प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार
कोरोनावायरस (Coronavirus) कई प्रकार के विषाणुओं का एक समूह है ! चीन के वुहान शहर से उत्पन्न होने वाला 2019 करोना वायरस इसी समूह के वायरसों का एक उदहारण है, जिसका संक्रमण सन् 2019-20 काल में तेज़ी से उभरकर विश्व में तेजी से फैल रहा है ! यह आरएनए वायरस होते हैं। इनके कारण मानव में श्वांस तंत्र संक्रमण पैदा हो सकता है जिसकी गहनता हल्की (जैसे सर्दी-जुकाम) से लेकर अति गम्भीर (जैसे, और मृत्यु तक हो सकती है।
विश्व स्वस्थ संगठन (WHO ) ने 24 फ़रवरी 2020 में कोरोना वाइरस की इस महामारी का एक नया नाम कोविड -19 दे दिया है । इनकी रोकथाम के लिए कोई टीका या विषाणुरोधी अभी उपलब्ध नहीं है . आज वैज्ञानिक इस बीमारी का इलाज या वैक्सीन खोजने की पूरी कोशिश कर रहे हैं ।
विश्व में कोविड -19 से लगभग 2 मिलियन और 210 से अधिक देशों में महामारी से प्रभावित हुए हैं । वर्तमान में अभी इस का कोई ठोस उपचार नहीं है । हम इसके संकर्मण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन रोकथाम विफल होने का मतलब यह नहीं है कि हमें संक्रमण या कुछ निश्चित मृत्यु का इंतजार करना चाहिए।
हम अभी भी कई लोगों की जान बचा सकते हैं, इसके प्रसार को सीमित कर सकते हैं और कीमती समय खरीद सकते हैं ताकि वैज्ञानिक इसका इलाज कर सकें।
कोविड -19 बीमारी को रोकने के लिए मूल रूप से तीन तरीके हैं। वर्तमान में बचाव ही इसका इलाज है| इसी को देखते हुए भारत सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन ( Lockdown ) और सोशल डिस्टेंसिंग ( Social Distancing ) की घोषणा कर दी है| इसके अंतर्गत सभी गैर आवश्यक कार्य रोक दिये गये हैं, और लोगों को अपने घरों में बंद रहने का और एक दूसरे से दूर रहने के निर्देश दिये गये हैं। जिससे हम कोरोना के संक्रमण की चक्र (cycle) को तोड़ सके।
इसके साथ ही साथ हमको चाहिए की हम ज्यादा से ज्यादा और जल्दी से जल्दी व्यक्तियों का परीक्षण करें . इस प्रक्रिया से हम कोविड 19 से संक्रिमित व्यक्तियौं की पहचान कर सके और उनका उपचार किया जा सके।
पूरी तरह से इसके संचरण को बाधित करना अब असंभव है क्योंकि यह वायरस 217 से अधिक देशों में फैल गया है।
वाइरस से बचने के लिए दूसरा तरीका एक टीका हो सकता है जो सभी की रक्षा कर सकता है ! इस टीके को अभी विकसित करने की आवश्यकता है। ऐसा अनुमान है की टीका विकसित करने में लगभग एक वर्ष का समय लग सकता है ।
एक तीसरा तरीका समूह , समुदायिकी या सामूहिक प्रतिरक्षा (Herd Immunity )है। यह संभावित रूप से सबसे प्रभावी शक्तिशाली सार्वजनिक स्वास्थ्य उपकरण है . इस प्रतिरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक समुदाय में जिन लोगों को टीका लगाया जा सकता है वे टीकाकरण करवाते हैं और इस प्रकार हम सामूहिक प्रतिरक्षा प्राप्त कर सकते हैं और संक्रामक रोगों के प्रसार से होने वाली बीमारी और पीड़ा को रोक सकते हैं। इस घटना को समूह प्रतिरक्षा (Herd Immunity ) के रूप में जाना जाता है।
समूह प्रतिरक्षा शब्द भैंस की झुंड रक्षा से लिया गया है। ऐसा देखा गया है की भैंस का झुंड एक चक्र बनाता है, जिसमें बाहर की तरफ मजबूत और अंदर की तरफ अधिक कमजोर भैंस होती है , और इस प्रकार वह अपनी कमजोर भैंस को बचा लेता है।
सामूहिक प्रतिरक्षा , संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने के लिए इसी सिद्धान्त पर काम करती है। जो लोग टीके (वैक्सीन) प्रतिरक्षा लगवाने के लिए पर्याप्त मजबूत हैं उनको वैक्सीन लगा दी जाती है और वे सीधे तौर से संक्रमण से बच जाते हैं और वे अप्रत्यक्ष रूप से कमजोर लोग जिन्हें टीका नहीं लगाया जा सकता है उनकी भी रक्षा एक ढाल के तरह करते हैं ।
ऐसे कई कारण हैं जिनसे कोई व्यक्ति सफलतापूर्वक टीकाकरण नहीं करवा सकता है। उदाहरण के लिए, कैंसर के उपचार से गुजरने वाले लोग और जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली से छेड़छाड़ की जाती है। उनकी सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा क्षमता में कमी होती है। अक्सर, जिन लोगों को टीका नहीं लगाया जा सकता है वे संक्रमित होने के सबसे गंभीर परिणामों के लिए अति संवेदनशील होते हैं। एक और कमजोर समूह , बच्चे हैं। छह महीने से कम उम्र के शिशुओं में इन्फ्लूएंजा से गंभीर जटिलताएं होने की आशंका होती है। फिर भी उन्हें फ्लू का टीका नहीं दिया जा सकता क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली काफी मजबूत नहीं है।
सामूहिक प्रतिरक्षा कैसे काम करती है?
