जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। कोरोना लगातार खतरनाक हो रहा है। ऐसे में सरकार कोरोना को रोकने के लिए कड़े कदम उठा रही है लेकिन उसके बावजूद कोरोना ने रफ्तार पकड़ रखी है। कोरोना का असर कई धार्मिक कार्यक्रम पर देखने को मिल रहा है। मोहर्रम बेहद करीब है। ऐसे में अब लोगों को मोहर्रम की चिंता सता रही है। कर्बला के 72 शहीदों का गम हर साल मनाया जाता है और इस बार मुहर्रम 20 अगस्त से शुरू हो रहा है।
मुहर्रम न केवल शिया, बल्कि सुन्नी और कुछ हिंदू भी शहीदों का गम मनाकर पुरसा पेश करते हैं लेकिन इस बार कोरोना की वजह से मोहर्रम पर भी इसका असर पड़ता दिख रहा है।
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने मोहर्रम को 14 बिंदुओं की एडवाइजरी जारी की है। जानकारी के मुताबिक कहा जा रहा है कि मोहर्रम के दस दिनों की मजलिसों का लाइव प्रसारण किया जाएगा, इसलिए घर पर ही मजलिस सुनें। खासकर बुजुुर्ग, बच्चे और महिलाएं भी इसे फॉलो करें।
मजलिस में आने वाले लोगों को फ्री में मास्क वितरित किया जाए। इसके साथ ही मजलिस में भीड़ न लगाएं। ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने साफ कर दिया है कि जिला प्रशासन की अनुमति के बाद जुलूस निकाला जाएगा।
शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा है कि मजलिसों और जुलूसों को लेकर शिया प्रशासन से किसी भी किस्म की जिद न करें।
उन्होंने कहा कि इसी तरह मोहर्रम में लगने वाली सबीलों पर सिर्फ पैक्ड तबर्रुक ही बांटा जाए। इसी तरह नज्र नियाज व दस्तरख्वान में भी खुली खाद्य वस्तु रखना या किसी को खिलाना पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। साथ ही पानी की सील बंद बोतल ही बांटी जाए। खुला पानी नहीं बांटा जाएगा।
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यासूब अब्बास ने कहा कि ये कोरोना का दौर है। अजादारी को कोई खतरा नहीं है। खतरा अजादार को है। मजलिसों में उतने ही लोग शामिल हों जितने कि फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन कर सकें। उन्होंने कहा कि जुलूस में भी भीड़ न लगाएं। लोग घरों से निकलें और जियारत कर फौरन वापस लौट जाएं। बोर्ड ने सबीलों के बारे में कहा है कि प्यासों को पानी पिलाने के लिए कहीं भी खुला पानी न रखें। सील बोतलें ही सबीलों पर रहें।
घरों में होने वाली मजलिसों के बारे में भी कहा गया है कि घरों पर भी बेहिसाब भीड़ न जुटाई जाए। मजलिस-मातम के सिलसिले में प्रशासन अगर कोई दिशा निर्देश जारी करता है तो वह आपके भले के लिए है उसका सख्ती से पालन करें।
उन्होंने बताया कि कोरोना काल में कैसे मजलिस व जुलूस का आयोजन किया जाए इसके लिए देशभर के उलमा से राय ली गई है। मजलिस में एक ओर जहां सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन करना होगा।
जुलूस में केवल उतने ही लोग शामिल होंगे, जितनों की जिला प्रशासन द्वारा अनुमति मिलेगी। क्योंकि, इस कोरोनाकाल में खुद को और दूसरों को संक्रमण से बचाना हमारी जिम्मेदारी है। इमाइ ईदगाह मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने बताया कि गम के महीने को भी ईद-उल-फित्र, ईद-उल-अजहा की भांति प्रशासन की ओर से बनाई गई गाइडलाइन के अनुसार ही मनाने की अपील की गई है।
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बता दें कि शिया समुदाय के लिए मोहर्रम का एक अलग महत्व रखता है। इतना ही नहीं दस दिन इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है और मातम मनाया जाता है।
दरअसल हजरत ईमाम-ए-हुसैन का काफिला 61 हिजरी (680ई) कर्बला की जमीन पर अपना कदम रखा था। उस वक्त कर्बला की जमीन तपती हुई रेगिस्तान बन चुकी थी। मोहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयाइयों को को शहीद कर दिया गया था।