केपी सिंह
उत्तर प्रदेश में विद्युत विभाग के भविष्य निधि घोटाले को लेकर सरकार चाहे जितनी सफाई दे लेकिन जो तथ्य सामने आये हैं उनके मद्देनजर उसकी किरकिरी रुक नही सकती। भ्रष्टाचार के मामले में सरकार के ढीले-ढाले रवैये की वजह से प्रदेश में निजाम बदलने के बाद भी सुशासन की कल्पना संभव नही हो पा रही है। इस घटना से सबक लेकर राज्य सरकार को भ्रष्टाचार नियंत्रण से संबंधित मशीनरी को चुस्त करने की कारगर कार्यनीति तैयार करने का फैसला लेना चाहिए।
2200 करोड़ रुपये से अधिक की कर्मचारियों की रकम फंसी
बताया जाता है कि 2268 करोड़ रुपये के लगभग के इस घोटाले में 1 हजार इंजीनियरों, कर्मचारियों और पेंशनरों की रकम फंस गई है। हालांकि प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार ने अब आश्वासन दिया है कि कर्मचारियों के भविष्य निधि की देनदारी की गारंटी सरकार उठायेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि अब भविष्य निधि की रकम ईपीएफओ में डाली जायेगी जो केंद्र सरकार की एजेंसी है। इसलिए इसमें कम से कम जोखिम होगा। इसी बीच इस मामले में 2 लोगों यूपी पावर कार्पोरेशन के निदेशक वित्त सुधांशु त्रिवेदी और एम्प्लाइज ट्रस्ट के सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया है। कहा गया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ का रुख इस मामले में बेहद सख्त है। उन्होंने मामले की जांच सीबीआई को सुपुर्द करने की संस्तुति भेजने का फैसला लिया है। इसके पहले ईओडब्ल्यू ने एफआईआर दर्ज कर अपने स्तर से जांच शुरू कर दी है। लेकिन विपक्ष को यह बहुत बड़ा मुददा मिल गया है। जिससे ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की जबर्दस्त घेराबंदी हो रही है।
अखिलेश सरकार पर बला टालकर बरी नही हो सकती भाजपा
यह सही है कि कर्मचारियों की भविष्य निधि अधिक ब्याज के लिए निवेश करने का फैसला अखिलेश सरकार के समय हुआ था और अखिलेश सरकार के समय ही मानकों की परवाह न करते हुए निधि के लगभग 4 हजार करोड़ रुपये दीवान हाउसिंग फाइनेंस में जमा करा दिये गये थे। इस कंपनी को लेकर जब यह खुलासा हुआ कि इसमें कुख्यात आतंकवादी इकबाल मिर्ची और दाउद इब्राहीम के तार जुड़े हुए हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की रिपोर्ट के बाद इसके भुगतान पर रोक लगा दी।
एक महीने पहले निलंबन करके रफा-दफा कर दिया गया था मामला
फिर भी सरकार ने अपनी ओर से इसमें जांच नही कराई। एक गुमनाम पत्र सरकार को मिला तब सरकार को जांच कराने का होश आया। फिर भी एक महीने पहले ही गड़बड़ी उजागर हो चुकी थी। जिसकी वजह से प्रवीण कुमार गुप्ता को निलंबित कर दिया गया था लेकिन मात्र इतने पर ही कार्रवाई रफा-दफा करने का इरादा था। एक बात साफ होती जा रही है कि सरकार को भ्रष्टाचार मुक्त रखने का दारोमदार मात्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर है। लेकिन उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के मंसूबे नेक नही हैं। कुछ समय पहले मत्रिमंडल में फेरबदल में मुख्यमंत्री ने कुछ प्रभावशाली दागी मंत्रियों की छुटटी कर दी थी लेकिन इसके बाद भी दूसरे मंत्रियों को सबक नही मिला है। बहुत कम मंत्री साफ-सुथरे हैं।
पालने में ही दिख गये थे पूत के पांव
सरकार के गठन के समय ही वृंदावन में हुई संघ की समन्वय बैठक में पार्टी के नव निर्वाचित विधायकों की भ्रष्ट करतूतों का जिक्र हुआ था। फिर भी पार्टी ने ऐसा कोई प्रयास नही किया जिससे राजनैतिक समाज संयमित होता। इसलिए पिछले ढाई वर्षों में पार्टी विद ए डिफरेंस का नारा ईमानदार मुख्यमंत्री के होते हुए भी दम तोड़ता गया। इतना ही नही नौकरशाही से वार्षिक रिटर्न के मामले में बैकफुट पर पहुंचकर सरकार ने भ्रष्ट तत्वों पर अपना दबदबा फीका कर लिया।
विपक्ष के सवालों का नही जबाव
विपक्ष सवाल उठा रहा है कि ढाई वर्षों तक गलत कंपनी में भविष्य निधि निवेश का मामला क्यों दबा रहा। इसका सरकार के पास कोई जबाव नही है। इसके बाद दीवान हाउसिंग फाइनेंस के मालिकान द्वारा भाजपा को 20 करोड़ रुपये का चंदा दिये जाने का तथ्य उजागर हो गया जिससे मामला और गंभीर हो गया है।
दुरुस्त करनी होगी भ्रष्टाचार निरोधक मशीनरी
सरकार अगर इस किरकिरी के बाद खबरदार हो जाये तो आगे के ढाई वर्षों में वह अपने बही खाते को उजला कर सकती है। उसे चाहिए कि विजीलेंस, एंटीकरप्शन, आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन और लोकायुक्त को समन्वित कर अभियान छेड़े जिससे आय से अधिक संपत्ति वाले तथा लूट मचाने वाले अधिकारी कर्मचारी चिन्हित हो सकें। इनकी परिसंपत्तियां जब्त की जायें और इन्हें जेल भेजा जाये तभी भ्रष्ट तत्वों में खौफ पैदा होगा और लोगों को सरकार में बदलाव का एहसास कराया जा सकेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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