एक संक्रामक बीमारी फैलने के लिए, एक संक्रामक एजेंट को संक्रमित करने के लिए अतिसंवेदनशील (गैर-प्रतिरक्षा) लोगों की आवश्यकता होती है। यदि किसी समूह मे 50 से 75 प्रतिशत लोग वैक्सीन के द्वारा प्रतिरक्षित होंगे तब वाइरस को अति संवेदनशील पीड़ित कम से कम मात्रा मे होंगे और इसलिए गैर-प्रतिरक्षित लोगों पर आक्रमण करने मे कठिनाई होगी और इस प्रकार संक्रमण की श्रृंखला बाधित हो सकती है और इस कारण आबादी में बीमारी की मात्रा कम हो जाती है।
समूह प्रतिरक्षा (Herd Immunity ) को प्राप्त करने का एक दूसरा तरीका भी है , लेकिन यह शायद बहुत भयानक है । हम जानते हैं कि यदि वायरस फैलता रहेगा है, तो अंततः बहुत सारे लोग संक्रमित हो जाएंगे , परंतु यदि वे ठीक हो कर जीवित रहते हैं तब इनके अन्दर वाइरस के प्रति प्रतिरक्षा की क्षमता बन जाती हैं । यदि ऐसे प्रतिरक्षित लोगों की भी संख्या 50 से 70 प्रतिशत हो जाती है तो वाइरस का प्रकोप अपने आप ही खत्म हो जाएगा । क्योंकि रोगाणु की एक अति संवेदनशील मेजबान को खोजने की संभावनाएं कठिन हो जाएगी !
जैसा कि दुनिया के अधिकांश कोरोनोवायरस प्रसार को दबाने की कोशिश करते हैं, कुछ देश – तथाकथित “सामूहिक प्रतिरक्षा” के माध्यम से महामारी का प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं।
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नीदरलैंड कथित तौर पर कोरोनोवायरस महामारी से निपटने के लिए समूह की प्रतिरक्षा का उपयोग करने की योजना बना रहा है, लेकिन चेतावनी के बाद ब्रिटेन इस तरह की योजनाओं से पीछे हट गया , इससे असंख्य लोगों की मौत हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी “सामूहिक प्रतिरक्षा” रणनीति की आलोचना की गई है, जिसमें कहा गया है कि इस विषय पर अभी और गंभीरता से विचार की आवश्यकता है। अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह दृष्टिकोण प्रायोगिक रूप से सर्वोत्तम है लेकिन सबसे खतरनाक भी है।
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हम भाग्यशाली हो सकते हैं यदि वायरस उत्तरी गोलार्ध में गर्मियों की शुरुआत के साथ फीका हो जाए । पूर्व में ऐसा देखा गया है कि मौसमी परिवर्तन के साथ इन्फ्लूएंजा के प्रकोप कम होते हैं। लेकिन यह अभी अज्ञात है कि क्या गर्म मौसम एक भूमिका निभाएगा। क्या प्रकोप कम होने पर भी यह में लौट सकता है ?
(लेखक श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा (राजस्थान) के कुलपति हैं तथा कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रह चुके हैं)