जुबिली न्यूज डेस्क
कांंग्रेस ने गुजरात में एक बड़ा दांव खेला है। कांग्रेस ने वरिष्ठों को दरकिनार कर 26 साल के हार्दिक पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर गुजरात में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। जाहिर है कांग्रेस ने ये कदम ऐसे ही नहीं उठाया है। हार्दिक पर भरोसे की वजह से ही उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। वहीं हार्दिक के सामने जिम्मेदारी के साथ ही बहुत सारी चुनौतियां भी है। अब देखना दिलचस्प होगा कि हार्दिक पटेल इन जिम्मेदारियों और चुनौतियों को कैसे निपटते हैं।
गुजरात में भी कांग्रेस की स्थिति सही नहीं है। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है अपने विधायकों की भगदड़ को रोकना। इसके अलावा दूसरी बड़ी चुनौती है राज्य सरकार द्वारा दर्ज कराए गए मुक़दमे। इन दोनों चुनौतियों से निपटना हार्दिक के लिए आसान नहीं होगा।
गुजरात में कांग्रेस की सांगठनिक स्थिति ठीक है लेकिन विधायकों का पार्टी छोड़कर जाना उसके लिए चिंता का विषय बना हुआ है। मार्च, 2019 से शुरू हुआ यह सिलसिला पिछले महीने हुए राज्यसभा चुनाव तक जारी था। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान की चिंता लगातार बढ़ रही थी और पार्टी में जारी विधायकों की भगदड़ को रोकने के लिए कोई बड़ा कदम उठाना जरूरी था। शायद इसीलिए, सोनिया गांधी ने हार्दिक को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का फैसला किया।
गुजरात में विधानसभा की 8 सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं और माना जा रहा है कि हार्दिक पटेल भी इसमें ताल ठोक सकते हैं। हार्दिक पटेल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ताल ठोकना चाहते थे लेकिन दंगों के एक मुकदमे में कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इस कारण वह चुनाव मैदान में नहीं उतर सके थे। हार्दिक ने कांग्रेस के लिए पूरा जोर लगाया था और अच्छी-खासी संख्या में भीड़ भी जुटाई थी। हालांकि नतीजे बेहतर नहीं रहे।
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हार्दिक से कांग्रेस को है बहुत उम्मीद
आजादी के बाद लंबे समय तक गुजरात की सत्ता में रही कांग्रेस 90 के दशक में बीजेपी के उभार और साल 2000 में नरेंद्र मोदी के राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद कमजोर होती चली गई। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी ने पार्टी के लिए जमकर पसीना बहाया और सीटों की संख्या में इजाफा किया।
2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जहां 61 सीटें मिली थीं, वहीं 2017 में यह आंकड़ा 77 हो गया था, दूसरी ओर बीजेपी 2012 में मिली 115 सीटों के मुकाबले 2017 में 99 सीटों पर आ गयी थी।
उस समय यह माना गया था कि हार्दिक पटेल के आंदोलन से बीजेपी को खासा नुकसान हुआ है। हालत यह हो गई थी कि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात में कई चुनावी रैलियां करनी पड़ी थीं। मोदी ने दिल्ली का कामकाज छोड़कर पूरा फोकस गुजरात चुनाव पर कर दिया था। फिर भी 182 सीटों वाली गुजरात की विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी 92 सीटों से सिर्फ 7 ही ज़्यादा सीटें भाजपा ला पाई।
सौराष्ट्र के इलाके में तब कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। इस इलाके में पाटीदारों (पटेलों) की अच्छी आबादी है और बड़ी संख्या में पाटीदारों ने बीजेपी के खिलाफ वोट डाला था। इसके पीछे बड़ा कारण हार्दिक ही थे।
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भाजपा के निशाने पर हार्दिक
हार्दिक पटेल को भाजपा ने कभी हल्के में नहीं लिया। भाजपा के निशाने पर हार्दिक पटेल शुुरु से रहे हैं। हार्दिक पर राज्य की बीजेपी सरकार ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा को लेकर कई मुकदमे दर्ज कर रखे हैं। यहां तक कि हार्दिक पर राजद्रोह का मुकदमा भी दर्ज किया गया है।
दरअसल भाजपा जानती है कि हार्दिक ने जिस तरह गुजरात के बाहर भी ख़ुद का विस्तार किया है, उससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। आरक्षण के अलावा किसानों की कर्जमाफी की मांग को लेकर भी आंदोलन कर हार्दिक ख़ुद को सिर्फ पाटीदारों के नेता की छवि से बाहर निकाल चुके हैं।
हार्दिक दो साल पहले गुजरात से बाहर निकले थे और उत्तर प्रदेश में उन्होंने कई राजनीतिक सभाएं की थीं। हार्दिक अपनी सभाओं में और सोशल मीडिया पर बीजेपी के खिलाफ लगातार हमला बोलते रहे हैं।
रसूखदार है पटेल समाज
पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर गुजरात में बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले हार्दिक अपने समाज के युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं। गुजरात में पाटीदार समाज पैसे से काफी मजबूत है। दुनिया भर में इस समाज के लोगों ने काफी नाम और धन कमाया है और राज्य में इस वर्ग की सियासी हैसियत भी अच्छी है।
गुजरात में लगभग 18 फीसदी आबादी पटेलों की है और अपने समाज में हार्दिक की बढ़ती लोकप्रियता को कम करने के लिए ही भाजपा को इस समाज से आने वाले नितिन पटेल को उप मुख्यमंत्री बनाना पड़ा।
कांग्रेस को उम्मीद है कि हार्दिक को यह जिम्मेदारी देने के बाद पटेल समुदाय में उसकी पकड़ मजबूत होगी, लेकिन देखना होगा कि हार्दिक किस तरह तमाम मुकदमों और कानूनी कार्रवाईयों का सामना करते हुए कांग्रेस में जारी विधायकों की भगदड़ को रोककर संगठन को मजबूत कर पाते हैं।
इसके अलावा कांग्रेस को इस बात पर भी जरूर मंथन करना होगा कि 12 विधायकों के साथ ही आखिर अल्पेश ठाकोर जैसे युवा और राज्य के कुछ हिस्सों में अच्छा जनाधार रखने वाले नेता पार्टी छोड़कर क्यों चले गए?