार करने के लिए देशभर से करीब दो लाख छात्र आते हैं। ये यहां के कोचिंग संस्थानों में दाखिला लेकर तैयारी करते हैं।
ये हकीकत है कि कोटा में सफलता का स्ट्राईक तीस परसेंट से उपर रहता है और देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप टेन में कम से पांच छात्र कोटा के ही रहते हैं, लेकिन कोटा का एक और सच भी है जो भयावह है। कोचिंग की मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा रहा है।
कोटा शहर के हर चौक-चौराहे पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि कोटा में कोचिंग हीं सब कुछ है। उनका मकसद लोगों को बताना होता है कि जिसने वहां तैयारी नहीं की उसका इंजीनियरिंग-मेडिकल में प्रवेश नहीं हो पायेगा।
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देश के तमाम नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे मोटे 200 कोचिंग संस्थान कोटा में चल रहे हैं। आज की तारीख में कोटा शहर देश में कोचिंग का सुपर मार्केट है। एक अनुमान के हिसाब से कोचिंग के इस बाजार का सालाना टर्नओवर एक हजार आठ सौ करोड़ का है। ऐसा भी अनुमान है कि कोचिंग सेन्टरों द्वारा सरकार को अनुमानत: सालाना 100 करोड़ रूपये से अधिक टैक्स के तौर पर दिया जाता है।
ये आंकड़े देने का मकसद है ये बताना कि आज शिक्षा का स्तर कहां पहुंच गया है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कोचिंग संस्थान खुद को बाजार में बनाए रखने के लिए छात्रों पर कितना दबाव बनाते होंगे।
गरीब तबके के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को आईआईटी प्रवेश परीक्षा की कोचिंग देने वाले पटना स्थित मशहूर संस्थान ‘सुपर 30’ के संस्थापक आनंद कुमार भी कई बार कह चुके हैं कि मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के दौरान विद्यार्थी भारी मानसिक दबाव का सामना करते हैं। वह यह भी कह चुके हैं कि ‘अक्सर इस दबाव का पहला कारण विद्यार्थियों के परिजनों का यह अरमान होता है कि उनकी संतानों को डॉक्टर या इंजीनियर ही बनना चाहिए।
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आपको याद होगा कि दो वर्ष पूर्व कोटा में ही कोचिंग करने वाली छात्रा कीर्ति त्रिपाठी ने अपनी सुसाइड नोट में बहुत कुछ लिखा था। कीर्ति ने लिखा था कि उनकी मां उनकी बहन पर इंजीनियर या डॉक्टर बनने का दबाव न बनाए।
उन्होंने यह भी लिखा था कि भारत सरकार और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को जल्द से जल्द इन कोचिंग संस्थानों को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि यहां बच्चों को तनाव मिल रहा है। उन्होंने लिखा था कि मैंने कई लोगों को तनाव से बाहर आने में मदद की, लेकिन कितना हास्यास्पद है कि मैं खुद को इससे नहीं बचा पाई।
छात्रों की खुदकुशी का सिलसिला पुराना है। बहस लंबे समय से चल रही है। खुदकुशी की वजह भी लंबे समय से तलाशी जा रही है। अब वजह तलाशने की नहीं बल्कि इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।