पॉलीटिकल डेस्क
महाराष्ट्र के सियासी ड्रामें में आज सुबह एक जबरदस्त ट्विस्ट आ गया। करीब एक माह तक चले इस ड्रामें का क्लाइमेक्स ऐसा होगा किसी ने सोचा नहीं था। फिलहाल इस ड्रामें की शुरुआती पटकथा एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने लिखी तो क्लाइमेक्स उनके भतीजे अजित पवार ने। कुल मिलाकर महाराष्ट्र की सियासत को दिलचस्प बनाने वाली एनसीपी के अस्तित्व पर संकट तो है ही साथ ही एनसीपी प्रमुख शरद पवार के सामने भी अपना अस्तित्व बचाने का संकट है।
वैसे शरद पवार के लिए यह कहना कि उनका अस्तित्व संकट में है तो शायद गलत नही होगा। क्योंकि एक माह के घटनाक्रम के केंद्र में शरद पवार ही धुरी बने रहे।
राजनीति ने एक बार फिर अपना रंग दिखाया है। वह राजनीति ही क्या जिसको हर कोई समझ ले। शरद पवार की राजनीति शायद ऐसी ही है। आज शरद पवार कह रहे हैं कि उनके भतीजे ने उन्हें धोखा दिया है। उनकी पार्टी टूट गई है, लेकिन यहां सवाल उठता है कि इसके पहले तक शरद पवार ने शिवसेना के साथ सरकार गठन पर कब सीधा जवाब दिया था।
शुक्रवार को जब बीजेपी ने सरकार बनाने की सारी तैयारी कर ली तब वह फ्रंट पर आए और कहा कि शिवसेना के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं। इसके पहले तक उन्होंने सरकार गठन के सवाल पर कभी सीधा जवाब नहीं दिया। हर बार एक ही जवाब बीजेपी से पूछो। शिवसेना और बीजेपी एक साथ चुनाव लड़ी थी।
पिछले घटनाक्रम को देखे तो स्थिति समझ में आती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एनसीपी की तारीफ करना, पवार का पीएम मोदी और शाह से मुलाकात करना, यह सब ऐसे ही नहीं है। यदि पवार की बात पर विश्वास भी करें तो आज उनके भतीजे अजित पवार ने कहा कि उन्होंने 10 दिन पहले ही शरद पवार को बताया था कि स्थिर सरकार को समर्थन देना प्राथमिकता में है।
इन दोनों नेताओं में कौन झूठ बोल रहा है, इन दोनों के अलावा कोई नहीं जानता। बीजेपी और अजित के बीच इतनी बड़ी डील हो गई और पवार को इसकी भनक नहीं लगी, यह बात समझ से परे हैं। यह राजनीति है। यह ऐसा ही होता है। यहां शुचिता नहीं साम, दाम, दंडभेद काम करता है।
शरद पवार राजनीति के मझे खिलाड़ी है। उन्हें पता है कि सियासत के शतरंज पर कौन सी बाजी खेलनी है। उन्होंने शुरु से सोच समझकर बाजी खेली। चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद शिवसेना और बीजेपी के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर जब रार मची थी तो पवार मूक दर्शक बने रहे। उन्होंने बार-बार कहा कि वह विपक्ष में बैठेंगे।
बीजेपी-शिवसेना की राहें जुदा हो गई तो शिवसेना से बातचीत शुरु हो गई। शिवसेना सरकार बनाने के दावे करती रही लेकिन उन्होंने एक बार भी सरकार बनाने का दावा नहीं किया। शिवसेना प्रवक्ता संजय रावत बार-बार एनसीपी के समर्थन की बात कहते रहे और पवार गोलमोल जवाब देते रहे। वह अंतिम समय पर सस्पेंस बनाए रखे।
राजनीति में भाव भंगिमा से लेकर एक-एक शब्द के मायने होते हैं। शरद पवार की भाव भंगिमा और उनके बयानों से साफ था कि वह शिवसेना के साथ नहीं है। वह खुलकर बीजेपी के खिलाफ कभी नहीं बोले। वह शिवसेना और बीजेपी दोनों को खुश रखे हुए थे।
बीजेपी से नाराजगी मोल लेना पवार को भारी पड़ सकता था, यह सभी जानते हैं। सभी को मालूम है कि शरद और अजित पवार पर ईडी का चाबुक चलने के लिए तैयार है। इस चाबुक से बचना भी पवार की प्राथमिकता में था। जाहिर है उन्हें लालू यादव और चिदंबरम याद आते होंगे।
आज महाराष्ट्र के सियासत की तस्वीर बदल गई है। सत्ता में बीजेपी और एनसीपी आ गई है। आज ऐसी स्थिति बनी है तो उसके पीछे कहीं न कहीं शरद पवार की रणनीति रही है।
अब शरद पवार के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये साबित करने की है कि उनकी पार्टी के ज्यादातर विधायक उनके साथ खड़े है । आज जब उद्धव ठाकरे के साथ उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस की तो भी उन्होंने दावा किया कि पार्टी के वे विधायक अब लौटने लगे है जो अजित पवार के साथ चले गए थे ।
अब अगर शरद पवार शतरंज की इस बिसात को फिर से अपने काबू में कर पाते है तो बीते 50 सालों से महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी पकड़ बनाये रखने के सिलसिले को आगे ले जा पाएंगे , वरना ये मान लेना होगा कि भारतीय राजनीति के इस मराठा क्षत्रप के युग का अवसान हो चला है ।
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